पुरानी ब्लागर पुराने लिंक बांट रही है. कल देखा तो 3 पुरानी पोस्ट के लिंक थे. उनमें उसकी फ़ज़ीहत के क़िस्से थे. अक्ल पुरानी हो और उसमें टेंशन भी घुस जाए तो ब्लागर ऐसा कर देता है. किसी ने समझाया होगा तो उसने वे तीनों पोस्ट के लिंक हटा दिए. आज सुबह खोला तो पेज़ एक्ज़िस्ट नहीं था और अब ‘कारण बताओ‘ के शीर्षक पर क्लिक करो तो वहां अब न यह शीर्षक है और न ही वे 3 पुराने लिंक. थोड़ा सा भी ईगो पर चोट लग जाए तो ब्लागर कितना अपसैट हो जाता है ?
वह किसी काम का नहीं रह जाता. बस नए पुराने लिंक ही बांटता रहता है. ख़ुद भी बेचैन रहता है और दूसरों में भी चेतावनियां दे कर बेचैनी फैलाता रहता है. ऐसे ही लोगों ने ब्लागिंग का कबाड़ा करके रख दिया है. आज ही अख़बार में भी आया है-
फ़ेसबुक बढ़ा रहा है बेचैनी
हिंदी ब्लागिंग का हाल देखो तो यह बेचैनी के साथ परेशानी भी बढ़ा रही है.
शीशा हमें तो आपको पत्थर कहा गया
दोनों के सिलसिले में ये बेहतर कहा गया
ख़ुददारियों की राह पे जो गामज़न रहे
उनको हमारे शहर में ख़ुदसर कहा गया
इक मुख्तसर सी झील न जो कर सका उबूर
इस दौर में उसी को शनावर कहा गया
उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया
मैं ही वो सख्त जान हूं कि जिसके वास्ते
तपती हुई चट्टान को बिस्तर कहा गया
दोस्तो ! शादी की न हो और सावन आ जाए तो फिर कितना ही कारण पूछते रहो, बताने कोई भी नहीं आता। शादी की सबसे अच्छी बात यह है कि यह इतने सारे नए नए मसले खड़े कर देती है कि पुराने मसले उनके सामने छोटे लगने लगते हैं और तब वह उन्हें नज़र अंदाज़ कर देता है।
कारण पूछ कर जीना भी कोई जीना है, ख़ास तौर से उम्र के आखि़री पड़ाव में।
वैसे शादियां इस उम्र में भी हो जाती हैं और ग़लती तो कभी भी सुधारी जा सकती है।
अपनी शादी न करने कोई कारण न बताओ, बस शादी कर लो। ख़ुद भी चैन से जिओ और दूसरों को भी चैन से जीने दो।