जबकि अपने देश में लोग इलाज की कमी से मर रहे हों.
देश में 7 लाख डाक्टरों की कमी है. लोग मर रहे हैं मगर डाक्टर विदेश में चले जाते हैं. एक एमबीबीएस डाक्टर की पढ़ाई में एम्स में 1.50 करोड़ रूपये का ख़र्च आता है. सरकार फ़ीस की शक्ल में सिर्फ़ 1 लाख रूपया ही वसूलती है.
12 से 15 हज़ार डाक्टर स्टडी लीव लेकर अमरीका वग़ैरह में मुनाफ़ा कमा रहे हैं. इनसे भी ज़्यादा वे डाक्टर हैं जो सरकारी नौकरी में जाए बिना सीधे ही विदेश निकल लेते हैं.
इनमें से कुछ तो विदेश में बैठकर राष्ट्रवाद की डींगें भी मारते हैं मगर अपनी सेवाएं देने के लिए अपने ही देस वापस नहीं आते. राष्ट्र बीमार हो तो हो, भारत माता की संतानें रोगी हों तो हों उन्हें कोई परवाह नहीं है. उन्हें तो बस नफ़रतें फैलानी हैं और माल कमाना है.
उनकी तरफ़ से देस के लोग मरें या चाहे सिसक सिसक कर जिएं.
मज़ेदार यह है कि ऐसे विदेशियों की सेवा करने वाले ये लालची डाक्टर देस में रहकर सेवा करने वाले डाक्टरों को गालियां देने से भी नहीं चूकते.
काश ! ये लोग अपने दिल से लालच निकाल पाते और अपने देस लौटकर अपनी सेवाएं देते.
केंद्रीय स्वास्थ मंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद ने इस सिलसिले में कड़ा रूख़ अपनाया है.
उनके मौक़िफ़ की हम ताईद करते हैं.
अब माल के लालच में देश से भागे हुए डाक्टर हिंदुस्तानी समाज में ज़िल्लत की नज़रों से देखे जाएंगे और शायद वे ख़ुद भी अपनी नज़रों से गिर जाएं।
शायद यही अहसासे ज़िल्लत उन्हें अपनी वतन वापसी पर आमादा कर सके ?
ग़ुलाम नबी आज़ाद का बयान और अख़बारी रिपोर्ट यहां है-
बाहर की डॉक्टरी तो गई डिग्री
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता
स्टडी लीव लेकर विदेश जाने और वापस न आने वाले डॉक्टरों को अब अपने पेशे से हाथ धोना पड़ सकता है। केंद्र सरकार ऐसे डॉक्टरों की वापसी सुनिश्चित कराने के लिए कड़ा कदम उठाने जा रही है।
स्टडी लीव की अवधि खत्म होने के बाद डॉक्टर वापस नहीं आते हैं तो उनका रजिस्ट्रेशन निलंबित या रद्द कर दिया जाएगा। इससे वे विदेश में भी डॉक्टरी नहीं कर पाएंगे। पिछले तीन वर्षों में करीब तीन हजार डॉक्टर स्टडी के लिए विदेश गए, लेकिन ज्यादातर वापस नहीं लौटे।
चिकित्सा क्षेत्र में हो रही प्रगति के मद्देनजर डॉक्टरों को स्टडी लीव लेने से नहीं रोका जा सकता है। पिछले पांच वर्षों के दौरान एम्स से करीब तीन दर्जन डॉक्टर स्टडी लीव लेकर विदेश गए, लेकिन लौटे नहीं। ऐसे ही राममनोहर लोहिया, एलएनजेपी, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज समेत तमाम अस्पतालों के कई मनोचिकित्सक ब्रिटेन गए, लेकिन वापस कम ही आए।
1 comments:
सिस्टम के लूप होल्स का फायदा उठाके भागते रहें हैं ये तमाम भगोड़े .सोचा बहुत गया हुआ भुत अधिक नहीं .डिग्री को आवश्यक ग्रामीण क्षेत्र के प्रेक्टिस की अवधि से जोड़ने की बात भी अभी सिरे नहीं चढ़ी है .सुधार ज़रूरी हैं .ये ब्रेन दरें नहीं ब्रेन लोस है .
कृपया यहाँ भी पधारें -
रविवार, 22 अप्रैल 2012
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
वीरेंद्र शर्मा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~(वीरुभाई
)
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कितनी थी हरजाई पूनो -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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