टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1,70,000 करोड़ की लूट से दस गुनी बड़ी लूट

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  • Saturday, September 1, 2012
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  • DR. ANWER JAMAL
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  • मत्रियों और नौकरशाहों के गठजोड़ की मिलीभगत ने 155 कोयला खदानों को बिना नीलामी के आवंटित कर देश को 10.67 लाख करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। सदन में रखे जाने से पहले कैग की एक और रिपोर्ट लीक हो गई और जनता के सामने देश के प्राकृतिक संसाधन की एक और लूट नुमाया हो गई। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1,70,000 करोड़ की लूट से दस गुनी बड़ी लूट। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 2004 से 2009 के बीच देश के 155 कोल ब्लॉक बगैर नीलामी प्रक्रिया के कंपनियों को सौंप दी गईं। गैरकानूनी ढंग से हुए आवंटन में निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्र की कंपनियों ने फायदा उठाया। इनमें टाटा पावर से लेकर भूषण स्टील तक और एनटीपीसी से लेकर एमएमटीसी और सीएमडीसी जैसी कंपनियां शामिल हैं। आवंटित किए गए कोल ब्लॉक में इतना कोयला है कि इससे अगले 50 साल तक हर साल 1,50,000 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है। 1,50,000 मेगावाट बिजली देश की मौजूदा जरूरत से थोड़ी ही कम है। यानी इन कंपनियों ने अगले 50 साल तक पैदा होने वाली बिजली एक ही झटके में हड़प ली और सरकारी खजाने से 10.67 लाख करोड़ रुपये लूट लिये गए। देश में दूसरी हरित क्रांति के लिए 40,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। यानी कंपनियों की इस लूट की रकम से 25 बार हरित क्रांति हो सकती है। दरअसल यह देश के प्राकृतिक संसाधन की लूट है। कंपनियां झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र और उड़ीसा जैसे खनिज संसाधन से समृद्ध राज्यों के सबसे पिछड़े इलाकों से कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट जैसे अहम खनिजों की लूट से अपना खजाना भर रही हैं। जबकि सरकार को लगता है कि कंपनियां कारोबार कर रही हैं और उसका लाभ देश को मिलेगा। लोगों को रोजगार मिलेगा। प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ेगी और देश मैन्यूफैक्चरिंग में एक बड़ी ताकत बन कर उभर सकेगा। भारतीय हुक्मरानों को देश को एक महाशक्ति बनाने की जल्दी है। दुनिया में एक महाशक्ति बन कर उभरने की यह जल्दबाजी यह नहीं देखने दे रही है कि आर्थिक तरक्की के खेवनहार संसाधनों को किस तरह लूट रहे हैं। साफ है कि राजनीतिक नेताओं और नौकरशाहों का गठजोड़ कंपनियों की तिजोरी भरने में लगे हुए लगा हुआ है और बदले में उसकी भी जेबें भर रही हैं। पिछले कुछ समय से देश के कारोबारी हलकों में बिजली और स्टील कंपनियों को उत्पादन के लिए भरपूर कोयला न मिलने का रोना रोया जा रहा है। कंपनियां कह रही हैं उन्हें बाहर से महंगा कोयला मंगानापड़ रहा है। बिजली कंपनियां पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रही हैं। इससे देश को ऊर्जा की कमी का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक विकास दर को इससे झटका लग सकता है क्योंकि उत्पादन के लिए बिजली की जरूरत होती है। गैस सप्लाई में भी कमी की दुहाई दे जा रही है। फर्टिलाइजर, स्टील और सीमेंट और बिजली कंपनियां क ह रही हैं कि उन्हें पर्याप्त गैस नहीं मिल रही है उत्पादन कहां से करें। जबकि सबको पता है कि गैस की कीमतें तय करने में रिलायंस इंडस्ट्रीज को किस तरह लाभ पहुंचाया गया। पिछली तिमाहियों में देश की कॉरपोरेट दुनिया की अधिकतर कंपनियों को खासा मुनाफा हुआ है। पता किया जाना चाहिए इस मुनाफे में मिट्टी के मोल मिले रहे खनिज संसाधनों का कितना हाथ है। याद रखा जाना चाहिए कि खनिज संसाधनों पर जनता का अधिकार है। इनका इस्तेमाल आर्थिक तरक्की को रफ्तार देना में होना चाहिए। इस तरक्की में आम लोगों की हिस्सेदारी हो। खनिज संसाधन कंपनियों की बैलेंसशीट मजबूत करने का जरिया न बनें।सस्ते संसाधन को औने-पौने दाम पर हासिल करने वाली कंपनियों से यह पूछा जाना चाहिए कि जिस हिसाब से उनका मुनाफा बढ़ रहा उस हिसाब से क्या वे रोजगार भी पैदा कर रही हैं। जिन पिछड़े इलाकों से ये खनिज हासिल कर रही हैं वहां शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार और दूसरी बुनियादी सुविधाएं विकसित करने में उनका क्या योगदान है? खनिज संसाधनों को लूटने की अनुमति देने वाले मंत्रियों से यह पूछना चाहिए कि क्या वे चुने हुए प्रतिनिधि के तौर पर जनता के हितों की रक्षा में नाकाम रहने की सजा भुगतने को तैयार हैं? नौकरशाहों से यह सवाल किया जाना चाहिए कि लोगों की बेहतरी के लिए बनाई जाने वाली नीतियों को अमली जामा पहनाने की बजाय उनके संसाधनों की लूट की इजाजत उन्हें किसने दी है। आर्थिक उदारीकरण के 20 साल बाद यह साफ दिख रहा है कि आय पिरामिड में नीचे रहने वाले लोगों की समृद्धि घटी है और आम जनता और गरीब हुई है। कई कारोबारी सेक्टरों में नियमन के ढीले-ढाले तरीकों की वजह से अरबों के घोटाले सामने आ रहे हैं और यह रकम न सांसदों की है और न नौकरशाहों और न ही कॉरपोरेट कंपनियों के कर्ता-धर्ताओं की। यह हमारी और आप जैसे भारत के साधारण नागिरकों की संपत्ति है, जिसे सरेआम लूटा जा रहा है। इस संपत्ति का इस्तेमाल आम जनता की बेहतरी में होता है तो मानव विकास सूचकांक में सबसे निचले पायदानों में से एक पर खड़ा हुआ भारत शुरुआती पायदानों पर होता।
    Source : http://www.aparajita.org/read_more.php?id=13&position=1

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