ख़ुशी की कलियों की खेती कैसे करें ? Happiness

हम जब चाहे तब ख़ुश हो सकते हैं, जितना चाहे उतना ख़ुश हो सकते हैं और जब तक चाहे तब तक ख़ुश रह सकते हैं। 
हमें ख़ुश करने वाला अगर कोई है तो वह हम ख़ुद हैं।
हमें कोई हादसा दुख नहीं दे सकता। हमें कोई आदमी दुखी नहीं कर सकता। अगर हमें कोई दुखी कर सकता है तो वह हम ख़ुद ही हैं।
हम अपने आप को नहीं जानते। हम अपने मन को और अपने मन की भावनाओं को नहीं जानते। हम अपने मन के काम करने के तरीक़े को नहीं जानते। इसीलिए हम दुख पाते हैं।
हम बार बार दुख पाते हैं। बार बार दुख पाने से दुखी रहना हमारी आदत बन जाती है और फिर जिस चीज़ की हमें आदत होती है, वही चीज़ हमारी तरफ़ आकर्षित होती रहती है। दुख हमें पहचान लेते हैं और ख़ुशियां हमसे रूठ जाती हैं।
हम अपने भाग्य के लिए कभी ईश्वर को और कभी अपनी सरकारों को दोष देते रहते हैं लेकिन हक़ीक़त इसके खि़लाफ़ है। हमारे दुख का कारण हमारे बाहर नहीं है बल्कि हमारे अंदर है, हमारे मन में है। अरबी में मन को ‘नफ़्स‘ कहते हैं।
हमें 30 साल से ज़्यादा अर्सा हो गया है इस मन यानि नफ़्स पर रिसर्च करते हुए और इसके करिश्मे देखते हुए। अब भी देख रहे हैं।
आप भी देख रहे हैं और जो चाहे वह देख सकता है कि जब एक आदमी को अफ़ीम, चरस, भांग या शराब की आदत पड़ जाती है तो वह जिस शहर में जाता है। उसे वह चीज़ उसी शहर में उपलब्ध हो जाती है।
अगर आपको दुख प्राप्त हो रहे हैं तो इससे आपके सोचने के पैटर्न का पता चलता है।
अगर आप ख़ुशी चाहते हैं तो आपको अपने सोचने के पैटर्न को चेंज करना पड़ेगा। आपको ख़ुश रहने की प्रैक्टिस करनी पड़ेगी। बार बार की प्रैक्टिस से ख़ुश रहना आपकी आदत बन जाएगी और तब ख़ुशियां आपकी तरफ़ आकर्षित होंगी और दुख आपसे रूठ जाएगा।
आप ख़ुश रहेंगे तभी आपके जीवन में ख़ुशी का अहसास कराने वाली घटनाएं होंगी और आप हरेक हादसे से सलामत रहेंगे।
आप सोचते हैं कि पहले ख़ुशी की घटनाएं हों तब मैं ख़ुश होऊंगा। जबकि तत्वज्ञानी आरिफ़ बन्दे जानते हैं कि ख़ुशी की घटनाएं तब होंगी और पै दर पै होंगी जब आप ख़ुश रहने के आदी हो जाएंगे।
अक्सर लोग यह नहीं जानते और जो जान लेते हैं, उनमें से भी बहुत कम लोग ख़ुश रहने का अभ्यास कर पाते हैं। जो कर लेते हैं, वे ख़ुश रहते हैं।
ख़ुशी का अभाव होते ही दुख आ धमकता है। यहां प्रकृति ख़ाली जगह को भरती रहती है।
आप दुख को दूर करना चाहते हैं तो पल भर में कर सकते हैं। आप अपने दिल को ख़ुशी से भर लीजिए। आपका दुख दूर हो जाएगा। यह सहज है।
हम ऐसे ही करते हैं। आप भी ऐसे ही कर लीजिए।
अक्सर लोग कहते हैं कि हम ख़ुश कैसे रह सकते हैं जबकि हमारी आमदनी कम है, हमारे ख़र्चे ज़्यादा हैं, हमारा घर बंटकर पहले से छोटा हो गया है, हमारे घर का एक मेम्बर बीमार है, हमारी जान को मुक़द्दमा लगा हुआ है।
ये सब तो हमारे साथ भी लगे हुए हैं। इसके बावुजूद हम ख़ुश हैं क्योंकि हम जान गए हैं कि यह सब हमारी ग़लत सोच के नतीजे में हुआ है और जब हमने उसे सुधार लिया है तो अब ये सारे हालात भी बदल जाएंगे। हालात बहुत बदल चुके हैं और लगातार बदलते जा रहे हैं।
