श्याम क्यों है आदमी से आज बिछुड़ा आदमी |
नूह ,ईशा, मनु की बातें भूल बैठा आदमी |
हमने बनाए महल ऊंचे बिल्डिंगें दफ्तर सभी,
उनको रचाता सजाता बसता बनाता आदमी |
इन्जीनियर,मालिक औ ठेकेदार,अफसर आदमी |
दब के जो मर जाय वो मज़दूर भी है आदमी |
राहागीरी जो करे और राह चलता आदमी |
चोरी करे ,लुटे-लूटे,पकड़ें -पिटें वो आदमी |
अन्याय जो करता औ जिसपे होरहा वो आदमी |
पैरवी करता जो न्यायी , न्याय करता आदमी |
आदमी ही है प्रशासक और शासित आदमी |
नेता अभिनेता मिनिस्टर मुख्यमंत्री आदमी |
आदमी रोगी निरोगी और चिकित्सक आदमी |
हास्पीटल में करें दंगा हैं वो भी आदमी |
जो चिकित्सक की न माने बात वो भी आदमी|
और लापरवाही से मर जाय वो भी आदमी |
आदमी मारे मरे जो लाश है वो आदमी |
चीड़ें फाड़ें और विच्छेदन करें वो आदमी |
आदमी ही आदमी पर करता अत्याचार है,
जाने क्यों अब तक न समझा आदमी को आदमी |
क्यों न अपनी नस्ल को ही मान देता आदमी |
जीना मरना क्या हुआ ना आदमी का आदमी |
वो भला क्या किसी का अपना हुआ ना आदमी |
अपनी सीमा मान औ सम्मान खोता आदमी |
गंगा यमुना सूख कर पानी स्वयं ही मांगतीं |
पीगया है अपनी ही आँखों का पानी आदमी |
हम जो खुद अच्छे रहें अच्छा रहे हर आदमी |
श्याम, क्यों यह आज तक समझा नहीं हर आदमी ||
1 comments:
आपकी रचना अच्छी लगी .
Post a Comment