वरिष्ठ पत्रकार श्री महेन्द्र श्रीवास्तव जी के लेख पर एक बहस A Dialogue

Posted on
  • Sunday, July 31, 2011
  • by
  • DR. ANWER JAMAL
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  • नीरज द्विवेदी
    आदरणीय नीरज द्विवेदी जी ! आप एक दिन पहले तक हमारी इज़्ज़त करते थे लेकिन हमने बाबा के खि़लाफ़ एक पोस्ट यहां पेश कर दी है, इसलिए अब आप हमारी इज़्ज़त नहीं करेंगे। कोई बात नहीं है। हम आपकी इज़्ज़त बदस्तूर करते रहेंगे।
    यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दू, मुस्लिम और अन्य समुदायों को धार्मिक और राजनीतिक मार्गदर्शन देने वालों में कुछ लोग भ्रष्ट भी हैं और यह भी सच है कि उनके पीछे भारी भीड़ है।
    ग़लत लोगों का मार्गदर्शन हमेशा समस्याओं को बढ़ाता है कभी उन्हें हल नहीं करता और न ही हल कर सकता है।
    इन लोगों से बहुत से लोग भावनात्मक रूप से जुड़े हुए होते हैं और इनके खि़लाफ़ लिखने का अंजाम सदैव ही बुरा होता है। आप तो सिर्फ़ हमारी इज़्ज़त न करने की ही धमकी दे रहे हैं, इस काम में तो जान तक चली जाया करती है।
    इस सबके बावजूद आप यह जान लें कि हम यहां नाम और इज़्ज़त कमाने नहीं आए हैं बल्कि सत्य की गवाही देने आए हैं।
    सत्य का तक़ाज़ा है कि अपने अनुसंधान में हमने इस जीवन और इस जगत में जो कुछ सच पाया है , उसे आप सबके सामने रख दें और मर जाएं, बस।
    पिछले दिनों दारूल उलूम देवबंद में भारी उथल-पुथल मची और मौलाना वस्तानवी को हटा दिया गया। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने मोदी की तारीफ़ करने का जुर्म किया है।
    हमने तथ्यों का विश्लेषण किया तो पाया कि मदनी ख़ानदान केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए मौलाना वस्तानवी को अपनी गंदी राजनीति का शिकार बना रहा है।
    हमने मौलाना वस्तानवी का समर्थन किया और मदनी ख़ानदान की निंदा और आलोचना की हालांकि मौलाना वस्तानवी के मुक़ाबले मदनी ख़ानदान के पीछे मुसलमानों की भारी भीड़ है और जब वे पढ़ेंगे कि 
    हमने मदनी ख़ानदान के दो सुपर मौलानाओं को ‘राहज़न‘ बताया है तो वे भी हमारी इज़्ज़त करना निश्चित ही छोड़ देंगे।
    कोई क्या छोड़ता है और क्या पकड़ता है ?
    इससे हमें कोई मतलब नहीं है। हमें तो यह देखना है कि हम सच कहते रहें और प्यार करते रहें, सबसे। इकतरफ़ा, बिना किसी बदले की उम्मीद के। नेक काम का बदला तो सिर्फ़ मालिक ही देता है भाई।
    आप योग की मूल आत्मा को जानिए और देखिए कि उसका ज्ञान पात्र व्यक्तियों को हमारे ऋषियों ने सदा ही निःशुल्क दिया है। आग, पानी, हवा और मिट्टी की तरह जो चीज़ आज तक मुफ़्त थी, उसकी शिक्षा देने के लिए भी जो आदमी मोटी फ़ीस वसूलता है वह योग की महान परंपरा को कलंकित करने का दोषी है और यह दोष इतना खुला हुआ है कि इससे इन्कार मुमकिन ही नहीं है लेकिन सत्य को देखता वही है जो भावनाओं में बहने के बजाय निष्पक्ष होकर विचार करता है।
    इसके बावजूद बाबा की मांगे जायज़ थीं। यह बात सही है और यह बात भी सही है कि सोते हुए लोगों पर लाठियां बरसाना सरासर ज़ुल्म है।
    देखिए हमारा एक लेख, जहां नीरज द्विवेदी जी से हमारा संवाद चल रहा है

    2 comments:

    Shalini kaushik said...

    aur ye bhi satya hai ki baba me netratva shamta nahi ke barabar hai kyonki janta ko pitte dekh ve mahilaon ke vastron me bhag gaye aur kahne lage ki mujhe jan se marne ke liye ye sab kiya gaya .ek satyagrhi ka aisa rop pahli bar dekha .

    prerna argal said...

    आपकी पोस्ट की चर्चा सोमवार १/०८/११ को हिंदी ब्लॉगर वीकली {२} के मंच पर की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ / हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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