पुस्तक- बेनीपुरी की साहित्य-साधना,            लेखक- डा0 कमलाकांत त्रिपठी
प्रकाशक- पुस्तक पथ, वाराणसी,                  वितरक- शारदा संस्कृत  संस्थान, सी. 27/59, जगतगंज, वाराणसी-221002,                                         मूल्य- 350 रूपये (पेपर बैक)।
डा0 कमलाकांत त्रिपठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘बेनीपुरी की साहित्य साधना’  भारतीय ग्राम्य जीवन और आदर्शोन्मुक्त यथार्थवाद के प्रतिनिधि कथाकार  रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य को समग्रता में व्यक्त करते हुए उसे वर्तमान  जीवन के विविध आयामों में व्याख्यायित करती है। यह पुस्तक बेनीपुरी के  जीवन-कार्य तथा साहित्य साधना का सर्वांगीण परिचय ही नहीं प्रस्तुत करता  बल्कि उनके कार्य तथा साधना का सूक्ष्म विशलेषण कर उन समस्त विशेषताओं को  अधोरेखित भी करता है जो व्यक्ति बेनीपुरी तथा लेखक बेनीपुरी को अलग कर देता  है।
पुस्तक के प्रथम दो अध्यायों में लेखक ने बेनीपुरी के साहित्य साधना के  लगभग सभी पक्षों पर दृष्टिपात किया है। कथामकता को आधार बनाते हुए उन्होने  बेनीपुरी साहित्य को दो प्रधान वर्गों में विभाजित किया है- कथा-साहित्य और  कथेतर-साहित्य। तृतीय अध्याय में डा0 त्रिपाठी ने प्रेरण स्रोत,  विषयोपन्यास, सैद्धांतिक मान्यताएं तथा कथ्य उपशीर्षकों के अन्तर्गत  बेनीपुरी के साहित्य की विशेषताओं को अंकित किया है। अन्य कतिपय  विशिष्टताओं के साथ-साथ बेनीपुरी साहित्य का जनवादी पक्ष लेखक को सर्वोपरी  लगता है। उन्होने लिखा है- ‘‘जनता के साहित्यकार बेनीपुरी ने जनता के पक्ष  को जनता की भाषा दी। उनका यह जनवादी पक्ष उनके साहित्य में सर्वत्र मुख्य  है।’’ बेनीपुरी की कथ्यगत विशिष्टताओं की चर्चा में लेखक लिखता है- ‘‘उनका  भाव लोकसंघर्ष के साथ आनन्द का भी है। परिस्थितयों के संघर्ष में  क्रांतिकारी और संघर्ष की समाप्ति के बाद उल्लास के गायक का रूप-दर्शन  बेनीपुरी में होगा।
शैलीकार की भाषा का पूरा विश्लेषण तब तक अधुरा माना जाता है जब तक  साहित्यिक भाषा की समग्र प्रक्रिया उसके विविध स्तरों की संरचना के आधार पर  सोदाहरण स्पष्ट नहीं की जाती। डाॅ0 त्रिपाठी ने पुस्तक के चतृर्थ अध्याय  ‘बेनीपुरी की भाषा शैली’ में यह कार्य बड़ी सुक्ष्मता, गहन विश्लेषण क्षमता  के साथ किया है। तुलनात्मक विवेचना का आधार ग्रहण करते हुए लेखक ने यह  स्पष्ट किया है कि भाषा के प्रत्येक स्तर के इकाई का चयन करते हुए बेनीपुरी  ने किस प्रकार प्रभाव विस्तार का ध्यान रखा है। बेनीपुरी के गद्य के  शब्द-वर्ग, वाक्य-विन्यास, परिच्छेद, विराम-चिन्ह, मुहावरें-कहावतें आदि  सभी इकाईयों की उपयोगिता तथा अनुकूलता की चर्चा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव  विस्तार के आधार पर साहित्य भाषा का सही आकलन प्रस्तुत किया है।
डा0 कमलाकांत त्रिपाठी का ग्रन्थ बेनीपुरी की साहित्य साधना बेनीपुरी की  विशिष्टता के आकलन का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। बेनीपुरी साहित्य पर अधावधि  प्रकाशित प्रबन्धों में यह प्रबंध अपना अलग स्थान रखता है। साहित्य के  अध्येताओं की आकलन परिधि के विस्तार की दृष्टि से यह निश्चय ही उपयोगी रचना  है।
 एम अफसर खां सागर
किताबघर
 Posted on Wednesday, April 18, 2012 by M. Afsar Khan  in 
बेनीपुरी साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन
    
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1 comments:
sundar prastuti.aabhar कानूनी रूप से अपराध के विरुद्ध उचित कार्यवाही sath hi avlokan karenनारियां भी कम भ्रष्ट नहीं.
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