जानिए कि परम धर्म क्या है ?
जो इंसान ख़ामोश चीज़ों तक की ज बान जानता हो, वह इतना बहरा कैसे हो जाता है कि धर्म की उन हज़ारों ठीक बातों को वह कभी सुनता ही नहीं, जिनका चर्चा दुनिया के हरेक धर्म-मत के ग्रंथ में मिलता है लेकिन अपना सारा ज़ोर उन बातों पर लगा देता है जिन पर सारी दुनिया तो क्या ख़ुद उस धर्म-मत के मानने वाले भी एक मत नहीं हैं। यह कैसा अन्याय है ?
यह कैसा अंधापन है ?
कैसे मूर्ख हैं वे, जो इन अंधों को अपना साथी और अपना गुरू बनाते हैं ?
अपने अंधेपन को ये जानते तक नहीं हैं और कोई बताए तो मानते भी नहीं हैं।
जो आंख वाले हैं, उनकी नैतिक जि म्मेदारी है कि वे अंधों को मार्ग दिखाएं।
अंधों को मार्ग दिखाना परोपकार है, धर्म है बल्कि परम धर्म है।
कौन है जो इस धर्म की आलोचना कर सके ?
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