हिन्दू और मुसलमान, दोनों में लोकप्रिय थे बाबा फ़रीद

Posted on
  • Saturday, September 24, 2011
  • by
  • DR. ANWER JAMAL
  • in
  • Labels:

  • बाबा फ़रीदउद्दीन गंजशकर का जन्म मुल्तान में हुआ था। ये बाबा फ़रीद के नाम से प्रसिद्घ हुए। पंजाब के फरीदकोट शहर का नाम बाबा फरीद के नाम पर ही पड़ा है। फरीद वर्तमान हरियाणा के हांसी कस्बे में 12 वर्ष तक रहे सूफी प्रचार किया। हांसी सूफी विचारधारा के केन्द्र के तौर पर विकसित हुआ। बाबा फरीद से भेंट करने के लिए यहां मशहूर सूफी आए। हांसी में चार कुतुब के नाम से आज भी ऐतिहासिक स्मारक है। बाबा फरीद को उनकी इच्छा के अनुसार उनको पंजाब के पाकपटन में दफनाया गया। आज भी यह प्रसिद्घ तीर्थ-स्थल बना हुआ है।
    बाबा फरीद के शिष्य हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। वे दोनों में लोकप्रिय थे। वे सत्ता के साथ कभी नहीं मिले और न ही सत्ता के जुल्मों को उन्होंने कभी उचित ठहराया। सत्ता से दूरी बनाए रखने और लोगों से जुड़े रहने का संदेश उन्होंने अपने शिष्यों को दिया। निजामुद्दीन औलिया भी बाबा फरीद के शिष्य बन गए। निजामुद्दीन औलिया से जब कुछ सुल्तानों ने भेंट करनी चाही तो उन्होंने कहा कि मेरे गुरु का उपदेश है कि सत्ता से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना। पाकपटन में उस समय का सुल्तान बलबन सोने-चांदी भेंट करने के लिए गया, तो उनकी भेंट ठुकराते हुए कहा कि 'बादशाह गांव और सोने चांदी की चमक दिखाकर हमें एहसान के बोझ से दबाना चाहते हैं। हम तो ऐसे खुदा के बन्दे हैं जो रिजक भी देता है मगर एहसान कभी नहीं जताता।'
    बाबा फरीद पंजाबी के पहले कवि हैं। पंजाब की प्रसिद्घ रचना 'हीर रांझा' के कवि वारिसशाह ने, अपनी रचना के आरम्भ में बाबा फरीद को 'कामिल पीर' कहकर संबोधित किया, यह उनके प्रति सच्चा सम्मान है। गुरुनानक देव बाबा फरीद के गद्दीधारी शेख इब्राहिम से दो बार मिले और उनसे बाबा फरीद की रचनाएं प्राप्त कीं। सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुनदेव जी ने जब 'गुरुग्रन्थ साहिब' की रचना की, तो बाबा फरीद के चार सबद और 114 श्लोकों को उसमें स्थान दिया। ''फरीद का यहां की जनभाषा 'हिन्दवी' का उपयोग करना उन्हें सामान्य जन के और निकट ले आया। उर्दू और मुलतानी पंजाबी का यह पूर्वतम मिश्र रूप ही आम लोगों की भाषा था। उलेमा लोग और अधिकारी वर्ग अपने काम फारसी में करते थे। इनसे भिन्न बाबा फरीद अपने श्रोता समाज से 'हिन्दवी' में बोलते, जिसे वे सब समझते थे और घर की ही भाषा मानते थे। फरीद पंजाबी के एक बहुत बड़े कवि भी थे सर्वप्रथम कवि, जिन्होंने आध्यात्मिक एषणा जैसे गूढ़ विषय को, वहीं के ग्राम परिवेश से चुने हुए बिम्बों और चित्रों द्वारा सजा-संवार कर जनभाषा में प्रस्तुत किया। नि:संदेह ऐसा काव्य लोकप्रिय होता ही। लोग फरीद के 'सलोकों' का पाठ करते और भावमय होकर जब गाने लगते तब तो आनन्द विभोर ही हो जाते"1
    फरीद ने इस बात पर जोर दिया कि ''ईश्वर के आगे सभी मनुष्य बराबर हैं, भले ही मत या धर्म किसी का कुछ भी हो। 'फरीदी लंगर' अर्थात सबके लिए समान भोजन का नियम सभी भेदभावों को दूर करने का ही एक और उपाय था"।2
    बाबा फरीद ने सारे संसार को एक ही तत्व की उपज माना है। संसार के सब प्राणी एक ही मिट्टी के बने हुए हैं। जब सारे एक ही मिट्टी के बने हुए हैं तो फिर उनमें कोई ऊंच नीच नहीं है। सबमें एक ही तत्व मौजूद हैं, इसलिए सब बराबर हैं, कोई छोटा बड़ा नहीं है।
    फरीदा खालुक खलक महि, खलक बसै रब माहि।
    मन्दा किस नो आखिअ, जा तिस बिनु कोई नाहि।।
    बाबा फरीद ने धार्मिक कट्टरता के खिलाफ धार्मिक उदारता को अपनाया। धर्म के बाहरी कर्मकाण्डों को छोड़कर उसके मर्म को पहचानने पर जोर दिया। बाबा फरीद ने धर्म के आन्तरिक पक्ष पर जोर दिया है न कि बाहरी दिखावे पर। उन्होंने बाहरी आडम्बरों को धर्म में अनावश्यक माना। आन्तरिक शुद्घता एवं पवित्रता पर जोर दिया और कहा कि बाहरी क्रियाओं की अपेक्षा अपने अंदर को स्वच्छ और पवित्र रखो।
    फरीदा कनि मुसला सूफू गलि, दिलि काती गुडू बाति
    बाहरि दिसै चानणा, दिलि अंधिआरी राति।

