कैसे बनाया जाए हिंदी को जनभाषा ?

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  • Tuesday, September 13, 2011
  • by
  • DR. ANWER JAMAL
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  • हिंदी दिवस पर विशेष 

    हिंदी दिवस अब क़रीब है। लोग उर्दू को नज़रअंदाज़ करते हैं और हिंदी को महान कहते हैं और कहते हैं कि देश को केवल हिंदी ही जोड़ सकती है। देश को हिंदी जोड़ सकती है, इसमें शक नहीं है लेकिन ‘केवल हिंदी‘ कहना ग़लत है। देश को पंजाबी भी जोड़ सकती है। पंजाबी के अलावा भी बहुत सी भाषाएं हो सकती हैं जो देश को जोड़ने का काम कर रही हो सकती हैं और अंग्रेज़ी तो बहरहाल जोड़े ही हुए है। हिंदी से प्रेम का यह मतलब नहीं है कि अंग्रेज़ी से नफ़रत की जाए।
    हिंदी से प्रेम का यह मतलब नहीं है कि क्षेत्रीय भाषाओं का अपमान और तिरस्कार किया जाए और उर्दू तो क्षेत्रीय भाषा भी नहीं है। इसे विश्व में बड़े पैमाने पर बोला जाता है।
    यह ख़ुशी की बात है कि उर्दू का जन्म भारत में हुआ और दुख की बात यह है कि राष्ट्रवादी बंधु जितनी दिलचस्पी अंग्रेज़ी सीखने में लेते हैं, उतना ही ज़ोर उर्दू को पीछे धकेलने में लगाते हैं। हालांकि उनके धकेलने से उर्दू पीछे नहीं हटती है क्योंकि जनता की जिस भाषा को आज हिंदी कहा जाता है, दरअसल वह उर्दू है।
    आज मुग़ले आज़म और उमराव जान को भी हिंदी फ़ीचर फ़िल्म कहा जाता है और उनके गानों को भी हिंदी गाने कहा जाता है।
    क्या सचमुच ये फ़िल्में हिंदी फ़िल्में हैं ?
    क्या हिंदी फ़िल्मों के गाने सचमुच हिंदी गाने कहलाने के हक़दार हैं ?
    ‘ऐ मुहब्बत , ज़िंदाबाद‘
    अगर ये हिंदी गाने हैं तो फिर उर्दू गाने किसे कहा जाएगा ?
    क्या इसे बौद्धिक बेईमानी नहीं कहा जाएगा ?
    उर्दू का मतलब होता है ‘लश्कर‘। उर्दू एक लश्करी ज़बान है। जिस तरह फौजी लश्कर में हरेक भाषा के लोग होते हैं ऐसे ही उर्दू में हरेक भाषा के शब्दों को ग्रहण किया गया है।
    उर्दू का व्याकरण ‘फ़ारसी व्याकरण‘ है।
    हिंदी का व्याकरण फ़ारसी व्याकरण ही है।
    व्याकरण के आधार पर तो हिंदी और उर्दू एक ही हैं और अगर आज हिंदी भी उर्दू का ही मिज़ाज अख्तियार करते हुए हरेक भाषा के शब्दों को ग्रहण करती है तो फिर हिंदी को उर्दू अलग करने वाली चीज़ क्या होगी ?
    क्या महज़ नागरी लिपी ?
    लेकिन लिखे जाने से पहले कैसे पहचाना जाएगा कि बोलने वाला हिंदी बोल रहा है या उर्दू ?
    अगर उर्दू को ही आज हिंदी कहा जा रहा है या हिंदी और उर्दू आपस में द्वैतभाव नहीं रखती हैं तो फिर इन भाषाओं के नाम पर राजनीति और अलगाववाद कयों फैलाया जा रहा है ?
    हिंदी दिवस पर हम अपनी तरफ़ से सभी को शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं।
    हम हिंदी भाषी कहलाने में ख़ुशी महसूस करते हैं और हमें हिंदी से कोई चिढ़ नहीं है लेकिन जिन्हें उर्दू के नाम से चिढ़ है, उनकी चिढ़ की वजह हम आज तक समझ नहीं पाए हैं।
    भारत की आम जनता को उर्दू ज़बान में मिठास महसूस होती है और जो इससे चिढ़ते हैं वे भी उर्दू शायरी का लुत्फ़ उठाने में किसी से पीछे नहीं हैं। उर्दू अपनी ख़ासियत के बल लोगों के दिल जीत लेती है। यही इसकी असल ताक़त है।
    हिंदी दिवस पर इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि उर्दू को हिंदी कहने के बजाय वास्तविक हिंदी को कैसे जनभाषा बनाया जाए ?
    कैसे हिंदी को फ़ारसी व्याकरण की छाया से मुक्त किया जाए ?
    और प्रचलित जनभाषा को कैसे पहचाना जाए कि यह उर्दू नहीं है ?
    इन बिंदुओं पर विचार किए बिना हिंदी दिवस मनाने की कोई सार्थकता नहीं है और दुख की बात यह है कि हिंदी के विद्वानों के सामने इन प्रश्नों की ही कोई सार्थकता नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि इन प्रश्नों का सही जवाब क्या है ?
    और यह भी कि अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को विदेशी भाषा फ़ारसी के व्याकरण से मुक्ति दिलाना संभव नहीं है।

    4 comments:

    अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

    यह हमारी भाषा है |पंडित और मुल्ला की जबान हमारी भाषा नहीं हो सकती |

    अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

    यह हमारी भाषा है |पंडित और मुल्ला की जबान हमारी भाषा नहीं हो सकती |

    रविकर said...

    हिंदी की जय बोल |
    मन की गांठे खोल ||

    विश्व-हाट में शीघ्र-
    बाजे बम-बम ढोल |

    सरस-सरलतम-मधुरिम
    जैसे चाहे तोल |

    जो भी सीखे हिंदी-
    घूमे वो भू-गोल |

    उन्नति गर चाहे बन्दा-
    ले जाये बिन मोल ||

    हिंदी की जय बोल |
    हिंदी की जय बोल |

    चंदन कुमार मिश्र said...

    अजीब आदमी हैं आप। अंग्रेजी एकता में सहायक है? एकदम गलत बात है। अलगाववादी और विचित्र आदमी हैं आप, हर जगह इस्लाम और इस्लाम?

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