गुडगाँव की माही पिछले कई घंटों से बोरवेल में ज़िंदगी और मौत से संघर्ष कर रही है ! आज से कई साल पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी ! आज भी वह मुझे उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी उस वक्त थी जब मैंने इसे लिखा था ! सोनू और माही के साथ हुए इन हादसों के बीच और भी कई ऐसे ही हादसे हो चुके हैं जिनमें कई मासूम बच्चों ने अपनी जान गँवा दी है ! हर बच्चा प्रिंस की तरह खुशनसीब नहीं निकला जो सेना और प्रशासन की अथक मेहनत के बाद बोरवेल से सकुशल जीवित बाहर निकल आया था ! आज मैं सभी लोगों से यही अपील करना चाहती हूँ अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए किसी और की मुखापेक्षा ना करें ! स्वयं सतर्क रहें और प्रयत्नशील हों !
और सोनू हार गया
साधना वैद
4 comments:
सार्थक बात कही है ... स्वयं भी कुछ ज़िम्मेदारी निबाहनी चाहिए ...
मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ
फ़िक्र में बच्चे की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौजवाँ होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ
हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को
कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ
जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ
खुद तो सजग रहना ही होगा..
बहुत सारगर्भित रचना |
आशा
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