बटला हाउस जैसी मुठभेड़ों के ख़िलाफ एक संयुक्त मोर्चा

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  • Tuesday, September 20, 2011
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  • HAKEEM YUNUS KHAN
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  • बाटला जैसे फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ देश के सेकुलर समाज और मुसलमानों को सड़क पर उतरना होगा : अजीत शाही

    By | September 19, 2011 at 5:48 pm | No comments | मुद्दा | Tags: , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ,
    Sanjarpurसंजरपुर आजमगढ़ 19 सितम्बर 2011 । बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर की तीसरी बरसी पर संजरपुर में आयोजित साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और न्यायिक साम्प्रदायिकता के खिलाफ आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए तहलका के संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार अजीत शाही ने कहा कि बाटला जैसे फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ देश के सेकुलर समाज और मुसलमानों को सड़क पर उतरना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार,पिछले 10 साल की तमाम आतंकी घटनाओं में पकड़े गये लोगों को न्याय दिलाने के लिए एक ज्यूडिशियल कमीशन का गठन किसी सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज के नेतृत्व में होना चाहिए करे। जो एक साल के भीतर अपनी रिपोर्ट दे।
    2004 में गुजरात पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार दी गई इशरत जहां की मां शमीमा कौसर ने कहा कि हमारी बेटी के साथ जो हुआ आप लोगो के साथ न हो,इसलिए यह लड़ाई हम लड़ रहे हैं। जिन लोगों ने हमारी बेटी को मारा है,उन्हें सजा दिलाने के लिए हम लोग लड़ रहे हैं,जिसमें हमें आपकी जरूरत है। इशरत के भाई अनवर इकबाल ने कहा कि सरकार की नाइंसाफी के खिलाफ हम सब एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ेंगे। पौने चार साल बाद उत्तराखंड की जेल से रिहा हुए मानवाधिकार नेता और पत्रकार प्रशांत राही ने कहा कि सरकार सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं,बल्कि आदिवासियों और दलितों जैसे तमाम वंचित तबकों के अपने हक और अधिकार के लिए खड़े होने से रोकने के लिए फर्जी एनकाउंटरों में निशाना बना रही है। उन्होंने कहा कि वंचित तबकों का मनोबल तोड़ने के लिए सरकारों ने पुलिस को खुली छूट दी है। बाटला हाउस प्रकरण इसी का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि देश संविधान के तहत चले इसके लिए जरूरी है कि एक तमाम वंचित तबके एकजुट होकर सड़कों पर उतरे।
    वरिष्ठ माकपा नेता और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने कहा कि आज जब मोदी अहमदाबाद में उपवास का ढोंग कर रहे हैं,ऐसे में इशरत जहां, जिसको मोदी की सरकार ने फर्जी मुठभेड़ में मार डाला, उनकी मां और भाई-बहन का संजरपुर में आना काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इशरत के मां के न्याय की लड़ाई मोदी को सलाखों के पीछे पहुंचा देगी। बस जरूरत है कि न्याय की लड़ाई निरंतर चलती रहे।
    पीयूसीएल के राष्ट्रीय सचिव चितरंजन सिंह ने कहा कि न्यायपालिक में बढ़ती साम्प्रदायिकता देश की न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक है। उन्होंने कहा कि पीयूसीएल आतंकी घटनाओं की जांच के लिए ज्यूडिशियल कमीशन की मांग के ले देशव्यापी अभियान चलायेगा।
    इसी बात को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली से आये मानवाधिकार नेता महताब आलम ने कहा कि संजरपुर के इस आयोजन के साथ ही पूरे देश में  ‘इंडिया अगेस्ट टेरिरिज्म’ का अभियान चलाया जायेगा। जिसमें ज्यूडिशियल आयोग की मांग प्रमुख होगी। जिसकी जिम्मेदारी हर तरह की आतंकवादी घटनाओं चाहे उसमें हिंदू बंद हों या मुसलमान बंद हों, सब पर अपनी रिपोर्ट देनी होगी।
    लखनऊ से आये अधिवक्ता मो.शुऐब ने कहा कि जिस तरह आतंकवाद के सवाल पर न्यायालय बिना किसी ठोस सबूतों के लंबे समय तक मुदकमों को लटकाया है, उसमें आम आदमी का मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। आजमगढ़ के ही तारिक कासिमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी पर गठित आर डी निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट को लटकाये रखा है और कोर्ट में लंबे समय से कोई गवाही नहीं करवायी जा रही है। जिससे वे जेलों में घुटने के लिए मजबूर हैं,जहां उन्हें खराब खाना व पानी दिया जा रहा है,जिससे वे धीरे-धीरे मौत के मुंह में जा रहे हैं।
