मुसलमानों के संदर्भ में
राजनीति में जिसका स्वांग चल जाए वही सफल है
इस शीर्षक के तहत हमने प्रमोद जोशी जी का एक लेख पढ़ा।
इस पर हमने अपनी प्रतिक्रिया देना ज़रूरी समझा ताकि कुछ ऐसे तथ्य सामने लाए जाएं जो कि आम तौर पर लोग नहीं जानते। हमने कहा कि
मोदी भाई साहब की महत्वाकांक्षा के बारे में आपने बहुत सही लिखा है लेकिन वस्तानवी साहब को मोदी के बारे में नरम बयान देने का ख़मियाज़ा नहीं भुगतना पड़ा बल्कि हक़ीक़त को देवबंद के लोग मीडिया से ज़्यादा जानते हैं।
मदनी ख़ानदान दीन के नाम पर मुसलमानों पर बादशाहों जैसी ज़िंदगी गुज़ार रहा है। वस्तानवी साहब के आने से उनकी बादशाहत गए दौर की गुज़री हुई बात बनने वाली थी और मदरसे के छात्रों में जो जागरूकता उनके प्रबंधन में आती, उसके बाद उन्हें गुमराह करके दिल्ली में भीड़ के तौर पर इस्तेमाल करना और सोनिया गांधी को अपने पीछे मुस्लिम भीड़ दिखाकर राज्य सभा की सीट का सौदा करना संभव न रह जाता।
इसी भय के चलते आपस में गुत्थम गुत्था मदनी चाचा-भतीजा आपस में एक हो गए और दोनों के समर्थक आलिम जो शूरा के सदस्य हैं, वे भी वस्तानवी साहब के खि़लाफ़ एक हो गए। सो वस्तानवी साहब को हटना पड़ा।
दीन में सियासत करने वाले ऐसे ही लोग मुसलमानों के रहनुमा बने हुए हैं और मुसलमानों का बेड़ा ग़र्क़ करने में ऐसे ही रहनुमाओं का हाथ है।
ऐसे ही रहनुमाओं में से कुछ को एक पार्टी के साथ देखा जा सकता है तो कुछ दूसरे रहनुमाओं को उसकी मुख़ालिफ़ दूसरी पार्टी के साथ।
अटल-मोदी युगल काल में मुसलमानों के साथ जो भी बीती, उसका एक सकारात्मक पक्ष भी है और वह यह है कि मुसलमानों में इस्लाम को जानने और उस के अनुसार ज़िंदगी गुज़ारने का जज़्बा बढ़ा है और इसी के साथ दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों मुस्लिम संगठनों ने जन्म लिया जो कि अपने हमवतन बिरादरान से साथ संवाद करके उनकी ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ करने में लगा हुआ है।
लोगों की ग़लतफ़हमियां बड़ी भारी तादाद में दूर हो रही है और उम्मीद है कि जल्दी ही सारे देश के भ्रमकारों की ग़लतफ़हमियां दूर कर दी जाएगी।
यह क्रांति जो चल रही है लेकिन जिसे देखा नहीं जा रहा है, इसका परोक्ष श्रेय अटल-मोदी युगल नीति को ही जाता है।
मुसलमानों के जनजागरण में इनका अप्रतिम योगदान है।
मोदी जी की सफलता मुसलमानों में असुरक्षा के भाव को गहरा और उनकी जद्दोजहद को तेज़ ही करेगी।
ग़लतफ़हमियों को दूर होता हुआ देखना चाहें तो आपको आना होगा,
ब्लॉगर्स मीट वीकली (9) में
इस शीर्षक के तहत हमने प्रमोद जोशी जी का एक लेख पढ़ा।
इस पर हमने अपनी प्रतिक्रिया देना ज़रूरी समझा ताकि कुछ ऐसे तथ्य सामने लाए जाएं जो कि आम तौर पर लोग नहीं जानते। हमने कहा कि
मोदी भाई साहब की महत्वाकांक्षा के बारे में आपने बहुत सही लिखा है लेकिन वस्तानवी साहब को मोदी के बारे में नरम बयान देने का ख़मियाज़ा नहीं भुगतना पड़ा बल्कि हक़ीक़त को देवबंद के लोग मीडिया से ज़्यादा जानते हैं।
मदनी ख़ानदान दीन के नाम पर मुसलमानों पर बादशाहों जैसी ज़िंदगी गुज़ार रहा है। वस्तानवी साहब के आने से उनकी बादशाहत गए दौर की गुज़री हुई बात बनने वाली थी और मदरसे के छात्रों में जो जागरूकता उनके प्रबंधन में आती, उसके बाद उन्हें गुमराह करके दिल्ली में भीड़ के तौर पर इस्तेमाल करना और सोनिया गांधी को अपने पीछे मुस्लिम भीड़ दिखाकर राज्य सभा की सीट का सौदा करना संभव न रह जाता।
इसी भय के चलते आपस में गुत्थम गुत्था मदनी चाचा-भतीजा आपस में एक हो गए और दोनों के समर्थक आलिम जो शूरा के सदस्य हैं, वे भी वस्तानवी साहब के खि़लाफ़ एक हो गए। सो वस्तानवी साहब को हटना पड़ा।
दीन में सियासत करने वाले ऐसे ही लोग मुसलमानों के रहनुमा बने हुए हैं और मुसलमानों का बेड़ा ग़र्क़ करने में ऐसे ही रहनुमाओं का हाथ है।
ऐसे ही रहनुमाओं में से कुछ को एक पार्टी के साथ देखा जा सकता है तो कुछ दूसरे रहनुमाओं को उसकी मुख़ालिफ़ दूसरी पार्टी के साथ।
अटल-मोदी युगल काल में मुसलमानों के साथ जो भी बीती, उसका एक सकारात्मक पक्ष भी है और वह यह है कि मुसलमानों में इस्लाम को जानने और उस के अनुसार ज़िंदगी गुज़ारने का जज़्बा बढ़ा है और इसी के साथ दर्जनों नहीं बल्कि सैकड़ों मुस्लिम संगठनों ने जन्म लिया जो कि अपने हमवतन बिरादरान से साथ संवाद करके उनकी ‘ग़लतफ़हमियों का निवारण‘ करने में लगा हुआ है।
लोगों की ग़लतफ़हमियां बड़ी भारी तादाद में दूर हो रही है और उम्मीद है कि जल्दी ही सारे देश के भ्रमकारों की ग़लतफ़हमियां दूर कर दी जाएगी।
यह क्रांति जो चल रही है लेकिन जिसे देखा नहीं जा रहा है, इसका परोक्ष श्रेय अटल-मोदी युगल नीति को ही जाता है।
मुसलमानों के जनजागरण में इनका अप्रतिम योगदान है।
मोदी जी की सफलता मुसलमानों में असुरक्षा के भाव को गहरा और उनकी जद्दोजहद को तेज़ ही करेगी।
ग़लतफ़हमियों को दूर होता हुआ देखना चाहें तो आपको आना होगा,
ब्लॉगर्स मीट वीकली (9) में
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