खबरगंगा: मैंने नेत्रदान किया है..और आपने ?

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  • Friday, April 27, 2012
  • by
  • devendra gautam
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  • कई साल पहले की बात है ...शायद बी. एस सी. कर रही थी ..मेरी आँखों में कुछ परेशानी हुई तो डोक्टर के पास गयी..वहां नेत्रदान का पोस्टर लगा देखा... पहली बार इससे  परिचित हुई...उत्सुकता हुई तो पूछा, पर पूरी व सही जानकारी नहीं मिल पाई ....डॉक्टर ने बताया कि अभी हमारे शहर में ये सहूलियत उपलब्ध नहीं, पटना से संपर्क करना होगा ...फिर मै अपने कार्यों में व्यस्त होती गयी...सिविल सर्विसेस की तैयारी में लग गयी. हालाँकि इंटरव्यू  तक पहुँचने के बाद भी  अंतिम चयन नहीं हुआ ..पर इसमें कई साल निकल गए, कुछ सोचने की फुर्सत नहीं मिली...उसी दौरान एक बार टीवी पर ऐश्वर्या राय को नेत्रदान के विज्ञापन में देखा था....मुझे अजीब लगा कोई कैसे अपनी आंखे दे सकता है ?  आंखे न हो तो ये खूबसूरत दुनिया दिखेगी कैसे?  फिर सोचा जो नेत्रदान करते है वो निहायत ही भावुक किस्म के बेवकूफ होते होंगे.... कुछ साल इसी उधेड़-बुन में निकल गए...फिर एक आलेख पढ़ा और नेत्रदान का वास्तविक मतलब समझ में आया...' नेत्रदान' का मतलब ये है कि आप अपनी मृत्यु के पश्चात् 'नेत्रों ' के दान के लिए संकल्पित है...वैसे भी इस पूरे शरीर का मतलब जिन्दा रहने तक ही तो है....मृत्यु के बाद शरीर से कैसा प्रेम? मृत शरीर मानवता के काम आ जाये तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है, है न?. 


    सोचिये, जिनके नेत्र नहीं, दैनिक जीवन  उनके लिए कितना दुष्कर है ... छोटे-छोटे कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भरता ..अपने स्नेहिल संबंधों को भी न देख पाने का दुःख ...कितनी  बड़ी त्रासदी है...यह कितना कचोटता होगा, है न! ....नेत्रहीन व्यक्ति के लिए ये खूबसूरत, प्रकाशमय दुनिया अँधेरी होती है (यहाँ बाते सिर्फ शारीरिक अपंगता की है,  कई ऐसे लोग है जो नेत्रों के नहीं होने पर भी  दुनिया को राह दिखने में सक्षम  हुए, जबकि कई नेत्रों के होते हुए भी अंधे है) .