    फरीद कहते हैं कि ईश्वर का ऊंची आवाज में पुकारने की यानि स्पीकर लगाकर कीर्तन-जगराते-पाठ-जाप करने की जरूरत नहीं है, बल्कि अपने विचार व कर्मों में जो बेईमानी, झूठ व जरूरत से अधिक धन इक_ा करने के लिए किए जा रहे कुकर्मों को छोड़़कर स्वच्छ आचरण करना ही सच्ची पूजा है।
    फरीदा उच्चा न कर सद्द, रब्ब दिलां दीआं जाणदा।
    जे तुध विच कलब्ब, सो मझा हूं दूर कर।।

    यदि तुम हज के लिए जाना चाहते हो तो हज तो हृदय में ही है। अपने हृदय में झांककर देखो। सच्चा हाजी बनो।
    फरीदा जे तू वंजे हज, हज हब्भो ही जीआ में
    लाह-दिले दी लज, सच्चा हाजी तंा थीये ।।

    तेरे अन्दर ही मक्का है तेरे अन्दर ही मक्का की मीनारें और मेहराब हैं। तेरे अन्दर ही काबा हैं। तू कहां नमन अहा कर रहा है। तीर्थ, व्रत, यात्रा करना ढोंग है भक्ति नहीं। श्रद्घा व्यक्ति के अन्दर होती है। बाहर प्रदर्शन से नहीं।
    फरीदा मंझ मक्का मंझ, माड़ीयां मंझे ही महराब ।
    मंझे ही कावा थीआ, कैं दे करीं नमाज ।।

