सबका दिल चाहता है कि उसे सरकारी नौकरी मिले .नौकरियां देते समय सरकार को चाहिए कि वे सभी को समान अवसर दें ताकि अवसर के अभाव के कारण कोई योग्य उम्मीदवार नौकरी से वंचित न रह जाए . दुर्भाग्य से भारत में इस मामले में व्यवस्था कमजोर ही है .भारत के राज्य हरियाणा में स्थिति और भी चिंताजनक है .
भ्रष्टाचार , भाई-भतीजावाद तो पूरे देश में चरम पर है . हरियाणा इनके सिवा एक और समस्या से जूझ रहा है . यहाँ शिक्षकों की भर्ती में दोहरी नीति अपनाई गई है .एक तरफ काबिल शिक्षक तलाशने के लिए पात्रता परीक्षा ( STET ) का आयोजन किया गया , इतना ही नहीं उनमें से आगे छंटनी के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट और इंटरव्यू जैसी शर्तें है , अर्थात नौकरी प्राप्त करना लोहे के चने चबाना है . दूसरी तरफ अतिथि अध्यापकों को आसानी से ,बिना मैरिट के नौकरी दी गई. अब सरकार हर रोज़ इनकी कोई-न-कोई शर्त मानकर इन्हें स्थायी करने क़ी और बढ़ रही है ,यह सरासर भेदभाव है .
अतिथि अध्यापक क्या हैं ? इनकी नियुक्ति कैसे हुई ? यह भी स्पष्ट होना चाहिए . सत्र के दौरान काम चलाने के लिए सरकार ने जिस गाँव में पद रिक्त था , उसी गाँव के उम्मीदवार को नौकरी दी , इससे 40 % वाले नौकरी पा गए क्योंकि उनके गाँव में अध्यापक का पद रिक्त था , जबकि 70 % वाले नौकरी से वंचित रह गए क्योंकि उनके गाँव में या तो स्कूल नहीं था ( लेक्चरर के मामले में ऐसा हुआ ) या फिर पद रिक्त नहीं था . शुरुआत में यह भर्ती तीन माह के लिए थी , बाद में इसे एक साल तक बढ़ा दिया गया .
इसके बाद पात्रता परीक्षा की शुरुआत हुई . सरकार के पास हजारों की तादाद में पात्र अध्यापक अक्टूबर 08 में उपलब्ध हो गए, लेकिन इन्हें नौकरी देने की बजाए अतिथि अध्यापको को अनुबंध प्रदान कर दिया गया . जब सरकार यह मान रही है कि योग्य अध्यापक वही है जो पात्रता परीक्षा पास करता है , तब पात्रता पास उम्मीदवारों के होते हुए उन्हें मौका दिए बिना अपात्र अध्यापकों को अनुबंध कैसे प्रदान किया जा सकता है ?
अब तक जो हुआ वो ठीक तो नहीं लेकिन इसके बारे में कुछ किया भी नहीं जा सकता किन्तु अब आगे से इसे ठीक करना जरूरी है . अप्रैल 2011 में जब हरियाणा में शिक्षा का नया ढांचा अपनाया जा रहा है , तब जरूरी है कि अनुबंधित अध्यापकों कि जगह स्थायी भर्ती हो और यदि अनुबंधित अध्यापक रखने जरूरी हों तों नए सिरे से जिले स्तर पर मैरिट बनाकर अनुबंध प्रदान किया जाए ताकि सबको नौकरी का समान अवसर मिल सके जो सबका मौलिक अधिकार है .
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1 comments:
अब तो हर जगह यही हाल है और सुधार की कोई गुंजाईश नहीं दिखती
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