    बहरहाल, अभी कुछ महीने पहले फेसबुक पर ऐसे एक विज्ञापन को देखा.एक बार फिर 'नेत्रदान' की बाते जेहन में घूमने  लगी ..उस तस्वीर को मैंने अपने वाल पर भी लगाया...उसी एक क्षण में मैंने संकल्प लिया कि मुझे नेत्रदान करना है ..पता करने पर मालूम चला कि इसके लिए सरकारी अस्पताल में फॉर्म भरना होता है...हमारे छोटे से शहर में सदर अस्पताल है... वहां  जाकर फॉर्म माँगा तो कर्मचारी चौंक गया ..उसने ऊपर से नीचे तक घूरकर देखा, जैसे की  मै चिड़ियाघर से  भागा हुआ जानवर हूँ ..फिर शुरू हुई फॉर्म खोजने की कवायद ...कोना-कोना छान मारा गया पर फॉर्म नहीं मिला ( सोचिये, इतने हो-हल्ला  के बावजूद इस अभियान का क्या हाल है) ...कहा गया कि एक सप्ताह बाद आये ...गनीमत है एक सप्ताह बाद एक पुराना फॉर्म मिल गया ...हालाँकि उस फॉर्म की शक्ल ऐसी थी एक बार मोड़ दे तो फट जाये...
    अब सुने आगे की दिलचस्प कहानी..मेरा भाई अनूप फॉर्म ले कर आया ..तब मै और मेरे अन्य भाई-बहन  मम्मी  के पास बैठे थे...हंसी-मजाक का दौर चल रहा था...अनूप आया उसने मुझे देने के बजाये मम्मी को फॉर्म दे दिया..मम्मी ने अभी पढना ही शुरू किया था कि मेरे शेष भाईयों ने भयानक अंदाज़ में (हालाँकि सब हंसने के मूड में ही थे ) मम्मी को बताना शुरू किया की वो किस चीज़ का फॉर्म है...मम्मी रोने लगी और फॉर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दी ...बोलने लगी.. तुमको कौन सा दुःख है जो ऐसा चाह रही हो..लाख समझाने पर भी नहीं समझ पाई की नेत्रदान असल में क्या है ..उलटे मुझे खूब डांट पिलाईं कि ऐसा करना महापाप है...मतलब यह कि उन्हें भी वही गलतफहमियां है जो आमतौर पर लोगों को है...ये बात बताने का मकसद भी यही है  कि  नेत्रदान संबधित भ्रांतियों को समझा जाये...हालाँकि मैंने बाद में फिर फॉर्म लिया और उसे भर दिया....

    अब थोड़ी जानकारी...आँखों का गोल काला हिस्सा 'कोर्निया' कहलाता है.. यह बाहरी वस्तुओं का बिम्ब  बनाकर हमें दिखाता  है.. कोर्निया पर चोट लग जाये, इस पर झिल्ली पड़ जाये या धब्बे हो जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है..हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग कोर्निया  की समस्यायों से ग्रस्त  हैं..जबकि करीब 1करोड़ 25 लाख लोग दोनों आंखों से और करीब 80 लाख एक आंख से देखने में अक्षम हैं. यह संख्या पूरे विश्व के नेत्रहीनों की एक चौथाई है. किसी मृत व्यक्ति का कोर्निया मिल जाने से ये परेशानी दूर हो सकती है ...डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कोर्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि उसने अपने जीवित होते हुए ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना की हो..ऐसा होने पर मरणोपरांत नेत्रबैंक लिखित सूचना देने पर मृत्यु के 6 घटे के अन्दर कोर्निया  निकाल ले जाते हैं..किंतु जागरूकता के अभाव में यहाँ  नेत्रदान करने वालों की संख्या बहुत कम है. औसतन 26 हजार ही दान में मिल  पाते हैं... दान में मिली तीस प्रतिशत आंखों का ही इस्तेमाल हो पाता है क्यूंकि ब्लड- कैंसर, एड्स जैसी गंभीर  बीमारियों वाले लोगों की आंखें नहीं लगाई जाती ...  धार्मिक अंधविश्वास के चलते भी ज्यादातर मामलों में लिखित स्वीकृति के बावजूद अंगदान नहीं हो पाता....दूसरी तरफ मृतक के परिजन शव विच्छेदन के लिए तैयार नहीं होते.... अंगदान-केंद्रों को जानकारी ही नहीं देते  ..हमारे देश के कानून में मृतक की आंखें दान करने के लिए पारिवारिक सहमति जरूरी है, यह एक बड़ी बाधा है...जबकि चोरी-छिपे, खरीद-फरोख्त कर अंग प्रत्यारोपण का व्यापार मजबूत होता जा रहा है...

    ----स्वयम्बरा 

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    2 comments:

    धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

    बहुत सुंदर जानकारी देती प्रस्तुति,..

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

    Asha Lata Saxena said...

    अच्छी जानकारी देती रचना |प्रेरणा दायक |
    आशा

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