अलग नहीं है किसी की दुनिया मगर जिन्दगी अलग अलग है
भले हैं खोये वो रौनकों में मगर सादगी अलग अलग है
यूँ मुस्कुराते मिलेंगे चेहरे कहीं खुलापन कहीं पे पहरे
कई जो दिखते हैं मुतमईन पर वहाँ तिश्नगी अलग अलग है
वो रोज मिलते हैं मुझसे आ के चले भी जाते हैं दिल जला के
बहुत ही नाजुक खिंचाव उस पे नई ताज़गी अलग अलग है
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
धरम अलग पर है साथ जीना कभी खुशी और ग़मों को पीना
हैं एक मालिक सभी सुमन के मगर बंदगी अलग अलग है
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1 comments:
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
बढ़िया गज़ल
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