एक नारी के रूप अनेक

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  • Friday, August 5, 2011
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  • कभी मात बन जनम ये देती,
    कभी बहन बन दुलराती;
    पत्नी बन कभी साथ निभाती,
    कभी पुत्री बन इतराती;

    कहने वाले अबला कहते,
    पर भई इनका तेज तो देख;
    काकी, दादी सब बनती ये,
    एक नारी के रूप अनेक |

    कभी शारदा बन गुण देती,
    कभी लक्ष्मी बन धन देती;
    कभी काली बन दुष्ट संहारती,
    कभी सीता बन वर देती;

    ममता भी ये, देवी भी ये,
    नत करो सर इनको देख;
    दुर्गा, चंडी सब बन जाती,
    एक नारी के रूप अनेक |

    कभी कृष्णा बन प्यास बुझाती,
    यमुना बन निच्छल करती;
    गंगा बन कभी पाप धुलाती,
    सरयू बन निर्मल करती;

    नदियाँ बन बहती जाती,
    न रोक पाओगे बांध तो देख,
    कावेरी भी, गोदावरी भी ये,
    एक नारी के रूप अनेक |

    कभी अश्रु बन नेत्र भिगोती,
    कभी पुष्प बन मुस्काती;
    कभी मेघ बन बरस हैं पड़ती,
    कभी पवन बन उड़ जाती;

    पल-पल व्याप्त कई रूप में ये,
    न जीवन है बिन इनको देख;
    जल भी ये, पावक भी ये,
    एक नारी के रूप अनेक |

    7 comments:

    DR. ANWER JAMAL said...

    वाह ,
    एक औरत के इतने रूप । आपने दिखाए बहुत खूब ।।

    Unknown said...

    धन्यवाद् अनवर जी ..

    महेन्द्र श्रीवास्तव said...

    क्या बात है,
    बहुत सुंदर रचना

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    माँ, बहन और बेटी के साथ-साथ एक सुघड़ महिला और पत्नी की भूमिका केवल नारि ही निभा सकती है!

    कुमार राधारमण said...

    प्रेम इन सभी रूपों के मूल में है।

    prerna argal said...
    This comment has been removed by the author.
    prerna argal said...

    आपकी पोस्ट " ब्लोगर्स मीट वीकली {३}"के मंच पर सोमबार ७/०८/११को शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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