क्या आप अपने पिता जी को 50 वर्ष का होने पर हिंदू धर्म के अनुसार जंगल भेज कर वानप्रस्थ आश्रम के पालन के लिए कह सकते हैं ? Four Ashram System

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  • Tuesday, March 1, 2011
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  • DR. ANWER JAMAL
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  • हरगिज़ नहीं।
    हिंदू धर्म पर चलने के लिए आप आख़िर तैयार क्यों नहीं हैं ?
    http://commentsgarden.blogspot.com
    पर आप मेरा यह कमेँट देख सकते हैं।
    इसमें मुझ पर बेवजह लगाए गए कई झूठ इल्ज़ामों का खंडन है । आप देख सकते हैं कि लोग महज़ सरसरी नज़र से मेरे लेख पढ़कर कैसे ग़लतफ़हमियाँ पालते भी हैं और फिर फैलाते भी हैं ?
    @ भाई समीक्षा सिंह जी ! आप लोग मेरी रचनाओं को ठीक ढंग से नहीं पढ़ते इसीलिए आप मुझसे बदगुमान और परेशान रहते हैं । अपर्णा पलाश बहन का कोई भी शेर मैंने अपने ब्लाग 'अहसास की परतें' के कमेँट बॉक्स के साथ नहीं लगाया है , तब आप मुझे चोरी का झूठा इल्ज़ाम क्यों दे रहे हैं ?
    जो इस जगत का रचनाकार है वही एक ईश्वर है मैं उसी को मानता हूँ और आप भी उसी को मानते होंगे।
    अगर आपकी नज़र में आपके धर्मग्रंथ प्रक्षिप्त नहीं हैं तो आप उनका पालन कीजिए।
    आप खुद कहते हैं कि हिंदू धर्म के ग्रंथों से आपकी आस्था हिली चुकी है।

    1. क्या आप आज के युग में विधवा को सती कर सकते हैं ?
    2. क्या आप आज की व्यस्त जिंदगी में तीन टाइम यज्ञ कर सकते हैं ?
    3. क्या आप आज अपने बच्चों को वैदिक गुरूकुल में पढ़ाते हैं ?
    4. क्या आपके पिताजी 50 वर्ष पूरे करके वानप्रस्थ आश्रम का पालन करते हुए जंगल में जा चुके हैं ?
    5. और अगर वह जंगल जाने के लिए तैयार नहीं हैं तो क्या आप उनसे अपने धर्मग्रंथों का पालन करने के लिए कहेंगे ?

    14 comments:

    Shah Nawaz said...

    अनवर भाई,

    आप क्यों ज़बरदस्ती लोगो को धर्म ग्रंथों का पालन करने के लिए कह रहे हैं? कौन किस धर्म का पालन करता है? कितना पालन करता है? यह सब व्यक्ति विशेष अथवा उसकी आस्था के ऊपर निर्भर है....

    क्या किसी से यह सवाल करना सही है???

