आदरणीय महेंद्र जी, आपने मुझे मना किया था कि मैं आपको आदरणीय कहकर संबोधित न करूं क्योंकि आपको यकीन है कि मेरे दिल में आपके लिए आदर है।
इसके बावजूद आज आपको आदरणीय कहकर संबोधित करना पड़ रहा है ताकि आपको यकीन आ जाए कि आप आज भी हमारे लिए आदरणीय ही हैं।
वेश्याओं को पुलिस द्वारा पकड़े जाने की खबर हमने इस फोरम पर दी तो आपने ऐतराज जताया था और हमने आपसे सहमत न होने के बावजूद भी इस फोरम पर फिर वैसी कोई खबर दोबारा नहीं दी।
इसका मतलब यह है कि हम आपका केवल जबानी आदर नहीं करते बल्कि आप की बात यहां मानी भी जाती है।
ब्लॉगर्स मीट वीकली की कुछ किस्तों को तैयार करने के लिए मुझे कई बार पूरी पूरी रात जागना पड़ा है, शुरूआती मीट में लिंक्स की भरमार देख कर आप यह जान सकते हैं कि उन्हें संकलित करने में वाकई बहुत समय और मेहनत चाहिए।
इतनी मेहनत के बावजूद भी मैंने देखा कि लोग किन्हीं पूर्वाग्रहों या मजबूरियों के चलते ब्लॉगर्स मीट वीकली को सपोर्ट नहीं कर रहे हैं यहां तक कि वे लोग भी, जो इस मंच के सदस्य हैं और सक्रिय भी हैं, वे भी इस सकारात्मक कार्यक्रम को सपोर्ट नहीं कर रहे हैं, उन्हें ३ बार से ज्यादा मेरे द्वारा निजी और सार्वजनिक स्तर पर आमंत्रित किया गया लेकिन एक दो लोगों को छोड कर अधिकतर पर कोई असर नहीं हुआ।
लेकिन मैं ऐसा नहीं हूं कि कोई मेरा हौसला तोड़े और मैं हिम्मत हार जाऊं। लोगों का विरोध या उनकी उपेक्षा मेरे हौसले को और ज्यादा बढ़ा देती है।
मैं लगातार काम करता रहा और धीरे धीरे प्रेरणा जी की महारत बढ ती रही।
प्रेरणा जी अपनी तरफ से जिस लिंक को चुनना चाहती हैं, वह चुन लेती हैं।
कभी उनसे कई लिंक रह गए या कभी लिंक बनाने में कोई कमी रह गई तो लोगों की शिकायत आने पर मैंने उन्हें एडिट करके सही कर दिया।
इस बार की मीटिंग में भी आपके दोनों लेख रह गए, आपके ही नहीं बल्कि खुद मेरे कई लेख रह गए थे और रमेश जी और दिलबाग जी के लेख के लिंक भी रह गए थे। मैंने अपने, रमेश जी के और दिलबाग जी के लिंक तो लगा दिए लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि आपके लेख के लिंक रह गए हैं।
आपने कमेंट किया तो आपने बताया कि 'इस मीट में किसी का एजेंडा दिखाई नहीं दे रहा है।'
हमारा दिमाग चकरा गया कि 'इलाही माजरा क्या है ? , हमने तो रात रात भर जाग कर मीट तैयार की और उनमें आप एजेंडा देखते रहे।' सार्वजनिक मंच से ऐसी बात कही जाए तो उसकी सफाई देना जरूरी होता है, आपने एक बात कही तो हमने उसकी सफाई दे दी और जब लिखा तो चाहे संबोधन आपसे था लेकिन बात उन सबसे कही जा रही थी जो डेढ़ साल से मुझसे टकराते आ रहे हैं और अपने मुंह की खाते आ रहे हैं।
