अलामा इकबाल की कल्पना साकार हुई. सितारों के आगे सचमुच और जहां निकल आये. हाल में नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर खारे पानी की मौजूदगी का पता लगा लिया है. जाहिर है कि जहां पानी होगा वहां हवा होगी और जहां यह दोनों होंगे वहां जीवन भी होगा या उसके विकसित होने की संभावना भी होगी. चांद पर भी पानी के संकेत मिले हैं.मंगल ग्रह पर पानी है यह सचमुच बहुत बड़ी खबर है. उसके खारा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. मीठे को खारा और खारे को मीठा बनाना तो हमारे बाएं हाथ का खेल है. अब बढती जनसंख्या कोई समस्या नहीं रह जाएगी. मानव आबादी के सरप्लस हिस्से को आराम से मंगल ग्रह पर शिफ्ट किया जा सकेगा. अब एक ग्रह पर पानी मिल गया तो यह बात साफ़ हो गयी कि अंतरिक्ष में पानी और हवा है. उसकी मात्रा कहीं कम कहीं ज्यादा हो सकती है. उसे घटाना बढ़ाना भी हमारे वैज्ञानिकों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है. अब समस्या यह आएगी कि आबादी का कौन सा हिस्सा दूसरे ग्रहों पर पहले शिफ्ट होगा. जाहिर है कि गरीब लोग दूसरे ग्रहों पर जाने या वहां बसने का खर्च अफोर्ट नहीं कर पाएंगे. उन्हें सरकारी खर्च पर भेजा जाये या कार्पोरेट सेक्टर स्पौंसर करे तो अलग बात है. पहले बैच में तो विश्व के 100 सबसे अमीर लोग ही जाना चाहेंगे और इसपर उनका पहला हक बनता भी है. शुरू में वे वहां अपने फार्म हॉउस या रेस्ट हॉउस बनायेंगे. अगर वहां का माहौल रास आ गया तो ऐश मौज के लिए उनका इस्तेमाल करेंगे लेकिन वहां के स्थाई नागरिक शायद ही बनें. हां व्यवसाय की संभावनाएं बनें तो वे इसपर विचार कर सकते हैं. इत्तेफाक से यदि उन्हें माहौल जमा नहीं तो उनकी कोशिश होगी कि विश्व के तमाम गरीब लोगों को वहां खदेड़ दें और धरती को सिर्फ अरबपतियों के लिए आरक्षित करा लें. अमीर लोग तो जिस ग्रह का माहौल दिलकश लगेगा और दौलत कमाने की गुंजाईश होगी वे वहीं बस सकते हैं. यदि सितारों के आगे की जहां बदसूरत होगी तो तीसरी दुनिया के देशों के लोगों को वहां भेजने की व्यवस्था पहली और दूसरी दुनिया के लोग करेंगे. ऐसे किसी ग्रह का इस्तेमाल जेल के रूप में भी किया जा सकेगा. एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत विभिन्न देशों के जेलों में पड़े सजायाफ्ता कैदियों को वहां ले जाकर छोड़ दिया जा सकता है. ऐसे कैदियों के लिए किसी बिल्डिंग की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. बस अंतरिक्ष यान से उन्हें वहां ड्रॉप करा देना होगा. वापस तो वे लौट नहीं सकेंगे. हांलाकि यह भी सच है कि इसमें भी कमजोर लोग ही भेजे जायेंगे. वीआइपी कैदियों को भेजने की हिम्मत भला कौन करेगा.
लेकिन सच्चाई यह है कि देर-शबेर पूरी मानव सभ्यता को दूसरे ग्रहों पर शिफ्ट करना ही पड़ेगा. प्रकृति का तांडव दिन ब दिन तेज़ होता जा रहा है. जापान में हाल के भूकंप और परमाणु विकिरण की घटना के बाद वैज्ञानिकों को भी समझ में आ चुका है कि प्रकृति के सामने मानव का सारा ज्ञान-विज्ञानं फेल है. महाप्रलय के पदचाप साफ़ सुनाई देने लगे हैं और उसे रोक पाने में हम पूरी तरह असमर्थ हैं. धरती विनाश के कगार पर खड़ी है. कहते हैं कि यह धरती पांच महाप्रलय झेल चुकी है अब छठे का इन्तजार है. यह अलग बात है कि धरती के अंत यानी महाप्रलय की कई भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणी की तिथि टल चुकी है. लेकिन उनकी आशंकाएं कहीं से गलत नहीं हैं. यह साफ़ दिखाई दे रहा है. यह एक कटु सत्य है कि पृथ्वी पर अब मानव सभ्यता के गिने-चुने दिन ही शेष बचे हैं. शायद यही कारण है कि दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं की तेज़ी से तलाश हो रही है. अब यदि इस जीवमंडल को बचाए रखना है तो दूसरे ग्रहों पर आशियाना ढूंढना ही होगा और धीरे-धीरे न सिर्फ मनुष्य बल्कि सभी जीव-जंतुओं को शिफ्ट करना होगा. इसके लिए नूह की कश्ती का इंतज़ार करना तो उचित नहीं है न.
देवेंद्र गौतम
2 comments:
इंसान आसमान में चढ़ता जा रहा है लेकिन चरित्र में गिरता जा रहा है। ऐसी दशा में यह जहां भी जाएगा सिर्फ़ तबाही फैलाएगा। जब इंसान से धरती के पानी की क़द्र न हुई तो मंगल के खारे पानी की क़द्र क्या करेगा ?
काना तो अच्छी है मगर इसके लिए ऊपर जाना होगा!
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