आपको पता नहीं है कि ये दोनों मांसाहारी पौधे हैं। आपको ही नहीं बल्कि ज़्यादातर शाकाहारी यह बात नहीं जानते।
यह बात अजीब सी लगती है कि मांसाहारी व्यक्ति तो शाकाहारी जीव खाए और शाकाहारी भाई बहन मसाले लगाकर मांसाहारी पौधों के अंग खाएं।
हज़ारों साल से खाते आ रहे हैं अज्ञानवश।
चलिए पहले तो पता नहीं था लेकिन क्या अब शाकाहारी लोग इन दोनों मांसाहारी पौधों के अंग खाना बंद करेंगे या बदस्तूर पहले की तरह ही खाते रहेंगे ?
देखिए -
यह बात अजीब सी लगती है कि मांसाहारी व्यक्ति तो शाकाहारी जीव खाए और शाकाहारी भाई बहन मसाले लगाकर मांसाहारी पौधों के अंग खाएं।
हज़ारों साल से खाते आ रहे हैं अज्ञानवश।
चलिए पहले तो पता नहीं था लेकिन क्या अब शाकाहारी लोग इन दोनों मांसाहारी पौधों के अंग खाना बंद करेंगे या बदस्तूर पहले की तरह ही खाते रहेंगे ?
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आलू-टमाटर मांसाहारी, खान-पान पर संकट भारी
निकट भविष्य में आचार-विचार के पुराने मानदंडों से काम नहीं चलनेवाला।आनेवाले वर्षों में शाकाहार-मांसाहार के बीच की रेखा भी उतनी स्पष्ट नहीं रहेगी, जितनी अब तक रहते आयी है। यह बात प्रयोगशाला में कृत्रिम मांस से संबंधित पिछले आलेख में कही गयी थी। उन शब्दों के लिखे जाने के एक सप्ताह के अंदर ही यह खबर दुनिया भर में सुर्खियों में रही है कि ब्रिटिश वनस्पति विज्ञानियों ने नए शोध में यह निष्कर्ष निकाला है कि आलू व टमाटर मांसाहारी हैं, क्योंकि ये पौधे कीड़ों को मारकर अपने लिए खाद बनाते हैं।
रॉयल बॉटेनिकल गार्डन, कियू और लंदन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया है कि दोनों सब्जियों के पौधों के तनों में मौजूद बालों में एक चिपचिपा पदार्थ बहता रहता है। यह पदार्थ आसपास उड़ने वाले कीट-पतंगों को तने से चिपका देता है। कुछ दिन बाद कीटों के बेजान शरीर सूखकर जमीन में गिर जाते हैं। तब पौधों की जड़ें कीटों के शरीर के पोषक तत्वों को सोख लेती हैं। शोधकर्ता मार्क चेज ने बताया, ‘टमाटर और आलू की फसल कटने के बाद भी पौधों में बाल साफ नजर आते हैं। ये नियमित तौर पर कीड़ों को पकड़कर मार देते हैं।’
जीव विज्ञान के पितामह चार्ल्स डार्विन की दूसरी जन्म शताब्दी मना रहे वैज्ञानिक नए-नए शोध कर रहे हैं। इसी क्रम में ये नतीजे भी सामने आए हैं। इस शोध से जुड़े डा. माइक फे के अनुसार अब तक हम मानते थे कि पेड़-पौधों की करीब 650 प्रजातियां मांसाहारी हैं, जो कीट-पतंगों और जीवों का रक्त चूस कर पोषण पाती हैं लेकिन इस श्रेणी में 325 और पेड़-पौधे जुड़ गए हैं।
नए शोध में जिन पौधों को मांसाहारी बताया गया है, उनमें आलू और टमाटर के साथ तंबाकू भी शामिल है। हालांकि ये मुख्य रूप से कीट-पतंगों पर निर्भर नहीं होते, लेकिन पोषण पाने के लिए इनका शिकार करते हैं।
