खता क्या है मेरी इतना बता दे.
फिर इसके बाद जो चाहे सजा दे.
अगर जिन्दा हूं तो जीने दे मुझको
अगर मुर्दा हूं तो कांधा लगा दे.
हरेक जानिब है चट्टानों का घेरा
निकलने का कोई तो रास्ता दे.
न शोहरत चाहिए मुझको न दौलत
तू मेरा नाम मिट्टी में मिला दे.
अब अपने दिल के दरवाज़े लगाकर
हमारे नाम की तख्ती हटा दे.
जरा आगे निकल आने दे मुझको
मेरी रफ़्तार थोड़ी सी बढ़ा दे.
ठिकाना चाहिए हमको भी गौतम
ज़मीं गर वो नहीं देता, खला दे.
ठिकाना चाहिए हमको भी गौतम
ज़मीं गर वो नहीं देता, खला दे.
---देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: खता क्या है मेरी इतना बता दे:
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2 comments:
bahut achchi ghazal likhi hai Gautam ji aabhar.
sundar gajal hae gotamji .meri nai post par aapke vichr saadar aamantrit haen .dhanyavad.
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