ग़ज़लगंगा.dg: देवता जितने भी थे पत्थर के थे

कुछ ज़मीं के और कुछ अंबर के थे.
अक्स  सारे  डूबते  मंज़र  के  थे.

कुछ इबादत का सिला मिलता न था
देवता जितने भी थे पत्थर के थे.

दिल में कुछ, होठों पे कुछ, चेहरे पे कुछ
किस कदर मक्कार हम अंदर के थे.

खुल के कुछ कहने की गुंजाइश न थी
हम निशाने पर किसी खंज़र के थे.

मेरी बातें गौर से सुनते थे सब
हम उड़ाते जब तलक बेपर के थे.

आस्मां को नापना मुश्किल न था
फ़िक्र में हमलोग बालो-पर के थे.

उलझनों में इस कदर जकड़े थे हम
हम न दफ्तर के न अपने घर के थे.

तोड़ डाली वक़्त ने सारी अकड़
तेज़ वर्ना हम भी कुछ तेवर के थे.

-----देवेंद्र गौतम


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खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे


दोस्तों ! आखिरकार टीम अन्ना को जंतर-मंतर पर अनशन करने की अनुमति मिल गई है। मिली जानकारी के मुताबिक, शनिवार को टीम अन्ना को 25 जुलाई से 8 अगस्त तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन करने के लिए दिल्ली पुलिस की इजाजत मिल गई है । गौरतलब है कि दो दिन पहले दिल्ली पुलिस ने मानसून सेशन के हवाला देते हुए टीम अन्ना को अनुमति देने से मना कर दिया था। टीम अन्ना के अहम अरविंद केजरीवाल के अनुसार दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से शनिवार को मुलाकात के बाद यह परमिशन दी गई है। वहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि कुछ शर्तों के साथ टीम अन्ना को यह अनुमति दी गई है । 
दोस्तों ! आप यह मत सोचो कि- देश ने हमारे लिए क्या किया है, बल्कि यह सोचो हमने देश के लिए क्या किया है ? इस बार आप यह सोचकर "आर-पार" की लड़ाई के लिए श्री अन्ना हजारे जी के अनशन में शामिल (अपनी-अपनी योग्यता और सुविधानुसार) हो. वरना वो दिन दूर नहीं. जब हम और हमारी पीढियां कीड़े-मकोड़ों की तरह से रेंग-रेंगकर मरेगी. आज हमारे देश को भ्रष्टाचार ने खोखला कर दिया है. माना आज हम बहुत कमजोर है, लेकिन "एकजुट" होकर लड़ो तब कोई हम सबसे ज्यादा ताकतवर नहीं है. 
 इतिहास गवाह रहा कि जब जब जनता ने एकजुट होकर अपने अधिकारों को लेने के लिए लड़ाई (मांग) की है, तब तब उसको सफलता मिली है. लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों. यह मेरी-तुम्हारी लड़ाई नहीं है. हम सब की लड़ाई है. मौत आज भी आनी है और मौत कल भी आनी है. मौत से मत डरो. मौत एक सच्चाई है. इसको दिल से स्वीकार करो.  
            पूरा आलेख यहाँ सिरफिरा-आजाद पंछी: लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों क्लिक करके पढ़ें.
अगर हम अपना-अपना राग और अपनी अपनी डपली बजाते रहे तो हमें कभी कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून नहीं मिलेगा. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि गीदड़ की मौत मरना चाहते हो या शेर की मौत मरना चाहते हो. सब जोर से कहो कि- खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे. जो हमें जन लोकपाल बिल नहीं देगा तब हम यहाँ(ससंद) रहने नहीं देंगे. 
 निम्नलिखित समाचार भी पढ़ें   भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई
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जानते हैं शादी की सबसे अच्छी बात क्या है ?


पुरानी ब्लागर पुराने लिंक बांट रही है. कल देखा तो 3 पुरानी पोस्ट के लिंक थे. उनमें उसकी फ़ज़ीहत के क़िस्से थे. अक्ल पुरानी हो और उसमें टेंशन भी घुस जाए तो ब्लागर ऐसा कर देता है. किसी ने समझाया होगा तो उसने वे तीनों पोस्ट के लिंक हटा दिए. आज सुबह खोला तो पेज़ एक्ज़िस्ट नहीं था और अब ‘कारण बताओ‘ के शीर्षक पर क्लिक करो तो वहां अब न यह शीर्षक है और न ही वे 3 पुराने लिंक. थोड़ा सा भी ईगो पर चोट लग जाए तो ब्लागर कितना अपसैट हो जाता है ?
वह किसी काम का नहीं रह जाता. बस नए पुराने लिंक ही बांटता रहता है. ख़ुद भी बेचैन रहता है और दूसरों में भी चेतावनियां दे कर बेचैनी फैलाता रहता है. ऐसे ही लोगों ने ब्लागिंग का कबाड़ा करके रख दिया है. आज ही अख़बार में भी आया है-
फ़ेसबुक बढ़ा रहा है बेचैनी
हिंदी ब्लागिंग का हाल देखो तो यह बेचैनी के साथ परेशानी भी बढ़ा रही है. 

शीशा हमें तो आपको पत्थर कहा गया
दोनों के सिलसिले में ये बेहतर कहा गया

ख़ुददारियों की राह पे जो गामज़न रहे
उनको हमारे शहर में ख़ुदसर कहा गया

इक मुख्तसर सी झील न जो कर सका उबूर
इस दौर में उसी को शनावर कहा गया

उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया

मैं ही वो सख्त जान हूं कि जिसके वास्ते
तपती हुई चट्टान को बिस्तर कहा गया

दोस्तो ! शादी की न हो और सावन आ जाए तो फिर कितना ही कारण पूछते रहो, बताने कोई भी नहीं आता। शादी की सबसे अच्छी बात यह है कि यह इतने सारे नए नए मसले खड़े कर देती है कि पुराने मसले उनके सामने छोटे लगने लगते हैं और तब वह उन्हें नज़र अंदाज़ कर देता है।
कारण पूछ कर जीना भी कोई जीना है, ख़ास तौर से उम्र के आखि़री पड़ाव में।
वैसे शादियां इस उम्र में भी हो जाती हैं और ग़लती तो कभी भी सुधारी जा सकती है।
अपनी शादी न करने कोई कारण न बताओ, बस शादी कर लो। ख़ुद भी चैन से जिओ और दूसरों को भी चैन से जीने दो। 
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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