    सिर मुंडा लेने से क्या होगा ? कितनी भेड़ों का सिर मुंडा जा चुका है लेकिन किसी को स्वर्ग नहीं मिला।
    मनां मुन्न मुनाइयां, सिर मुन्ने क्या हो ?
    केती भेडां मुन्नीआं, सुरग न लद्धी को ?
    इसलिए सिर मुंडाने, व्रत रखने, तीर्थों की यात्रा करने, गेरुए वस्त्र या काले वस्त्र धारण करने तथा पूजा-पाठ, जप-माला, तिलक लगाने आदि के ढोंग-पाखण्ड करने में धर्म नहीं है बल्कि इनको त्यागकर स्वच्छ करने, किसी का मन न दुखाने, अहंकार त्यागने व शोषण-लूट व छल में शामिल न होने में ही सच्चा धर्म है। हृदय में पाप भरा हो तो सियाह चोला धरण करने से, कपड़ा फिर चाहे कैसा ही पहनो, लेकिन उससे फकीर नहीं बन सकते।
    फरीदा काले मैडे कपड़े काला मैडा वेसु।
    गुनही भरिया मै फिरा लोकु कहै दरवेसु।।
    बाबा फरीद ने कहा कि यदि तू समझदार है तो बुरे काम न कर, अपने कार्यों को देख। अपने गिरेबान में झांककर देख कि तूने कितने अच्छे काम किए हैं और कितने बुरे काम किए हैं
    फरीदा जे तू अकलि लतीफु काले लिखु न लेख।
    आपनडे गिरीवान महिं, सिरु नीवां करि देख।।
    जिन्होंने शानदार भवन बनवाए थे वे भी यहां से चले गए। उन्होंने संसार में झूठ का कारोबार किया ओर अन्तत: कब्र में दफन किए गए। अर्थात जिन्होंने समाज के शोषण, लूट से अपने ऐश्वर्य-विलास के लिए सामान एकत्रित किया वे भी मिट्टी में मिल गए।
    कोठे मण्डप माड़ीयां उसारेदे भी गए ।
    कूड़ा सौदा करि गए गोरी आए गए ।।
    फरीद ने गरीबों की सेवा को ही सच्चा धर्म माना है। उनका संदेश है कि अपना आदर सम्मान कराने के लिए गरीब और दीन-दुखियों के बीच बैठकर उनकी सेवा में सहयोग करो। इसीलिए उन्होंने अमीरी से दूर गरीबी में रहना स्वीकार किया। मिट्टी के बारे में उन्होंने कहा कि उससे बड़ा इस संसार में कोई नहीं है, उसकी निन्दा न करो। वह मनुष्य का साथ देती है,जब तक मनुष्य जीवित रहता है ,तब तक वह उसके पैरों के नीचे रहती है उसको सहारा देती है, लेकिन जब मनुष्य मर जाता है तो वह उसके उस पर आती है, उसको ढक लेती है।
    फरीदा खाकु न निंदिअै, खाकू जेडु न कोई।
    जीवदिआं पैरां तलै , मुइयां उपरि होई ।