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ शाहनवाज़ भाई ! पहली बात तो आपकी यह ग़लत है कि मैं किसी पर ज़ोर ज़बर्दस्ती कर रहा हूं ।
    क्या मैंने किसी की कनपटी पर पिस्टल रखी हुई है ?
    मैं तो मुसलमानों से भी कहता हूँ कि अगर आप इस्लाम धर्म को सत्य मानते हैं तो किसी को मत सताओ और अपने संपर्क में आने वालों को ज्यादा से ज्यादा नफ़ा पहुँचाओ।
    अपने हिंदू भाइयों से भी मैं यही कहता हूँ कि आप जिस धर्म को सत्य मानते हैं उस पर चलिए भी तो सही ।
    ऐसा कहने वाले को भारत में संत और महापुरुष माना जाता है।
    अब आप बताइये कि आख़िर क्यों न कहा जाए कि आप लोग जिस धर्म को मानते हैं , उसके अनुशासन का पालन भी कीजिए ?
    क्या भारतवासियों को मनमाना आचरण करके बर्बाद होते चुपचाप देखता रहूँ ?
    आप बताइये कि क्या एक मुसलमान पर वाजिब नहीं है कि दूसरों को भी जहन्नम अर्थात नर्क की आग से बचाने की फ़िक्र करे ?
    एक व्यवस्था को सत्य मानने का दावा करने वाले अगर उस व्यवस्था का पालन नहीं करते तो फिर उसका झंडा हाथ में लेकर इस्लाम और कुरआन को कोसना छोड़ दें ।
    समीक्षा सिंह ऐसा ही करते आ रहे हैं जिनका जवाब आपने खुद तो कभी दिया नहीं और अब चाहते हैं कि मैं भी इन्हें हकीकत न बताऊं , आखिर क्यों ?
    क्या केवल इन दुनिया के हवसख़ोरों से धर्म निरपेक्ष और अच्छा आदमी कहलाने के लिए ?
    मुझे न तो इनकी तारीफ़ की कोई जरूरत है और न ही अपनी छवि बिगड़ने का कोई डर है ?

    Shah Nawaz said...

    क्या अच्छा है और क्या बुरा... यह आप किसी को भी समझा सकते हैं... इसी तरह धर्म का प्रचार भी आप कर सकते हैं.... लेकिन कोई आप की बात मान ही ले, या धर्म को पूर्ण रूप से मानने लगे, इस बात की ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हैं...

    आपको किसी ने दारोगा नहीं बनाया है... कोई किसी धर्म को पूरा माने या आधा माने, या बिलकुल ही ना माने इसके बारे में आपसे सवाल-जवाब खुदा के घर भी होने वाला नहीं है.... आपसे सवाल यही होगा कि आपने अल्लाह के बारे में सही जानकारी लोगो तक पहुंचाने की कोशिश की है या नहीं...

    विश्‍व गौरव said...

    जहां तक आप दोनों के बारे समझता हूं दोनों समझदार है,
    धर्म के मामले में जबरदस्‍ती आप कर ही नहीं सकते हो भी नहीं पाती बस अन्‍दाज जुदा है

    वहीं शाहनवाज भाई का अन्‍दाज देखो, बात उनकी भी ठीक है

    नव- मुस्लिम डाक्टर मुहम्मद हुज़ेफा (डी. एस. पी. रामकुमार) से मुलाकात interview 5

    मास्टर मुहम्मद आमिर (बलबीर सिंह, पूर्व शिवसेना युवा शाखा अध्‍यक्ष) से एक मुलाकात - Interview

    बाबरी मस्जिद गिराने के लिये 25 लाख खर्च करने वाला सेठ रामजी लाल गुप्ता अब "सेठ मुहम्मद उमर" interview 3

    मुहम्मद इसहाक (पूर्व बजरंग दल कार्यकर्त्ता अशोक कुमार) से एक दिलचस्प मुलाकात Interview 2

    जनाब अब्दुर्रहमान (शास्त्री अनिलराव आर्य समाजी) से मुलाकात Interview-4

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ शाहनवाज़ भाई ! आपको पता होना चाहिए कि ज़बर्दस्ती तब मानी जाती है जब बल का प्रयोग करके किसी से उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ कोई बात मनवाई जाए ।
    1. मैं किसी के साथ कोई बल प्रयोग नहीं कर रहा हूं।
    2. जो लोग जिस धर्म को पसंद करते हैं उसी के अनुशासन को मानने के लिए कह रहा हूं ।

    लोगों के बजाय आप अपनी बात कीजिए। अगर आप यह कहते हैं कि आप चाहे इस्लाम पर आधा चलें या पूरा या फिर सिरे से ही न चलें , मुझे आपको टोकने का कोई हक़ नहीं है तो आप एक बिल्कुल ग़लत बात कह रहे हैं ।
    अल्लाह कहता है :
    'उदख़ुलू बिस्-सिल्मि काफ़्फ़ा' अर्थात दाख़िल हो जाओ इस्लाम में पूरी तरह (अलक़ुरआन)