यहां अल्लाह पर ईमान काम आता है। यहां दुआ काम आती है।
हम निर्बल हैं लेकिन हमारा रब सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहे कर सकता है। हम उससे अपने भले की दुआ कर सकते हैं और उसे पूरी कर सकता है।
अल्लाह हमारी दुआओं को हमेशा से पूरा करता आ रहा है। अल्लाह हमारे साथ है। हमारे ख़ुश रहने की यह वजह सबसे बड़ी वजह है।
अपनी ग़लतियों, अपनी नादानियों और दुश्मनों की कारगुज़ारियों की वजह से जब हम परेशानियों से घिर से गए और हमारे दिल में ऐसे विचार आने लगे कि यह जीना भी कोई जीना है। इससे तो अच्छा है कि मर जाएं।
तब भी हम मर नहीं पाए क्योंकि अल्लाह को आत्महत्या नापसंद है।
जब हमने अपनी बीवी को तलाक़ देने का पक्का इरादा कर लिया तब भी हम उसे तलाक़ नहीं दे पाए क्योंकि अल्लाह को जायज़ कामों से सबसे ज़्यादा नापसंद तलाक़ देना है।
जो काम अल्लाह को नापसंद है, वह हम कर नहीं सकते। हमारा जीना-मरना उसी की ख़ुशी के लिए है।
अल्लाह हमें राह दिखाता है। अल्लाह बुराई से हमारी हिफ़ाज़त करता है। अल्लाह हमारे दिल को बुरे इरादों और बुरी सोच से पाक करता है। निराशा, अवसाद और नकारात्मकता अल्लाह के बंदे के दिल में आ नहीं सकती और अगर कभी किसी के दिल में आ जाए तो वह ठहर नहीं सकती।
हम अल्लाह के दिखाए रास्ते पर आगे बढ़ते रहे और वह हमारा कल्याण करता रहा, हमारा भला करता रहा।
हमने जितनी दौलत उससे मांगी उसने दी। हमने उससे जो चीज़ मांगी, उसने दी। उसने माध्यम बनाकर भी चीजें दीं और उसने ग़ैब से भी दीं बिना किसी ज़ाहिरी ज़रिये के। उसने रात के अंधेरे में हमें ग़ैब से ‘गैस का ग़ुब्बारा‘ दिया। यह बचपन की घटना है जब हम तक़रीबन चार साल के थे और सर्दी की रात में ज़िद कर रहे थे।
बचपन की ही दूसरी घटना वह है जब हमारी दादी के पैसे खोए गए। उन्होंने कुरआन की सूरत ‘अश्-शम्स‘ पढ़कर दुआ की तो हमने हवा में से पैसे फ़र्श पर गिरते हुए देखे और फिर यही हमारे बेटे के साथ हुआ। उनके साथ दो बार हुआ जब कि ग़ैब से उनके मांगने पर पैसे हवा से गिरे।
चलती हुई आंधियों को जब हम रोकना चाहते हैं तो दुआ करते हैं। वे रूक जाती हैं। वे हमारे बचपन में भी रूक जाती थीं और आज भी रूक जाती हैं।
अगर आप चमत्कार की दुआ करेंगे तो आपके साथ चमत्कार ही होगा।
हमं निर्बल हैं लेकिन हमारा रब समर्थ है। उसकी सामर्थ्य अनंत है। आप अनंत सामर्थ्य वाले का ध्यान कीजिए। आपको ख़ुशी मिलेगी और ख़ुशी मिलते ही आपके दुखों का अंत हो जाएगा।
यह सरल है। यह तुरंत हो सकता है। अगर आपका दुख दूर हो जाता है तो आपके लिए इससे बड़ा चमत्कार क्या होगा ?
यह सबसे बड़ा चमत्कार आप ख़ुद कर सकते हैं।
आप जीतने के लिए पैदा हुए हैं। आप जीत सकते हैं।
‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत‘
अगर आप जीत सकते हैं तो फिर आप जीतते क्यों नहीं हैं ?
