देश की हालत बुरी अगर है
संसद की भी कहाँ नजर है
सूर्खी में प्रायोजित घटना
खबरों की अब यही खबर है
खुली आँख से सपना देखो
कौन जगत में अपना देखो
पहले तोप मुक़ाबिल था, अब
अखबारों का छपना देखो
चौबीस घंटे समाचार क्यों
सुनते उसको बार बार क्यों
इस पूँजी, व्यापार खेल में
सोच मीडिया है बीमार क्यों
समाचार में गाना सुन ले
नित पाखण्ड तराना सुन ले
ज्योतिष, तंत्र-मंत्र के संग में
भ्रषटाचार पुराना सुन ले
समाचार, व्यापार बने ना
कहीं झूठ आधार बने ना
सुमन सम्भालो मर्यादा को
नूतन दावेदार बने ना
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