आप को आए हुए मात्र ६ माह ही हुए हैं और आप नहीं जानते कि आपके यहां आने से पहले एक तरफ तो एक हजार से ज्यादा ब्लॉगर मेरे विरोध में थे और दूसरी तरफ मैं अकेला था और बाकी ब्लॉगर न्यूट्रल थे, यानि वे मेरे विरोध में खुलकर नहीं बोल रहे थे लेकिन मेरे समर्थन में भी उनकी तरफ से कुछ नहीं कहा जा रहा था। उन एक हजार से ज्यादा ब्लॉगर्स ने 'ब्लॉगवाणी' से मेरा ब्लॉग कैंसिल करने के लिए उसके संचालकों पर नाजायज दबाव डाला और उनके साथ बदतमीजी तक की, नतीजा यह हुआ कि ब्लॉगवाणी ने उनका कहना मानकर मेरा रजिस्ट्रेशन रदद नहीं किया बल्कि खुद को अपडेट करना छोड दिया और इस तरह उन सबके पंजीकरण रदद कर दिए। बाद में वे सब पछताए और उन्होंने ब्लॉगवाणी की रिरिया कर मिन्नतें भी कीं लेकिन उनकी काफी बेइज्जती हो चुकी थी, वे दोबारा बेइज्जती कराने के लिए तैयार न हुए और इस तरह मेरे अनुचित विरोध ने मेरा तो कुछ न बिगाड़ा लेकिन इन मठाधीशों के घुटने टूटकर रह गए।
यह एक लंबी दास्तान है, जिसे मुखतसर तौर पर बताया गया ताकि आप जान लें कि मैंने कहा था कि कुछ लोग तो मुझे भी पसंद नहीं करते और मेरे धर्म पर नुक्ताचीनी करते रहते हैं लेकिन मैं उनकी परवाह नहीं करता क्योंकि मैं लोगों की पसंद नापसंद की वजह से अपनी राह और अपना अमल नहीं बदलता।
आज भी लोग मेरे धर्म पर बेवजह नुक्ताचीनी करते हैं, नीचे दिए गए लिंक पर आप देख भी सकते हैं।
इन सब हालात को मैं अपने मालिक के भरोसे अकेला ही फेस कर रहा हूं और लगातार हिंदी ब्लॉग जगत को गुटबाजी और अज्ञानता से निकालने की कोशिश कर रहा हूं।
हिंदी ब्लॉगिंग गाइड भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है। दस पांच साथियों के अलावा पूरे हिंदी ब्लॉग जगत ने इस महान सकारात्मक काम को कितना सराहा ?
कुछ भी नहीं ।
जो लोग मामूली बातों तक पर पोस्ट लिखते हैं और बड़ा ब्लॉगर कहलाते हैं, उन्होंने भी इस गाइड का कोई नोटिस नहीं लिया बल्कि बड़े कहलाए जाने वाले एक
हमारे प्रिय नास्तिक ब्लॉगर ने तो यह तक कह दिया कि इसकी कोई जरूरत ही नहीं है और न ही इससे कोई फायदा होगा।
इन विपरीत हालात में ही हम ब्लॉगर्स मीट वीकली के कॉन्सेप्ट को लेकर चल रहे थे, ऐसे में ही हमारी दादी साहिबा (उम्र ९५ साल) की टांग टूट गई, जिसकी सूचना दो हफ्ते पहले हमने
ब्लॉगर्स मीट वीकली 8 में (अंत में) दी लेकिन किसी ने कोई नोटिस तक न लिया .
इसे किस कॉलम में डाला जाए ?