    सब्र जीवन का उद्देश्य है, यदि मनुष्य इसे दृढ़ता से अपना ले तो बढ़कर दरिया बन जाएगा यदि सब्र को तोड़ दे तो अवारा प्रलय जाएगा। अर्थात सब्र की सीमा को तोड़कर व्यक्ति शोषण करे तो वह मनुष्य के लिए नुकसान दायक है।
    सबर एह सुआऊ जे तू बंदा दिडु करहि ।
    वध् िथीवहि दरीआऊ, टुटि न थीवहि वाहड़ा ।।
    कईयों के पास जरूरत से अधिक आटा है तो कईयों के नमक भी नहीं है। वे सब पहचाने जायेंगे और उनमें से किसको सजा मिलेगी। फरीद कहते हैं कि समाज में कुछ ने शोषण करके बहुत अधिक इक_ा कर लिया और कुछ के पास जरूरत से बहुत कम है। समाज में यह असमानता के दोषी लोग सजा के पात्र हैं।
    फरीदा इकनां आटा अगला इकना नाही लोणु ।
    अजै गए सिंआपसण चोटा खासी कउणु ।।
    जिन शासकों-राजाओंं के आस-पास नगाड़े बजते थे, सिर पर छत्र थे, जिनके द्वारों पर ढोल बजे थे और जिनकी प्रशंसा में चारण-भाट गीत गाते थे। अन्त में वे भी कब्रिस्तान में सो गए और अनाथों की तरह धरती में गाड़ दिए गए। फरीद का कहना है कि छल, कपट, झूठ, बेईमानी, चोरी, ठगी और व्यक्ति की मेहनत का शोषण बहुत बुरा है।
    पासि दमामे छतु सिरि भेरी सडो रड
    जाइ सुते जीराण महि थीए अतीमा गड ।
    जब तक संसार में जिन्दा हो, कहीं पांव न लगाओ, एक कफन रखकर सब कुछ लुटा दो। अर्थात संसार में जमीन-जायदाद न बनाओ।
    जे जे जीवें दुनी ते खुरचे कहीं न लाय ।
    इक्को खपफ्फग रख के हारे सब्भो देह लुटाय ।।
    जो शासक संसार पर राज करते थे, राजा कहलाते थे। जिनके आगे-आगे प्यादे और पीछे घोड़े चलते थे। जो खुद पालकियों में सवारी करते थे और ऊपर सेवक चंवर झुलाते थे, जिनके सोने के लिए सेज भी सेवक बिछाते थे उनकी कब्रे भी दूर से ही नजर आ रही हैं।
    फरीदा करन हकूमत दुनी दी, हाकिम नाओं धन ।
    आगे धैल पिआदिआं पिच्छे कोत चलन ।।
    चढ़ चल्लण सुख-आसनी, उप्पर चैर झुलन ।
    सेज बिछावन पाहरू जित्थे जाइ सवन ।।
    तिन्हां जनां दीआं ढेरीआं दूरों पइआं दिसन्न ।
    आठों पहर दिन-रात बेशक पांव पसार कर सोओ, जप-तप कुछ न करो लेकिन अपने अंदर से अहंकार का त्याग कर दो। फरीद ने आचरण को सुधरने पर जोर दिया है।
    फरीदा पांव पसार के, अठ पहर ही सौं ।
    लेखा कोई न पुच्छई, जे विच्चों जावी हौं ।।
    फरीद के काव्य का मुख्य विषय है - मानव और आध्यात्मिकता। घड़ी-पल उन्हें चिन्ता है तो मानव की, धरती पर उसके चार दिन की, उसके अनिश्चित जीवन और चिरदिन-व्यापी मृत्यु भय की, निर्वश जनसमूह के दुर्दिन और भूख की, उसे घेरे आयी निरंकुश अन्याय की, सत्ता और वैभव के चौंध-भरे सम्मोहन की, और अर्थहीन मायाचक्रों में समय के अनर्थकर विनाश की। फरीद ने सामाजिक और सदाचरण पर बल दिया, पर सभी धर्मों में तो यह समान रूप से विहित था।"
    बाबा फरीद का जीवन और शिक्षाएं राष्ट्रीय एकता की कड़ी हैं। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों में एकता स्थापित करने की कोशिश की, दोनों सम्प्रदाय के लोगों को एक दूसरे के करीब लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। दोनों धर्मों के सार को पहचाना और उनकी आन्तरिक एकता को उद्घाटित किया। उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। वे संतों के लिए भी आदर्श थे, वे कभी सत्ता के पास भी नहीं गए, वे सच्चे अर्थों में संत थे।

    संदर्भ:
    1- बाबा फरीद; बलवन्त सिंह; साहित्य अकादमी,नई दिल्ली; 2002; पृ.34
    2- बाबा फरीद; बलवन्त सिंह; साहित्य अकादमी,नई दिल्ली; पृ. 37

    साझी विरासत

    par सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र

    0 comments:

    Read Qur'an in Hindi

    Read Qur'an in Hindi
    Translation

    Followers

    Wievers

    join india

    गर्मियों की छुट्टियां

    अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

    Check Page Rank of your blog

    This page rank checking tool is powered by Page Rank Checker service

    Promote Your Blog

    Hindu Rituals and Practices

    Technical Help

    • - कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Toolsप्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इन...
      11 years ago

    हिन्दी लिखने के लिए

    Transliteration by Microsoft

    Host

    Host
    Prerna Argal, Host : Bloggers' Meet Weekly, प्रत्येक सोमवार
    Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

    Popular Posts Weekly

    Popular Posts

    हिंदी ब्लॉगिंग गाइड Hindi Blogging Guide

    हिंदी ब्लॉगिंग गाइड Hindi Blogging Guide
    नए ब्लॉगर मैदान में आएंगे तो हिंदी ब्लॉगिंग को एक नई ऊर्जा मिलेगी।
    Powered by Blogger.
     
    Copyright (c) 2010 प्यारी माँ. All rights reserved.