हरेक आदमी अच्छी बातों को अच्छा और बुरी बातों को बुरा समझता है। हरेक आदमी को शांति और न्याय को अच्छा और दंगे-फसाद और खून खराबे को बुरा समझता है। इसके बावजूद लोग शांति भंग करते हैं और दंगा करते हैं और खून बहाते हैं।
सवाल यह नहीं है कि इसने ज्यादा बहाया या उसने ज्यादा बहाया और न ही यह सवाल है कि किसने पहले बहाया और किसने बाद में बहाया ?
असल में सवाल यह है कि जिसने भी बहाया तो क्यों बहाया ?
श्री लंका में तमिलों ने सिंहलियों को मारा या सिंहलियों ने तमिलों को ?
अफगानिस्तान में अमरीका ने पठानों को मारा या पठानों ने अमरीकियों को ?
और फिर यही बात हिंदुस्तान के लिए है कि हिंदुओं को किसने मारा ?
और मुसलमानों को किसने ?
आखिर इस मारामारी से लाभ होता किसे है ?
जनता को तो होता नहीं है।
इसका लाभ राजनीतिक दल ही उठाते हैं।
मुस्लिमों की भलाई में आग उगलने वाले मुस्लिम लीडर भी इसका लाभ उठाते हैं और हिंदुओं की भलाई के लिए जबानी जमा खर्च करने वाले लीडर भी लाभ उठाते हैं।
इनके भड़काए में आकर लड़नेवाले या उसकी चपेट में मरने वाले आम आदमी को तो इन्होंने कभी कुछ दिया ही नहीं, अपनी जान गंवाने वाले अपने कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी इन्होंने कभी कुछ न दिया।
दुख की बात यह है कि इन्हें किनारे करने की इच्छा शक्ति जनता में आज भी नहीं है।
सवाल यह नहीं है कि इसने ज्यादा बहाया या उसने ज्यादा बहाया और न ही यह सवाल है कि किसने पहले बहाया और किसने बाद में बहाया ?
असल में सवाल यह है कि जिसने भी बहाया तो क्यों बहाया ?
श्री लंका में तमिलों ने सिंहलियों को मारा या सिंहलियों ने तमिलों को ?
अफगानिस्तान में अमरीका ने पठानों को मारा या पठानों ने अमरीकियों को ?
और फिर यही बात हिंदुस्तान के लिए है कि हिंदुओं को किसने मारा ?
और मुसलमानों को किसने ?
आखिर इस मारामारी से लाभ होता किसे है ?
जनता को तो होता नहीं है।
इसका लाभ राजनीतिक दल ही उठाते हैं।
मुस्लिमों की भलाई में आग उगलने वाले मुस्लिम लीडर भी इसका लाभ उठाते हैं और हिंदुओं की भलाई के लिए जबानी जमा खर्च करने वाले लीडर भी लाभ उठाते हैं।
इनके भड़काए में आकर लड़नेवाले या उसकी चपेट में मरने वाले आम आदमी को तो इन्होंने कभी कुछ दिया ही नहीं, अपनी जान गंवाने वाले अपने कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी इन्होंने कभी कुछ न दिया।
दुख की बात यह है कि इन्हें किनारे करने की इच्छा शक्ति जनता में आज भी नहीं है।
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