अभी हम यही सोच रहे थे कि पता चला कि पित्ताशय के साथ साथ हमारे गुर्दे में भी पत्थरी हो गई है।
खैर, ये दोनों पत्थरियां भी चिंता का विषय नहीं हैं क्योंकि दोनों ही इंशा अल्लाह बिना आप्रेशन के निकल जाएंगी, इसके अलावा बच्चों के मार्क्स कम आने लगे क्योंकि हमारी तवज्जो तो बच्चों के बजाय ब्लॉगिंग पर हो गई न।
ये सब हो रहा है और साथ के लोग बता रहे हैं कि इस मीट में किसी का एजेंडा नजर नहीं आ रहा है और वह भी ऐसे समय में जबकि विरोधियों ने भी इल्जाम देना बंद कर दिया है।
ऐसे में आपको जवाब देना जरूरी था और मैंने दिया, बिना किसी कड़े और कड़वे शब्द के दिया। किसी को अपमानित करने के भाव के बिना दिया।
जब मैंने मीट में आपके ऐतराज के जवाब में टिप्पणी की तब भी मैंने न देखा कि आपका लेख इस मीट में नहीं है क्योंकि ऐसा तो दो बार हुआ कि आपका कमेंट ब्लॉगर्स मीट वीकली में नहीं आया लेकिन तब भी आपकी पोस्ट मीट में मौजूद थी।
आपके बात कहने के अंदाज से लगा ही नहीं कि आप व्यंग्य या शिकायत कर रहे हैं। आप सीधे अंदाज में बात कह देते जैसे कि महेश बारमाटे जी ने कहा कि उनका लिंक रह गया है और हमने एडिट करके उनके एक के बजाय ३ लिंक लगा दिए। ऐसा ही एक बार साधना वैद जी के साथ हुआ था तब हमने उनका लिंक भी लगाया और एक और पोस्ट बनाकर 'ब्लॉग की खबरें' पर भी लगाई।
ब्लॉगर्स मीट वीकली लिंक के लिए ही है, इसमें किसी को छोड़ा नहीं जाता लेकिन भूल से कोई भी रह सकता है।
आप गौर से देखिए,
इस बार मासूम साहब का लिंक भी नहीं है और सलीम भाई, जीशान जैदी और सफत आलम तैमी साहब का लिंक भी नहीं है और हिंदी ब्लॉगिंग में मेरे गुरू जनाब मुहम्मद उमर कैरानवी साहब का भी कोई लिंक पिछली कई मीट से ही नहीं है। मैं चाहता तो इन सबके लिंक ला सकता था लेकिन नहीं लाया। इनकी तरफ से कोई इल्जाम भी नहीं आया क्योंकि ये सब जानते हैं कि मैंने अगर जान बूझकर भी इन्हें छोड ा है तो वक्त की तंगी जैसी कोई बात रही होगी, मेरे दिल में इनके लिए कोई बुराई नहीं है।
जो मुझे गालियां देते हैं और आये दिन मुझे मूर्ख और मेरी बातों को चंडूखाने की गप्प्प कहते हैं, ऐसे लोगों को भी मैंने इस मंच का सदस्य बनाया है, डा. श्याम गुप्त जी इसकी जिंदा मिसाल हैं,
हिंदी ब्लॉग जगत का यह शायद अकेला साझा ब्लॉग है जहां यह आजादी है कि साझा ब्लॉग के संचालक की आलोचना की जा सकती है।
आलोचना से आगे बढ़कर गालियां देना है।
एक ब्लॉगर ने 'अहसास की परतें-समीक्षा' के नाम से मेरे विरोध में लिखना शुरू किया और मुझे अश्लील गालियां अपने ब्लॉग पर देना शुरू कर दीं। मैंने बुरा मानने के बजाय तुरंत उन्हें इस ब्लॉग का सदस्य बनाया। उन्होंने इसी मंच पर मेरे विरोध में लिखा और मैंने उन्हें मंच से निष्कासित नहीं किया। तारकेश्वर गिरी जी और विभावरी रंजन जी भी मेरे विरोध में स्वर उठाते रहते हैं लेकिन वे भी इस मंच के सदस्य बदस्तूर हैं और ऐसा केवल इसी मंच पर है। लिखने की ऐसी आजादी आपको कहीं और न मिलेगी।
सम्मान का मतलब यह नहीं है कि आप एक ऐतराज करें तो हम चुप रह जाएं तो आपका सम्मान है और अगर आपको वस्तुस्थिति से अवगत करा दें तो आपका अपमान हो गया।
आपने एक बात रखी तो हमने अपना पक्ष रख दिया, बस।
हमारी तरफ से तो बात इतनी ही है और आप भी इसे इतना ही समझें।
उम्मीद है कि ये बातें दिलों में दूरियां पैदा करने का सबब नहीं बनेंगी।
शुक्रिया !
जनाब महेंद्र जी के पत्र को तफ़सीली तौर पर मुलाहिज़ा कीजिए निम्न लिंक पर