‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ के लिए जब हमने मोहतरम जनाब शास्त्री जी से ईमेल के ज़रिए एक लेख भेजने की दरख्वास्त की तो उन्होंने हमारी इल्तेजा को क़ुबूल कर लिया और बहुत ही जल्द लिखकर भी भेज दिया। हमने उनसे कहा कि इस गाइड के लिए हमें आपसे कवितामय संदेश चाहिए तो बोले कि वह भी भेज दूंगा। जनाब के सहयोग का यह आलम है। उनकी सादगी और उनका ख़ुलूस, उनकी बोलचाल से भी और उनके अमल से भी, हर दम छलकता रहता है। वह एक लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। जनाब की बातों पर ध्यान दिया जाए तो बिल्कुल नया ब्लॉगर भी सफलता की सीढ़ियां मज़े से चढ़ सकता है।
पेश है आज उनका लेख, जो कि हक़ीक़त में एक मार्गदीप है :
पेश है आज उनका लेख, जो कि हक़ीक़त में एक मार्गदीप है :
जिस तरह से देश-परिवार या घर को चलाने के लिए कुछ तौर-तरीक़े या क़ायदे और क़ानून अपनाने पड़ते हैं ठीक उसी तरह से ब्लॉगिंग में भी कुछ क़ायदे-क़ानून अपनाना बहुत आवश्यक है।
यदि आप यह चाहते हैं कि आपकी बात पर लोग ध्यान दें और आपको एक मानक के रूप में देखें तो आपको इसके लिए नीचे दिये गये सुझावों को तो अपनाना ही चाहिए।
1- बड़े-बूढ़ों का कहना है कि पहले मुँह में घोलो, फिर ज़बान खोलो। बस इसी बात को गाँठ बाँध लीजिए न। कहीं पर भी टिप्पणी करने से पहले खूब सोच-विचार कर लीजिए कि आप जो कुछ अपनी टिप्पणी में लिखने जा रहे हैं, उसका क्या प्रभाव होगा। जरा सी बात आपको मित्र बना सकती है और जरा सी बात ही शत्रु भी बना सकती है। क्योंकि दूध के भरे हुए बर्तन में उसको बिगाड़ने के लिए तो नींबू की एक छींट ही काफ़ी होती है।
2- माना कि अन्तरजाल की दुनिया आभासी होती है लेकिन टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी करने से जहाँ तक हो, बाज़ आये। यदि आपको किसी की बात अच्छी नहीं लग रही है तो या तो उसको नकार दीजिए अन्यथा उसके मेल में जाकर अपनी बात उसके सामने रख दीजिए। बहुत बार मेरे साथ ऐसा हुआ है जबकि मेरे मित्र डॉ. अनवर जमाल ने मुझे मेरी किसी ग़लती को बताने के लिए मुझे मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं की बल्कि मुझे मेल किया है।
3- कभी भी अपने को विद्वान और दूसरों को अपने से कम करके न आंकें। दुनिया बहुत बड़ी है, इसमें एक से बढ़कर एक हीरे जवाहरात मौजूद हैं। हो सकता है कि जिसने आपकी पोस्ट पर अपनी राय दी है वह आपसे भी बड़ा ज्ञानी हो। क्योंकि घमण्ड से आज तक किसी का उत्थान नहीं हुआ है और घमण्ड ही क्रोध का जनक है। आपने अपने आस-पास और घर परिवारों में भी अनुभव किया होगा कि क्रोधी व्यक्ति हमेशा अकेला पड़ जाता है।
4- ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई पोस्ट न लिखें अपितु प्रतिस्पर्धा करें और तार्किक रूप से अपनी बात रखें। विश्वास मानिए, आपकी बात को लोग सबसे अधिक पसंद करेंगे।
5- नेट पर एक बात जो जो मेरी नज़र में सबसे ख़राब बात है, वह है चोरी। अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग दूसरों की रचनाओं से हूबहू कुछ लाइनें चुरा-चुरा कर अपनी रचना गढ़ लेते हैं। कुछ तो इतने शातिर हैं कि पूरी की पूरी रचना या आलेख ही अपने नाम से प्रकाशित कर देते हैं। जिसके पकड़ में आने से बहुत बड़े अपमान का सामना भी करना होता है। स्मरण रखिए कि आपका जो भी इष्ट देवता है वह आपको तभी वरदान देता है जब आप मौलिक सृजन करते हैं।
6- अपनी रचना को लिखने में जितना श्रम और समय लगता है आपको वह उतनी ही प्यारी लगती है। हो सकता है कि शुरुआती दौर में आप अच्छा न लिखें मगर जैसे-जैसे आप अपनी कलम चलाएँगे वैसे-वैसे ही आपकी लेखनी में निखार आता जाएगा। अगर आपने कभी अच्छा नहीं भी लिखा है तो भी आपको अपने उस लेख या रचना से वैसा ही लगाव होगा जैसा कि एक माँ को अपनी सन्तान से होता है।
7- महर्षि दयानन्द सरस्वती ने लिखा है
'सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।'
अपनी गलती को मान लेना इन्सान का बड़प्पन ही कहलाता है। क्योंकि मनुष्य तो गलतियों का पुतला है। कदम-कदम पर हमसे भूल होती रहती हैं और उनसे जो सबक लेकर समय रहते सुधार लेता है। वो महान कहलाता है।
8- यदा-कदा नेट पर आचार संहिता बनाने की बात उठती रहती है। आख़िर इसकी आवश्यकता ही क्यों पड़ती है?
