मैंने आहुति बन कर देखा,यह प्रेम यज्ञ कि ज्वाला है....!!!सुषमा
मै भी दरिया हूँ  सागर मेरी मंजिल है,  मै भी सागर मेँ मिल जाऊँगी, मेरा क्या रह जायेगा...   कल बिखर जाऊँगी हर पल मेँ शबनम की तरह,  किरने चुन लेगी मुझे....  जग मुझे  खोजता रह जायेगा.....!!! सुषमा कुछ खुद के बारे में अपना इसी तरह से परिचय  देती  है ............ कानपुर उत्तरप्रदेश की सुषमा अपने निजी घरु कामकाज के साथ अपना वक्त  अल्फाजों को खुबसूरत मोतियों में पिरो कर कभी कविता तो कभी गज़ल तो कभी  आधुनिक कविता कुश्बू बिखेर रही है . चार मार्च २०११ को बहन सुषमा ने जब  अपनी पहली रचना हिंदी ब्लॉग आहुति  पर लिखी तो उन अल्फाजों में एक ऐसी हकीक़त थी के हर अल्फाज़ दिल के  गहराइयों में खुद को डुबो देने के लियें काफी था उसके बाद तो बहन सुषमा ने  कभी होली, कभी बरसात,कभी बेगाना पं , अभी अकेलापन , कभी रिश्ते मिलना  बिछुड़ना पर जो अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त की है उन रचनाओं ने तो सुषमा जी को  ब्लोगिग्न की बहतरीन रचनाकारों और साहित्यकारों में ला खड़ा किया वोह आज भी  लिख रही है जुनू में लेकिन उनके अल्फाजों की नफासत दिल को आत्मा को छू रहे  हैं और इसीलियें लोगों का दिल उनकी रचनाओं को पढ़ते रहने के लियें ही  सोचता रहता है ..............
   कानपुर उत्तरप्रदेश की सुषमा अपने निजी घरु कामकाज के साथ अपना वक्त  अल्फाजों को खुबसूरत मोतियों में पिरो कर कभी कविता तो कभी गज़ल तो कभी  आधुनिक कविता कुश्बू बिखेर रही है . चार मार्च २०११ को बहन सुषमा ने जब  अपनी पहली रचना हिंदी ब्लॉग आहुति  पर लिखी तो उन अल्फाजों में एक ऐसी हकीक़त थी के हर अल्फाज़ दिल के  गहराइयों में खुद को डुबो देने के लियें काफी था उसके बाद तो बहन सुषमा ने  कभी होली, कभी बरसात,कभी बेगाना पं , अभी अकेलापन , कभी रिश्ते मिलना  बिछुड़ना पर जो अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त की है उन रचनाओं ने तो सुषमा जी को  ब्लोगिग्न की बहतरीन रचनाकारों और साहित्यकारों में ला खड़ा किया वोह आज भी  लिख रही है जुनू में लेकिन उनके अल्फाजों की नफासत दिल को आत्मा को छू रहे  हैं और इसीलियें लोगों का दिल उनकी रचनाओं को पढ़ते रहने के लियें ही  सोचता रहता है .............. 
  
शब्दों में पिरो दिया मैंने....!!!
अपने हर एहसास,हर जज्बात
हर चाहत को
शब्दों  में पिरो दिया मैंने....
नहीं मिला जब कोई हाल-ए-दिल सुनाने के लिए
तो दिल का हाल सारा,
शब्दों में लिख दिया मैंने....! 
ना जाने कब मेरे ख्वाबो को,
मेरे एहसासों को शब्द  मिलते गए
उन शब्दों में शब्द जुड़ते गए 
और एक कविता बन गयी
पता ही नहीं चला कब
शब्दों  को अपना हमसफ़र
अपना साथी बना लिया मैंने.....!!
भीड़ में कही मैं खुद में खो गयी थी
तन्हाई ने मुझको कही खुद में समेट लिया था
मेरी बेजुबान तन्हाई को शब्दों ने खोज लिया 
अपनी उदासी अपनी सिमटी हुई दुनिया को
एक नया संसार दिया मैंने....!!!
अपने हर ख्याल,अपने हर जज्बात को
अपने  हर सवाल को शब्दों  में उतार दिया मैंने.......!!!! बहन सुषमा की यूँ तो  हर रचना में एक जिंदगी एक अहसास एक विचार एक फलसफा है लेकिन उनकी एक रचना  उनकी बगेर इजाजत आपके सामने पेश कर रहा हूँ ऐसी नवोदित हर दिल अज़ीज़ सधी हुई  रचनाकार बहन सुषमा को मेरा सलाम ............ अख्तर खान अकेला कोटा  राजस्थान 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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