अन्ना हज़ारे के साथ हम हैं लेकिन आज उनके साथ अपने दोस्त मौलाना शमऊन क़ासमी साहब को भी खड़े देखा। अन्ना के साथ उनका फ़ोटो आज के उर्दू अख़बार ‘राष्ट्रीय सहारा‘ में मुखपृष्ठ पर ही है। हमने उन्हें फ़ोन मिलाया तो मालूम हुआ कि फ़ोटो उनका ही है और कल वह मुम्बई से दिल्ली आ रहे हैं। हमने कहा कि जब आप दिल्ली आ रहे हैं तो पहले हमसे मिलिएगा, बिजनौर बाद में जाइयेगा।
उन्होंने कहा कि ठीक है, हम पहले आपके पास ही आएंगे।
मौलाना शमऊन क़ासमी हमारे 25 साल पुराने दोस्त हैं। दावती शऊर के हामिल हैं और इसी के साथ वह सियासत में भी सरगर्म रहते हैं। ऊंची पहुंच के लोगों से उनकी अच्छी जान पहचान है। उनके परिचितों का और उनसे मुहब्बत करने वालों का दायरा इतना बड़ा है कि एक बार हमने उनके साथ सफ़र किया तो उनकी जान-पहचान के जितने लोग मिले और अलग अलग शहरों में मिले, उन्हें देखकर हमें सचमुच ताज्जुब हुआ।
दारूल उलूम देवबंद के मोहतमिम हज़रत मौलाना मरग़ूबुर्-रहमान साहब रहमतुल्लाह अलैह भी बिजनौर के ही रहने वाले थे। एक बार उनके घर भी हम मौलाना के साथ ही गए थे। हज़रत मौलाना मरग़ूबुर्-रहमान साहब शमऊन साहब से ख़ास ताल्लुक़ रखते थे। जब वह दारूल उलूम देवबंद में पढ़ रहे थे तो वह हज़रत मौलाना के साथ उनके दस्तरख्वान पर ही खाना तनावुल फ़रमाते थे।
बहरहाल अन्ना के साथ हमारे दोस्त खड़े हैं। यह आज की ख़बर है और हम तो खड़े ही हैं, चाहे उनके साथ फ़ोटो में हम मौजूद न हों।
देश अन्ना के साथ खड़े हैं लेकिन लोग यहां भी राजनीतिक हित साधने से बाज़ नहीं आ रहे हैं और एक जन-आंदोलन को भी विवादित बना देना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि ठीक है, हम पहले आपके पास ही आएंगे।
मौलाना शमऊन क़ासमी हमारे 25 साल पुराने दोस्त हैं। दावती शऊर के हामिल हैं और इसी के साथ वह सियासत में भी सरगर्म रहते हैं। ऊंची पहुंच के लोगों से उनकी अच्छी जान पहचान है। उनके परिचितों का और उनसे मुहब्बत करने वालों का दायरा इतना बड़ा है कि एक बार हमने उनके साथ सफ़र किया तो उनकी जान-पहचान के जितने लोग मिले और अलग अलग शहरों में मिले, उन्हें देखकर हमें सचमुच ताज्जुब हुआ।
दारूल उलूम देवबंद के मोहतमिम हज़रत मौलाना मरग़ूबुर्-रहमान साहब रहमतुल्लाह अलैह भी बिजनौर के ही रहने वाले थे। एक बार उनके घर भी हम मौलाना के साथ ही गए थे। हज़रत मौलाना मरग़ूबुर्-रहमान साहब शमऊन साहब से ख़ास ताल्लुक़ रखते थे। जब वह दारूल उलूम देवबंद में पढ़ रहे थे तो वह हज़रत मौलाना के साथ उनके दस्तरख्वान पर ही खाना तनावुल फ़रमाते थे।
बहरहाल अन्ना के साथ हमारे दोस्त खड़े हैं। यह आज की ख़बर है और हम तो खड़े ही हैं, चाहे उनके साथ फ़ोटो में हम मौजूद न हों।
देश अन्ना के साथ खड़े हैं लेकिन लोग यहां भी राजनीतिक हित साधने से बाज़ नहीं आ रहे हैं और एक जन-आंदोलन को भी विवादित बना देना चाहते हैं।
1 comments:
यही जनता को समझना है कि यह आंदोलन राजनीति का नहीं,जनता का है।
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