न जाने कहाँ
खो गई
मिट्टी की वो
असली खुशबू
गुम हुए
आधुनिकता में
मीठे-सुरीले
वो लोकगीत |
कर्ण-फाड़ू
संगीत ही रहा
वो असली रंगत
नहीं रही
मूल भारत की
याद दिलाती
कहाँ गए
वो लोकगीत |
एफ. एम., पोड ने
निगल लिया
फिल्मी गानों ने
ग्रास लिया
अब तो कोई
सुनता भी नहीं
न गाता कोई
वो लोकगीत |
4 comments:
bahut sundar
vah
सही कहा ......अब तो कई ऐसे भी गाने होते है जिसका कोई मतलब ही समझ में नहीं आता है
bahut sahi kahaa aapne...
kahaan gaya wo lokgeet ?
प्रेरणा जी ,
ब्लागर्स मीट में अच्छा लगा ,काफ़ी जानकारी और नये सूत्र मिले -आभार आपका
आपने मेरी कविता भी चुनी ,कृतज्ञ हूँ !
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