इससे पहले यह माना जाता था कि बंजर स्थानों व जंगलों में पाए जाने वाले पौधे ही पोषक तत्वों की प्रतिपूर्ति के लिए कीड़ों को मारते हैं। लेकिन नए शोध से ज्ञात हुआ है कि घरेलू किचन गार्डन में लगे पौधों में भी यह हिंसक आचरण मौजूद रहा है।
आलू-टमाटर मांसाहारी, खान-पान पर संकट भारी
रॉयल बॉटेनिकल गार्डन, कियू और लंदन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया है कि दोनों सब्जियों के पौधों के तनों में मौजूद बालों में एक चिपचिपा पदार्थ बहता रहता है। यह पदार्थ आसपास उड़ने वाले कीट-पतंगों को तने से चिपका देता है। कुछ दिन बाद कीटों के बेजान शरीर सूखकर जमीन में गिर जाते हैं। तब पौधों की जड़ें कीटों के शरीर के पोषक तत्वों को सोख लेती हैं। शोधकर्ता मार्क चेज ने बताया, ‘टमाटर और आलू की फसल कटने के बाद भी पौधों में बाल साफ नजर आते हैं। ये नियमित तौर पर कीड़ों को पकड़कर मार देते हैं।’
जीव विज्ञान के पितामह चार्ल्स डार्विन की दूसरी जन्म शताब्दी मना रहे वैज्ञानिक नए-नए शोध कर रहे हैं। इसी क्रम में ये नतीजे भी सामने आए हैं। इस शोध से जुड़े डा. माइक फे के अनुसार अब तक हम मानते थे कि पेड़-पौधों की करीब 650 प्रजातियां मांसाहारी हैं, जो कीट-पतंगों और जीवों का रक्त चूस कर पोषण पाती हैं लेकिन इस श्रेणी में 325 और पेड़-पौधे जुड़ गए हैं।
नए शोध में जिन पौधों को मांसाहारी बताया गया है, उनमें आलू और टमाटर के साथ तंबाकू भी शामिल है। हालांकि ये मुख्य रूप से कीट-पतंगों पर निर्भर नहीं होते, लेकिन पोषण पाने के लिए इनका शिकार करते हैं।
इससे पहले यह माना जाता था कि बंजर स्थानों व जंगलों में पाए जाने वाले पौधे ही पोषक तत्वों की प्रतिपूर्ति के लिए कीड़ों को मारते हैं। लेकिन नए शोध से ज्ञात हुआ है कि घरेलू किचन गार्डन में लगे पौधों में भी यह हिंसक आचरण मौजूद रहा है।
आलू-टमाटर मांसाहारी, खान-पान पर संकट भारी
10 comments:
bhtrin post lekin aalu ho tmatr ho inme bhi jiv hotaa hai or maans me bhi jiv hota hai to donon hi jiv vaale hai yeh khaao yaa voh khaao jiv htya to aali jnaabon ke liyen khlaayegi hi sahi .haa haa haa .akhtar khan akela kota rajsthan
शाकाहारियों को इतना भी न डराओ :)
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-704:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
चौंकाऊ पोस्ट.
@ Akhtar Khan sahab !
ईश्वर ने जिन मवेशियों को खाने की इजाज़त दी है, उनकी क़ुरबानी देने के लिए हलाल करना या अपने भोजन के लिए उन्हें ज़िब्ह करना जीव हत्या नहीं कहलाता क्योंकि ऐसा ईश्वर की अनुमति से किया जाता है और इसी बात की याददिहानी के लिए उन्हें हलाल करते समय ईश्वर अल्लाह की महानता का ज़िक्र किया जाता है। ईश्वर का आदेश और उसका नाम आने के बाद यह काम हत्या नहीं बल्कि इबादत बन जाता है।
हक़ीक़त से नावाक़िफ़ लोगों को यह जानकर ताज्जुब हो सकता है कि महज़ ईश्वर का आदेश और उसका नाम लेना किसी जानवर की जान लेने को हत्या के बजाय इबादत कैसे बना सकता है ?
