पहले ये -
"रूह को एक आह का हक है,
आँख को एक निगाह का हक है,
मैं भी एक दिल लेकर आया हूँ
मुझको भी एक गुनाह का हक है."
हालाँकि इस विषय पर कहने का मुझे कोई हक नहीं है किन्तु चूंकि मैं भी इस ब्लॉग से एक योगदानकर्ता के नाते जुडी हूँ तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं लिखने बैठ गयी.बात ये है की आज मेरा ध्यान इस बात पर गया की हिंद ब्लॉग फोरम के योगदान करता तो २७ हैं और समर्थक मात्र १४ आखिर ये भेदभाव क्यों ?क्या जो इस पर लिख रहे हैं वे इस ब्लॉग को सशक्त नहीं बनाना चाहते?या वे इस पर लिखे जा रहे लेखों का समर्थन नहीं करते?या वे इस ब्लॉग में कोई कमी मानते हैं?अगर ऐसा है तो आखिर क्यों?ये ब्लॉग अनवर जमाल जी ने हम सभी योगदानकर्ताओं के हाथों में सौंप रखा है और हम सभी का यह पुनीत कर्त्तव्य बनता है की हम इस की बेहतरी के लिए कार्य करें.ऐसा भी नहीं है कि हमें इसके लिए बहुत पत्थर ढ़ोने पड़ेंगे. अरे भाई हम कम से कम इस ब्लॉग के समर्थन करने वालों में तो जुड़ सकते हैं.आश्चर्य कि बात है की मुख्य निरीक्षिका रश्मि जी ही इस ब्लॉग का समर्थन नहीं कर रही हैं.ये तो वही बात हुई जो शिखा कौशिक जी इस शेर में कह रही हैं-
"अपनों कि बेफवाई ने गहरा जख्म दिया,
गैरों की बात क्या करें वो थे ही कब हमारे."
शालिनी कौशिक
6 comments:
सही कहा शालिनी जी योगदानकर्ताओं को तो समर्थक होना ही चाहिए...
आपको ब्लॉग की बेहतरी के बारे में बहुत अच्छा ध्यान दिलाया है । इसमें तो मुझे लगता है कि रश्मि प्रभा जी के साथ मैं खुद और आप दोनों बहनें भी नज़र नहीं आ रही हैं ?
:)
bahn shaalini ji hm saath saath hen aapki bhtrin pstuti he . akhtar khan akela kota rajsthan
anwar jamal ji dhyan se dekhiye main aur shikha chitr roop me upasthit hain ham jo kam nahi karte ya sahi nahi samjhte use karne ko kisi se nahi kahte...
yaad dilane ke lie dhnyvad
maine ab follow kar liya hai
----- sahityasurbhi.blogspot.com
शालिनी जी आप भी मज़ाक कर देती हैं, ध्यान से देखने और पढने की आदत सबको थोडे ही होती है।
मैं अभी तब समर्थक सूची में नहीं हूं उसके अपने कारण हैं आप समझती होगी, क्षमा चाहता हूं मज़बूर हूँ।
Post a Comment