मेरा मानना तो यह है कि हम ऐसी स्थति ही क्यों आने देते हैं कि लोग आचार संहिता की बातें करें। आप ख़ुद ही अनुमान लगाइए कि समझदारी में ही होशियारी है। आप अपना काम नेक नीयत और ईमानदारी से करते जाइए। आपको किसी आचार संहिता को ढोने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
मैं कोई विद्वान, तपस्वी या साधू-संत नहीं हूँ। एक आम आदमी हूँ। मुझसे भी ग़लतियाँ होती है। यदि आपको मेरे ये सुझाव पसंद आयें तो अमल कीजिए और अगर न पसंद आयें तो अपने सुझाव दीजिएगा। आपके हर सुझाव का मैं स्वागत करूँगा।
सादर- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
22 comments:
अनवर जी, आपके मयंक जी के बारे में अपने लेख "‘च्यवन ऋषि‘ के सच्चे वारिस हैं श्री रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी"
में जो कुछ भी कहा, आज उनका ये लेख पढ़ के साबित हो गया की आपने कुछ गलत या कम नहीं कहा...
वे सचमुच जानकारियों का भण्डार हैं और उनके इस लेख ने मुझे कायल बना दिया...
मेरे साथ-साथ पूरा जहान च्यवन ऋषि का वारिस है!
--
अपना आलेख पढ़कर मुझे भी अच्छा लगा!
ईर्ष्या के वशीभूत होकर कोई पोस्ट न लिखें अपितु प्रतिस्पर्धा करें और तार्किक रूप से अपनी बात रखें। विश्वास मानिए, आपकी बात को लोग सबसे अधिक पसंद करेंगे।
Aapki raay faydemand hai.
itna achcha shikchatmak lekh padhkar man khush ho gaya.
शास्त्री जे को गुरू बनाना पड़ेगा
anwar jamal ji,
shastri ji ka yah aalekh hindi blogging guide ke liye amulaya hai agar ho sake to ise usme sarvpratham sthan dijiyega.aarambh se lekar ant taq jo bhi hamare mananiye shastri ji ne likha hai yadi vah hamare is blog jagat me apna liya jaye to shayad yahan jo vivad yada kada uthte rahte hain ve nahi uthenge.adhik kya kahoon shastri ji ka yah aalekh gagar me sagar hai aur vah sagar jo apne me sansar ki amulaya nidhi samete hue hai.aabhar
poora aalekh shikshaprad hai .har bat tarkik v grahan karne yogay hai .shastri ji ko hardik dhanyvad .
sachchha aur saarthak lekh..
सटीक और सार्थक आलेख्।
@ आदरणीय मयंक जी ! आपने कहा कि आपको अपना लेख पढ़कर अच्छा लगा। आपके इस जुमले से मुझे लगा कि मेरी प्रस्तुति की मेहनत सफल हो गई है।
कृप्या अब आप एक लेख काव्य में भी भेज दीजिए।
धन्यवाद !
@ शालिनी जी ! आपने बिल्कुल सही कहा है। आदरणीय शास्त्री जी का लेख नए ब्लॉगर्स के लिए इतना ही ज़्यादा फ़ायदेमंद है कि उसे गाइड के बिल्कुल शुरू में रखा जाए। मैं भी ऐसा ही सोच रहा था और आपने भी यही सोचा तो इसका मतलब यह है कि हम ‘एक मन‘ होकर काम कर रहे हैं।
@ जनाब मासूम जी ! श्री मयंक जी गुरू तो पहले से ही हैं और ख़ुशी की बात यह है कि वह साथ देने वाले साथी हैं। यहां ‘गुरू‘ ज़्यादा हैं और साथ देने वाले ईमानदार और निष्कपट साथी बहुत कम हैं।
शुक्रिया !
