क्या मनमाना फेसला देने वाले जज के खिलाफ कार्यवाही होना चाहिए
देश में कानून हे नीचे की अदालत अगर बरी करती हे तो उस के खिलाफ अपील होगी ,अगर नीचे की अदालत सज़ा देती हे तो हाईकोर्ट में अपील होगी और कई फेसले ऐसे भी होते हें जो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाकर उल्ट जाते हें या फिर बदल जाते हें जो लोग जेल में सिसकते रहते हें उन्हें सालों बाद बरी कर दिया जाता हे या जो लोग बाहर न्याय व्यवस्था का मखोल उड़ाते रहते हें उन्हें बाद में जेल भेज दिया जाता हे लेकिन इस मामले में एक गलत फेसला देने वाले अधीनस्थ जज के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाती और हालात यह हें के मिडिया में छाने के लियें कई जज अजीबोगरीब फेसले दे रहे हें जिनका कोई विधिक अस्तित्व नहीं हे , न्यायिक व्यवस्था के बारे में राजस्थान की स्थिति यह हे के यहाँ मजिस्ट्रेटों को बिना किसी विधिक प्रक्रिया के फास्ट ट्रेक जज बना दिया गया जो मजिस्ट्रेट तीन वर्ष तक की ही सज़ा दे सकता हे उस मजिस्ट्रेट को फांसी की सजा दें का अख्तियार दे दिया कोटा में कई मामलों में फास्ट ट्रेक जज जिसकी मानसिकता केवल मजिस्ट्रेट की थी उन्होंने लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई लेकिन हाईकोर्ट ने अपील पेश होते ही दुसरे दिन फांसी की सजा खारिज कर दी तो जिन मामलों में फांसी की सजा एक तमाशा बनाई जाती हो वहां अगर सजा उलटी जाये तो ऐसे जज को बख्शना नहीं चाहिए उनके खिलाफ कार्यवाही होना चाहिए , राजस्थान में फिर ऐ डी जे की परीक्षाएं हुईं क्योंकि यह फास्ट ट्रेक जज कार्यवाहक जज थे इनको मजिस्ट्रेट का ही दर्जा था इसलियें यह भी जज बनना चाहते थे इन्होने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा ली गयी जज की परीक्षा में हिस्सा लिया ओर सभी जज के पद पर कार्यरत मजिस्ट्रेट फेल हो गये यानि हाईकोर्ट राजस्थान ने जिन लोगों को जज का काम देकर फांसी की सज़ा देने का अख्तियार दे रखा हे वोह जज हाईकोर्ट ने फेल कर दिए और उन्हें जज बनने लायक नहीं माना लेकिन सिस्टम देखिये फिर भी वही मजिस्ट्रेट जज का काम गेर कानूनी तरीके से कर रहे हे ।
ऐसी अनियमितताओं में देश की न्यायिक व्यवस्था में अराजकता तो आ ही रही हे सब जानते हें हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति केसे होती हे अभी राजस्थान में जज की नियुक्तियों में भ्रस्ताचार का भंडा फोड़ हुआ हे रिटायर होने के बाद यह जज साहब कहा केसे राजनेताओं के तलवे चाट कर खुद को किसी आयोग में कुछ बना दें के प्रयासं में रहते हे यह कहानिया किसी से छुपी नहीं हे ऐसे में न्यायिक अराजकता को सूधारने के लियें अगर फेसला बदलता हे तो निचली अदालत के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही होना चाहिए ताकि प्रारम्भ से ही फेसला अंदाज़े और जज्बात के आधार पर नहीं न्यायिक गुणवत्ता के आधार पर हो ।
गोधरा मामले में बचाव पक्ष के वकील आई एम मुंशी ने जब मिडिया को बताया की अभी फेसले की कोपी उन्हें नहीं मिली हे तो देश के किसी भी कानून के जानकार या मिडिया ने या हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट ने गोधरा के जज साहब से यह सवाल नहीं किया के हमारे देश के संविधान हमारे देश के दंड विधान दंड प्रक्रिया संहिता में किसी भी अभियुक्त को सज़ा देने पर तुरंत मुफ्त नकल दिया जाना आवश्यक हे लेकिन इस गम्भीर मामले में अगर नकल वक्त पर नहीं दी गयी तो विधि नियमों का उल्न्न्घन तो क्या ही गया हे आखिर कोनसी मजबूरी थी जो दोषी लोगों को तुरंत फेसले की नकल नहीं दी गयी फेसले की इतनी लम्बी तारीख प्रावधान के तहत हाईकोर्ट से फांसी के फेसले की पुष्ठी फिर भी नकल वक्त पर नहीं यह अनियमितता नहीं तो और क्या हे ।
देश की अदालतें फेसला कुछ भी दे किसी को कोई एतराज़ नहीं लेकिन हाईकोर्ट में समीक्षा के बाद अगर फेसले में मनमानी ,लापरवाही या जज्बात या अंदाज़े के आधार पर फेसला देने का मामला प्रमाणित होता हे तो ऐसे बेपरवाही से गम्भीर फेसले देने वाले जजों का फेसला उलटते वक्त ऐसे जजों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का प्रावधान होना चाहिए क्योंकि देश की जनता इतनी सस्ती नहीं के सालों जेल में रहने के बाद उसे पता चले के उस पर गलत आरोप हे उसे बरी कर दिया गया हे और जज साहब मजे करते रहें तो दोस्तों न्यायिक व्यवस्था के सुधर के लियें इस प्रश्न को आगे बढाये देश बचाएं देश में निष्पक्ष गुणवत्ता वाली न्यायिक व्यवस्था लायें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
2 comments:
सही कह रहे हैं, गांधी जी के हत्या के पश्चात कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का खामियाजा संघ को भुगतना पडा, बाद मे अदालत ने संघ को निर्दोष बताया पर तब तक तो कितने ही स्वयंसेवक अपने कितने महत्वपूर्ण वर्ष जेल मे बिता चुके थे।
ehsaas ki parton kaa sahi ahsaas he sngh ke voh din kyaa koi lota skegaa kyaa unke voh zkhm koi bhr skegaa to fir aao si vyvsthaa ko sbhi milkr bdlen. akhtar khan akela kota rajsthan
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