    'फ़ज़क्किर , इन्नज़्ज़िक्करा तनफ़उल मोमिनीन' अर्थात सो आप याददिहानी कीजिए , नि:संदेह याददिहानी करना ईमान वालों को नफ़ा देता है । (अलक़ुरआन)

    क्या आप अब भी कहेंगे कि आपको इस्लाम पर पूरी तरह चलने के लिए न कहा जाए ?
    जो लोग बहस और झगड़ा करते हैं । उन्हें सभ्यता के साथ जवाब देने की अनुमति भी अल्लाह देता है :
    'वजादिलहुम बिल्लती हिया अहसन' अर्थात और उनसे उत्तम रीति से शास्त्रार्थ करो । (अलक़ुरआन)

    क्या आप शास्त्रार्थ को बंद कराना चाहते हैं ?
    ऐसे में जो लोग मेरे ब्लॉग पर आकर इस्लाम में कमियाँ निकालते हैं , उनकी गलतफहमियाँ कैसे दूर की जाएंगी ?
    भारत में शास्त्रार्थ सदा से हरेक धर्म-मत के लोग करते आए हैं और आज भी कर रहे हैं और उन्हें बहुत बड़ा संत महात्मा कहा जाता है ।

    ऐसे में ऐतराज़ केवल मुझपर ही क्यों ?

    अहसास की परतें - old said...
    This comment has been removed by the author.
    अहसास की परतें - old said...

    जमाल मैने जो comment लगाया है वो तुम्हारे ब्लॉग पर अपर्णा बहन के एक comment पर आधारित है। जिस ब्लॉग के जवाब मे यह पोस्ट है उस पर जाओ (लिंक दिया है ऊपर) वहां अपर्णा बहन की टिप्पणी देखो ३०वां comment (अपर्णा बहन का तीसरा) पढो लिखा है "जमाल साहब दुनिया तो जनम लेते ही पीछे पड़ जाती है मेरी गजल के शब्द अपने टिप्पणी बॉक्स पर लगाकर मेरा मान बढाया शुक्रिया" इसका मतलब मैं क्या समझूं? वैसे मेरा ब्लॉग जगत मे सक्रिय होने का पूरा श्रेय बहन फिरदौस एवं भाई सौरभ को जाता है, जिस समय फिरदौस बहन के ऊपर सभी धर्मांध टूट पडे थे उसी समय से मैं ब्लॉग पढ रहा हूं अतः अगर मैं अपर्णा बहन की बात पर विश्वास कर रहा हूं तो उसका कारण उन पर मेरा विश्वास नही है (उनसे तो कभी बात भी नही हुई) पर हां तुमको मैं अच्छे से जान गया उस समय मे, इसीलिए मैने ऐसा लिखा।

    मेरी आस्था हिन्दु धर्म ग्रंथों से नही उसकी व्याख्या से उठ चुकी है, मैं वो कोइ भी व्याख्या नही मान सकता जो मानवता के विरुद्ध जाती हो, और ऐसा अगर हिन्दु धर्म ग्रन्थों के साथ है तो कुरान के साथ उससे ज्यादा है।

    विधवा का सती होना अनिवार्य नही है, अन्यथा पाण्डवों को माता कुन्ती का दुलार भरा पालन पोषण नही मिलता।
    तीन समय यज्ञ किसी भी समय मे सम्पूर्ण जन सामान्य नही करते, ऐसा मूलतः ऋषि आश्रम मे ही होता था, आज भी शांतिकुंज हरिद्वार मे होता है।
    मेरे बच्चे नही हैं क्योंकि मेरा विवाह नही हुआ है।
    वानप्रस्थ भी अनिवार्य नही है/था अन्यथा भीष्म लडाई मे होते ही नही
    इसाइ भी जंगल नही जाते, क्या तुम अब बाईबिल का पालन करोगे?