इसे समझने के लिए आप औरत और मर्द के यौन संबंधों को देख सकते हैं।
जो लोग ईश्वरीय व्यवस्था होने का दावा करते हैं। उनके पास विवाह और निकाह की व्यवस्था भी ज़रूर मिलेगी। विवाह और निकाह वह तरीक़ा है जो कि ईश्वर का आदेश है और जब औरत और मर्द लोगों के सामने एक दूसरे को ग्रहण करते हैं तो वे ईश्वर को साक्षी मानकर, उसके नाम पर और उसके आदेश को पूरा करने के लिए ही ऐसा करते हैं।
ईश्वर का नाम औरत मर्द के यौन संबंधों को पवित्रता प्रदान करता है।
पवित्रता और महानता ही नहीं बल्कि इसे ईश्वर प्राप्ति का साधन भी बना देता है। हिंदू दर्शन में भी चारों आश्रमों में गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है।
जहां औरत और मर्द के यौन संबंध तो पति पत्नी की तरह ही हों लेकिन ये संबंध ईश्वर के नाम पर न बने हों तो यही संबंध व्याभिचार और पाप कहलाते हैं। ईश्वर का नाम हटते ही संबंधों की पवित्रता भी ख़त्म हो जाती है और उनका नाम भी बदल जाता है।
यह बात ऐतराज़ करने वालों के सामने रहती तो वे ईश्वर के नाम पर क़ुरबान किए जाने वाले जानवरों के ज़िब्ह को जीव हत्या का नाम न देते।
जीव हत्या तो वहां होती है जहां ईश्वर द्वारा निर्धारित रीति ‘हलाल‘ के अलावा किसी और तरीक़े से पशु को काटा जाए या उसके अलावा किसी और के नाम पर उस पशु को काटा जाए।
Please see -
http://vedquran.blogspot.com/2011/11/qurbani.html
शाकाहार और मांसाहार- दोनों के पक्ष-विपक्ष में तर्क दिए जा सकते हैं। असली बात उस ऊर्जा को प्राप्त करने की है जहां तक अभी विज्ञान का अनुसंधान पहुंच नहीं पाया है।
jankaari ke liye dhanyvaad lekin paudho aur jiivo me phrk hai ye koii bahas kaa mudaa nahi hai bhaai rhii baat ishvar ke aadesh kii to saal me ek baar kurbaani ka hai lekin yaha to roj jaanvaro ko kaata jaata hai aur khaya ja raha hai aur ye khaalii muslim hi nahi hinduu unse jyaada kha rahe hai bas soch kii baat hai janvaro ke prti dayaa dikhaye aur kam khaaye apani jiivan chrya eaisi banaaye yaa khuub khaaye par ise bahas kaa mudda na banaaye videsho me to jane kya kya khate hai.
ओशो कहते है जिस भोजन से आपका शरीर और मन
स्वस्थ रहते है वही भोजन स्वास्थ्य के लिये अच्छा है !
सो हर कोई सोचे आपके लिये कौनसा भोजन अच्छा है !
मै तो किसी भोजन के पक्ष में नहीं हूँ ना ही विपक्ष में !
achchhi post!!
@ सुमन दुबे जी !
भारत में रहने वाले अपने खान-पान के मामले में अलग अलग विचार रखते हैं।
कुछ लोग इसे बहस का मुददा बनाए हुए हैं। कुछ लोग शाकाहार करते हैं और मिश्रित आहारियों पर व्यंग्य करते हुए उन्हें राक्षस, दरिंदा, तामसिक और भी न जाने क्या क्या कहते रहते हैं।
ऐसी सैकड़ों पोस्ट्स में से एक आप देखिए और इस पर अपनी राय दीजिए
http://niraamish.blogspot.com/2011/11/mass-animal-sacrifice-on-eid.html#comment-form
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