आप ख़ुद भी जीतिए और अपने परिवार को भी जीतना सिखाईये।
इसके बाद किसी रोज़ हम आपको ‘दौलत की खेती‘ करना सिखाएंगे। तब तक आप अपने मन की भूमि पर ख़ुशी की कलियां खिलाईये, ख़ुशी के फूलों की खेती कीजिए। जब आपका मन हरा भरा हो जाएगा तो ख़ुशहाली आपकी तरफ़ ख़ुद ही दौड़ी चली आएगी।
 
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महात्मा गांधी से भी ऊंचा एक व्यक्तित्व khan abdul gaffar khan

जब भी संघर्ष और वह भी जेल में रहकर संघर्ष करने की बात आती है, तो हम या तो महात्मा गांधी को याद करते हैं या नेल्सन मंडेला को या फिर आंग सान सू की को। गांधी को छह-सात वर्ष तक जेल में रहना पड़ा, सू की को 15 वर्ष तक और नेल्सन मंडेला को 27 वर्ष तक। लेकिन यह सब खान अब्दुल गफ्फार खान के संघर्ष के सामने कुछ नहीं, जिन्होंने अपने जीवन के पूरे 42 साल ब्रिटिश राज और फिर पाकिस्तान की जेलों में गुजार दिए। जेल में उनके समान कष्ट और यातनाएं भी किसी ने नहीं झेलीं। सरहदी सूबे की जेलों में तो अक्सर पैरों में लोहे की बेड़ी बंधी रहती थी। बादशाह खां और सीमांत गांधी जैसी उपाधियों से नवाजे गए खान अब्दुल गफ्फार खां ने अपने भाई के साथ मिलकर कभी पठान सीमा प्रांत में खुदाई खिदमतगारों की एक बड़ी अहिंसक फौज खड़ी की थी। 1942 के आंदोलन में जब गांधी के नेतृत्व के बावजूद हिन्दुस्तानी अहिंसक नहीं रह सके, तब पठानों ने अपनी अहिंसा कायम रखी। इस पर गांधी की टिप्पणी थी कि अहिंसा बहादुरों का हथियार है, बुजदिलों का नहीं और पठान एक बहादुर कौम है, वह अहिंसा का पालन करने में समर्थ हो सकी।
अहिंसा की शिक्षा बादशाह खां ने गांधी से नहीं, कुरान से ग्रहण की थी। वह उस दौर के बाकी लोगों से ज्यादा राष्ट्रवादी थे। राजेंद्र प्रसाद जब संविधान सभा के अध्यक्ष बने, तो उनके स्वागत में आठ भाषण दिए गए। इनमें सें सात ने अंग्रेजी में बोलना उचित समझा। अकेले बादशाह खान ही थे, जो हिन्दुस्तानी में बोले। बादशाह खान ने जीवन भर कांग्रेस का साथ दिया था। आजादी की लड़ाई में पठानों ने कांग्रेस को शक्तिशाली बनाया। पठान कांग्रेस के साथ इस वायदे पर थे कि हिन्दुस्तान के आजाद होने के साथ-साथ पठानों को भी आजादी मिलेगी। पर जब समय आया, तो पठानों की इच्छा के विरुद्ध उन्हें जबरदस्ती पाकिस्तान के साथ कर दिया गया। मुस्लिम लीग को वे चुनावी शिकस्त पहले ही दे चुके थे। पठानों के सामने विकल्प, हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के बीच का नहीं, बल्कि पाकिस्तान और पख्तूनिस्तान के बीच रखा जाना चाहिए था। जो नहीं हुआ। कांग्रेस के नेताओं का मानना था कि वे परिस्थितियों के अधीन थे।

बादशाह खान का सवाल था कि ये परिस्थितियां किसने पैदा कीं। एक तरफ बादशाह खान पूरी तरह से विभाजन के विरोधी थे, तो दूसरी ओर सभी राष्ट्रीय नेताओं को विभाजन स्वीकार्य था। गांधी जैसे व्यक्ति भी इसे मूक-दर्शक बनकर देखते रहे। बादशाह खान अकेले पड़ गए थे। सच तो यह है कि स्वतंत्रता की लड़ाई के आखिरी दौर में बादशाह खान ही सत्य, अहिंसा और भाईचारे के एकमात्र प्रतिनिधि थे। यहां वे गांधी से भी ऊपर उठ जाते हैं। इंदिरा गांधी ने तो उनके लिए यहां तक कहा, ‘बादशाह खान के दयालु व्यक्तित्व से आशा की जा सकती है कि वे हमारी विफलताओं को क्षमा कर पाएंगे।’
-उदय प्रकाश अरोड़ा, ग्रीक चेयर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
हिन्दुस्तान दिनांक 20-01-2014, पेज 10 से साभार
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