@ महेश जी !
@ मृदुला जी !
@ वंदना जी !
आपने सही कहा है।
मैं आपसे सहमत हूं।
शुक्रिया !
`mayankji ke lekh ke aek aek shabd gyaan se bhara hau hai.bahut achchi baaten sikhai hain aapne apne lekh main.bahut hi satic aur saarthak lekh.badhaai.
भाई अनवर जमाल साहब
ब्लौगिंग गाइड का टाइटल खूबसूरत बना है. मुबारक हो. अब इसके लोकार्पण का इंतज़ार है. इसमें अभी तक जो पोस्ट डाले गए हैं इसकी उपयोगिता का आभास कराते हैं. इसके सर्वसुलभ होने के बाद ब्लौगिंग की दुनिया में नए लोगों का प्रवेश आसन हो जायेगा. उन्हें तकनीकी जानकारी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.
डा.रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी" तो ब्लौगिंग की दुनिया के अभिभावकों की श्रेणी में आते हैं. उनके सुझावों और अनुभवों का लाभ नए क्या पुराने लोग भी उठाते रहे हैं. उनकी पोस्ट आचार संहिता की तरह लगी. उसे सिर्फ पढने नहीं उसपर अमल करने की जरूरत है.
सटीक और सार्थक आलेख्।
bahut hi mahatv poorn baaten likhi hain Shastri ji aapne.sabko amal karna chahiye.sdhanyavaad rajesh
इससे बेहतर नहीं हो सकता था। शुभ कामनाएँ
@ एजाज़ भाई ! आपका शुक्रिया कि आपने हमें हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के लिए इतना ख़ूबसूरत टाइटिल बनाकर दिया।
इसी के साथ आपने इस फ़ोरम के लिए हैडर भी बनाकर दिया और वह भी पूरी तरह निःशुल्क।
वाह !!!
आप जैसे साथियों के सहयोग से हरेक काम आसान हो जाता है।
एक बार फिर आपका शुक्रिया !
अनवर भाई ,
निस्संदेह शास्त्री जी का योगदान बेहतरीन है !
शुभकामनाएं शास्त्री जी को !
‘च्यवन ऋषि‘ के सच्चे वारिस हैं श्री रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी"
---इससे बढकर चमचागीरी क्या होसकती है...
१-जरा सी बात आपको मित्र बना सकती है और जरा सी बात ही शत्रु भी बना सकती है।
---शत्रु मित्र बनने की चिंता करने वालों का सत्य से कोई लेना देना नहीं होता...फिर देश/समाज की बुराइयों को ध्यान में लाएगा....कोई क्यों देश के लिए प्राण देने जायगा ..
२-टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी करने से जहाँ तक हो, बाज़ आये। यदि आपको किसी की बात अच्छी नहीं लग रही है तो या तो उसको नकार दीजिए अन्यथा उसके मेल में जाकर अपनी बात उसके सामने रख दीजिए।
----क्यों ? फिर विचार विमर्श क्या व्यर्थ की बात है...जो लोग सत्य कहने से डरते हैं व जो लोग सत्य व अपनी गलती उजागर होने से डरते हैं वे ही नकारना या चुपचाप ईमेल का सहारा लेते हैं....यह एक दम गलत है, असामाजिकता , असहिष्णुता है ...क्योंकि --महर्षि दयानन्द सरस्वती ने लिखा है
'सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।' --जब सुनेंगे, पढेंगे ही नहीं उजागर होने से डरेंगे तो उद्यत क्या रहेंगे...
@ आदरणीय श्याम गुप्त जी ! आज इंसान के पास जो ज्ञान है वह ऋषियों का ही तो दिया हुआ है।
च्यवन ऋषि के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आँवला खाकर बुढ़ापे में भी जवानी को पा लिया था । दूसरे कई आहार और भी हैं जिनके बारे में आयुर्वेदाचार्यों ने ऐसा ही लिखा है ।
श्री मयंक जी आयुर्वेद के अच्छे जानकार हैं और बरसों से 8-10 घंटे कम्प्यूटर पर काम करते आ रहे हैं और वे कोई थकान महसूस नहीं करते बल्कि वह तो अपनी आँखों पर भी कोई दुष्प्रभाव महसूस नहीं करते । इसके अलावा वह अपनी आजीविका के लिए भी दौड़ धूप करते हैं और अन्य सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में भी सक्रिय योगदान करते हैं । इस वृद्धावस्था में भी इतनी मेहनत वही कर सकता है जिसमें जवानों जैसी ताक़त हो ।
उन्हें देखकर च्यवन ऋषि की याद हमें बरबस ही हो आती है । इसी बात को हमने पहली लाइन में बताया है जो कि एक लेख का शीर्षक और लिंक है । जिसे आपने पढ़ा तक नहीं और कर दी टिप्पणी।
हालाँकि आप ख़ुद को ईश्वर मानते हैं लेकिन भाई वास्तव में आप हैं आदमी ही और वह भी ऐसे आदमी हैं , जिसे कि ज्ञान और सभ्यता सीखने की सख़्त ज़रूरत है ।
हिंदी ब्लॉगिंग गाइड आपकी इस जरूरत को भी पूरा करेगी । आप इसे पढ़िए अपना अहंकार छोड़कर विनय भाव से ध्यानपूर्वक।
सादर !