    अहसास की परतें - old said...

    जमाल एक बार चार अंधे एक पशु शाला मे गए हाथी को जानने की तमन्ना थी, महावत ने उनको हाथी को छूने की इजाजत दी।

    एक ने पैर छुए, दूसरे ने सूंड, तीसरे ने पूंछ और चौथे ने कान।

    वापस आने पर वो सब आपस मे लडने लगे, पहला बोला कि हाथी खम्भे जैसा होता है, दूसरा बोला नही वो मोटा पाईप जैसा होता है, तीसरा बोला गलत वो रस्सी जैसा होता है और चोथा बोला तुम सबको कुछ नही मालूम वो तो भटूरे जैसा होता है।

    अब तुम ही समझ लो कि तुम कौन से अंधे हो जो हिन्दुत्व के सिर्फ एक आयाम को ही उसका पूर्ण रूप मानते हो। मेरे लिए तो चार्वाक भी ऋषि हैं

    अहसास की परतें - old said...

    जमाल तुम जबरजस्ती नही करते हो, तुम गलतफहमी फैलाते हो गलत गलत बाते फैला कर, मेरा विरोध उसको ले कर रहा है, मेरे सभी पोस्ट उसी पर आधारित हैं

    shyam gupta said...

    जमाल की ये नकल की हुई कहानी मेरी पोस्ट- हाथी, यक्ष..... से है....क्या बात है जी...

    ---मेरा कमेन्ट भी जिसमे ज़बाव थे नहीं छापा गया है...क्यों??????????????

    अहसास की परतें - old said...

    श्याम जी ज़माल तो आपको कोई श्रेय देने से रहा, उसने तो किलर झपाटा जी की टिप्पणी भी डीलीट कर दी ऐ, मै ही आपको अच्छे पोस्ट के लिए साधुवाद देता हूं

    shyam gupta said...

    धन्यवाद...समीक्षा जी...

    Mohammad Ahmad Haqqani said...

    Nice Post

    Anonymous said...

    श्री समीक्षा जी... जी आप जमाल जी की बात का बुरा न माने ,

    कुछ ब्लोग्गरो का धर्म ही धंधा है तो क्या करे कुछ न कुछ लिखना ही है वरना इनके परिवार का पेट कैसे भरेगा ?
    वो भी किसी पुस्तक का तोड़ मोड़ कर अजीब से अजीब से तर्क देकर अपनी किताबे छापने और सबके ब्लॉग पर अपनी उस किताब का "add " देने में लगे है
    नया और अच्छा नही लिख सकते तो समीछा करके बुराई ही लिखने लगे है
    जिन शब्दावली की जानकारी इंसान को न हो उसे बताने में लगे है


    न तो इनको आज की समस्याओ से मतलब है न ही देश से
    १०.००० साल पुरानी बातो(हुई हो या न हुई हो ) में बुराई निकल कर दुसरो को निचा दिखने में लगे है
    इन्हें अपनी समस्याओ से कोई सरोकार नही है

    कमाल की बात तो ये है की ये अपने नही दुसरे धर्मो की समीछा कर रहे है
    अपने धर्मो के लोगो को छोड़ दुसरो धर्मो की दुसरे स्तर की किताबे पड़ कर उनकी बुराई करने में लगे है ||
    इससे एक बात तो साफ़ हो जाती है कि किताबे आदमी को ज्ञान तो दे सकती है पर बुधि नही दे सकती ,
    आदमी के संस्कार ,उसका आहार ही उसकी विचार धारा तय करते है

    सो मेरी शुभकामनाये इनके साथ है २ ,४ मुस्लिम बन गए तो इनकी लाइफ ठीक ठाक गुजर जाएगी

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