    एस आर दारापुरी   ने कहा कि पुलिस की साम्प्रदायिकता की वजह से ही न जाने कितने निर्दोष मुसलमान जलों में बंद हैं। आज जरूरत है कि पुलिस की साम्प्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठे।
    बनारस से आये सुनील सहस्र बुद्धे ने कहा कि आतंकवाद की राजनीति व्यवस्था की देन है। इसलिए आतंकी घटनाओं पर सवाल उठाने के साथ पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाना जरूरी है।
    अयोध्या से आये महंत युगल किशोरशरण शास्त्री ने कहा कि हिंदू धर्म के नाम पर जो लोग राजनीति करते हैं, उनका खूफिया एजेंसियों और पुलिस के साथ वैचारिक एकता है। जिसको बेनकाब करना है, आतंकवाद की राजनीति के खिलाफ होने वाले किसी भी आंदोलन का जरूरी हिस्सा होना चाहिए। लखनऊ से आये ‘अलग दुनिया’ के के.के.वत्स ने कहा कि आजमगढ़ को मीडिया ने आतंकवाद की नर्सरी बताकर यहां के लोगों के विकास के सभी रास्तों को बंद कर दिया है। इसलिए मीडिया की साम्प्रदायिकता के खिलाफ भी आवाज उठाने की जररूत है। चित्रा सहस्र बुद्दे ने कहा कि बाटला हाउस में जो लड़के मारे गये हैं,वे शहीद हैं। और जो लोग बंद हैं, उन्हें राजनीतिक बंदी कहा जाना चाहिए, क्योंकि वे इस आतंक की राजनीति का शिकार हुए हैं।
    कार्यक्रम की अध्यक्षता हरिमंदिर पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम संचालन पीयूसीएल के प्रदेश मंत्री मसीरूद्दीन संजरी ने किया। सम्मेलन के शुरूआत में तमाम आतंकी घटनाओं की याद में मारे गये लोगों की याद में एक मिनट का मौन रखा गया। अंत में सात सूत्र प्रस्ताव पेश किया गया-
    1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा बाटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी मानने के बाद दोषी पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाय।
    2. आतंकवाद के नाम पर कई वर्षो तक जेल मे रहने के बाद बेकसूर साबित होने वालों को मुआवजा दिया जाय।
    3. इंडियन मुजाहिद्दीन पर श्वेत पत्र जारी किया जाय।
    4. पिछले दस सालों में हुई आतंकी घटनाओं और आतंकवाद के नाम पर हुई मुठभेड़ों की उच्चतम न्यायालय के कार्यरत न्यायाधीश से जांच कराई जाय।
    5. आतंकवाद के आरोप में बंद युवकों की जेलों में सुनवाई न करके फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की जाय।
    6. मानवाधिकार कार्यकर्ता व पीयूसीएल की नेता सीमा आजाद और उनके पति विश्व विजय को तत्काल रिहा किया जाय।
    7. आजमगढ़ के लोगों का पासपोर्ट बनने में उत्पन्न की जा रही बाधाओं को तत्काल रोका जाय।
    नोटः पीपुल्स इन्क्वायरी कमीशन गठित करने की घोषणा की जाती है। जिसके पूरे ढ़ांचे और कार्यक्षेत्र की विस्तृत घोषणा 2 अक्टूबर को की जायेगी।
    कार्यक्रम में मुख्य रूप से सालिम दाउदी, तारिक शफीक, जितेंद हरि पाण्डेय, फहीम अहमद, ओअज्जम शहबाज, अबु बकर फराही, मो. अकरम, आफताब अब्दुल्ला, असलम खान, कलीम अहमद, ऋषि कुमार सिंह, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, रवि शेखर, एकता सिंह, लक्ष्मण प्रसाद, अंशुमाला सिंह,बलवंत यादव,बलवीर यादव,रवि राव, अवनीश राय इत्यादि मौजूद थे।
     साभार : हस्तक्षेप डोट कॉम
    http://networkedblogs.com/nhVAw

    1 comments:

    Unknown said...

    मुझे नहीं पता कि बटला हाउस में मारे गए लोग कौन थे पर इतना पूरी दुनिया जानती है की उस मुठबेर में मरनेवाला वीर मोहन चन्द्र शर्मा एक सच्चा देशभक्त था| दुनिया ये भी न भूले की बटला हाउस के इस घटना से सप्ताह भर पहले दिल्ली में ५ जगहों पे सीरियल ब्लास्ट हुए थे जिनमे मरने वाले ३० लोगो का कोई कुसूर नहीं था, हमें उनके लिए भी लड़ना होगा| बेक़सूर अगर मरता है तो बिलकुल इसकी जाँच होनी चाहिए और साथ ही अगर वो कसूरवार साबित होते है तो निश्चय ही कोर्ट को उनके पक्षधरों पर कोर्ट के समय बर्बाद करने का जुरमाना लगाना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है|

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