प्यारे भाई अनवर जमाल जी ! आपके लेख आपके ब्लॉग पर हम एक अर्से से पढ़ते
आ रहे हैं। हमने आपके लेख बाद में पढ़े हैं जबकि हम आपको जानते पहले से
हैं। आपने हमारे साथ कई प्रोजेक्ट्स में काम किया है। इस दरम्यान ऐसा भी
हुआ कि आप दो महीने तक लगातार हमारे घर पर ही सोये और हमारे परिवार के एक
सदस्य की तरह रहे। हमने साथ साथ सफ़र भी किए और इस दरम्यान एक दूसरे के
नजरिए को भी जाना और बहुत गहराई से जाना। बरसों हो गए इस संबंध को और आज
भी इसमें वैसी ही ताजगी है और यह तब है जबकि हम ख़ुद को नास्तिक कहते हैं
और पूजा पाठ से भी दूर ही रहते हैं और आप एक आस्तिक हैं। आप एक धर्मनिष्ठ
मुस्लिम हैं और इस्लामी उसूलों की पाबंदी हर जगह और हर हाल में करते हैं।
शूटिंग के दौरान भी जैसे ही नमाज़ का समय होता था तो आप मेक-अप धोकर नमाज़
अदा करने के लिए खड़े हो जाते थे और वह भी अकेले नहीं बल्कि दस पांच
आदमियों को साथ लेकर, पूरी जमात के साथ। आपकी सख्ती उसूलों के साथ है
लेकिन अपने साथियों के साथ आपका बर्ताव नर्म है। महिला कलाकारों के साथ
आपके रवैये को हमेशा ही आदर्श पाया।
यह तो आपकी वह छवि है जो कि आपसे मिलने वालों के दिलो-दिमाग में है और
हमारे सामने भी आपका यही रूप है लेकिन ब्लॉग की दुनिया में आपका यह रूप
लोगों के सामने खुलकर नहीं आ सका है।
लोग यहां पर जिस तरह की भाषा आपके लिए बोलकर चले जाते हैं, उसे देखकर
हमारा दिल दुखी होता है। वे बोलकर चले जाते थे और हम पढ़कर चुप हो जाते थे
लेकिन आज दिल ने चाहा कि कुछ कहा जाए तो हम ने आपके बारे में कहा है और
दिल से ही कहा है।
आपको हमने सदा एक छोटे भाई की तरह देखा है और हमने ही नहीं हमारी पत्नी
और हमारे बच्चों ने भी आपको अपना भाई और अपना चाचा ही समझा है। आपने भी
इन रिश्तों की मर्यादा को हमेशा निभाया है। आप हमारे परिवार का अभिन्न
अंग हैं।
आपकी कद्र हम जानते हैं और दिल से आपकी और आपके विचारों की कद्र करते हैं।
यह पोस्ट तो एक मामूली सी घटना है। हमने आपके इससे बड़े बड़े काम देखे हैं,
जो आपने किए हैं और सबके लिए किए हैं। परेशानी में वे लोग आज भी आपकी तरफ़
मदद के लिए देखते हैं।
आपसी सहयोग और आपसी सदभाव की यही भावना हमारे समाज और हमारी संस्कृति की
पहचान है। इस पहचान को किसी भी कीमत पर मिटने नहीं देना चाहिए।
हम आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हैं।
In the end I'd like to say that we shouldn't indulge ourselves into petty conflicts and behave like pseudo intellectuals
I strongly believe that....
'IN WAR WHICHEVER SIDE MAY CALL ITSELF THE VICTOR. THERE ARE NO WINNERS BUT ALL ARE LOSERS.'
bahut accha lekh.shastri ji ko padhna hamesha sukhad raha hai aur aapko padhkar accha laga....
बिलकुल सत्य ||
पक्षपात से दूर हैं, रत हरदम सहयोग |
काव्य-साधना में लगे, सीधे-सच्चे लोग ||
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