सबसे पहले हमें जानना होगा कि चरित्र कहते किसे हैं !... शरीर से जुड़ा है चरित्र या आत्मा से !.... चरित्र एक बहुत बड़ा अंश है भीतर का . एक मामूली सी बात पर हम किसी को चरित्रहीन ठहरा देते हैं ,जो सही नहीं है ! ....चोरी , झूठ , ह्त्या , शारीरिक संबंध ...... अवश्य ही इनसे चरित्र का निर्माण होता है ..... पर भूख के लिए की गई चोरी ? मुख्य चोर से अधिक उसे बेरहमी से मारा जाता है, क्योंकि उसकी ज़रूरतों ने उसे पलटकर वार करना नहीं सिखाया होता है ! झूठ की आदत और भयग्रसित झूठ , किसी को बचाने के लिए बोला गया झूठ , किसी व्यक्तिविशेष के अत्याचारों से बचने में बोला गया झूठ - फर्क होता है ! सुकून के लिए किसी को मारना , किसी प्राप्य के लिए किसी की ह्त्या , बचाव में की गई ह्त्या , अनजाने में हुई हत्या .... इनके भी मायने अलग हैं ! शरीर .....शरीर तो हर आचार विचारों का दान धर्म का भावनाओं का उच्च निम्न विचारों का व्यभिचार का ज़रूरतों का स्रोत है ...तो हम शरीर की ही विस्तृत व्याख्या करेंगे !
उससे पहले हमें यह भी जानना होगा कि आदत और चरित्र में अंतर है। आदतें अच्छी और बुरी हो सकती हैं। चरित्र कोई वस्त्र नहीं है , जिसे ओढ़ा और सुरक्षित हो गए , चरित्रवान हमेशा अहंकार से दूर रहता है। वह अपनी उपलब्धियों पर इतराता नहीं। वह जीवन को नींद में नहीं बिताता। चरित्रवान मेहनती होता है। वह हमेशा सतर्क रहता है, सावधान रहता है। दुष्टों के साथ से दूर रहता है। बु़द्धिमानों का साथ करता है। ऐसे चरित्रवान व्यक्ति के पास धन-सम्पदा और यश ख़ुद चलकर आते हैं।
अधिकांश लोग शरीर से चरित्र को जोड़ते हैं ... शरीर की अपनी एक ज़रूरत होती है, इसके लिए ही विवाह जैसी संस्था बनाई गई . शरीर एक बहुत ही ख़ास पहलू है , यह प्यार चाहता है . मनुष्य का शरीर जानवर नहीं , तो निःसंदेह वह एक प्यार से शुरू होता है, सम्मान से शुरू होता है - जहाँ प्यार और सम्मान नहीं , उसे सामाजिक ,पारिवारिक स्वीकृति ही क्यूँ न मिली हो - वह आत्मा का हनन है , और आत्मा का हनन चरित्रहीनता है . ...... जो स्त्रियाँ शरीर का व्यापार करती हैं - हम अक्सर उन्हें ही चरित्रहीन कहते हैं , पर जो शान से वहाँ जाते हैं , उनकी कीमत लगाते हैं - उनको कुछ नहीं कहते .
मनुष्य-चरित्र को परखना भी बड़ा कठिन कार्य है, किन्तु असम्भव नहीं है। कठिन वह केवल इसलिए नहीं है कि उसमें विविध तत्त्वों का मिश्रण है बल्कि इसलिए भी है कि नित्य नई परिस्थितियों के आघात-प्रतिघात से वह बदलता रहता है। वह चेतन वस्तु है। परिवर्तन उसका स्वभाव है। प्रयोगशाला की परीक्षण नली में रखकर उसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। उसके विश्लेषण का प्रयत्न सदियों से हो रहा है। हजारों वर्ष पहले हमारे विचारकों ने उसका विश्लेषण किया था। आज के मनोवैज्ञानिक भी इसी में लगे हुए हैं। फिर भी यह नहीं कह सकते कि मनुष्य-चरित्र का कोई भी संतोषजनक विश्लेषण हो सका है।
'चरित्र' व्यापक शब्द है। साधारणतः चरित्र का अर्थ होता है नैतिक सदाचार। जब हम कहते हैं कि अमुक व्यक्ति चरित्रवान है तो हमारा अर्थ होता है कि वह नैतिक सदाचारशील है। चरित्र का व्यापक अर्थ लिया जाय तो वह व्यक्ति की दयालुता, कृपालुता, सत्यप्रियता, उदारता, क्षमाशीलता और सहिष्णुता का द्योतक होता है। चरित्रवान व्यक्ति में सभी दैवी गुणों का समावेश रहता है। नैतिक दृष्टिकोण से तो वह सिद्ध होगा ही, साथ-साथ दैवी गुणों का विकास भी उसमें पूर्णतया होना चाहिए।
जानबूझकर असत्य भाषण करना, स्वार्थी और लोलुप होना, दूसरों के दिल को चोट पहुँचाना – इन सबसे मनुष्य के दुश्चरित्र का बोध होता है
पर समाज में चरित्र का मापदण्ड वह होता है जो दिखता है. यानी कि अगर आप ने ऊपरी दिखावा कर लोगों के दिलों में जगह बना ली तो आप राम वरना रावण. अंदर चाहे आप कत्ल करें या किसी की इज्ज़त ले लें - कोई फर्क नहीं पड़ता. दिखता वही है जो ऊपर होता है.
इसके साथ पैसा भी चरित्र मापने का एक पैमाना माना जाता है. हमारे समाज में अधिकांशतः आदमी का चरित्र रुपए से तौला जाता है. यदि कोई व्यक्ति संपन्न है, लेकिन उसका आचरण भ्रष्ट है तो भी समाज उसे भले-मानुष के तौर पर स्वीकार लेगा, जबकि गरीब आदमी की छोटी-सी गलती से भी उस पर लोग चरित्रहीन होने की मुहर लगा देंगे.
परिस्थितियाँ भी मायने रखती हैं - चरित्र एक सूक्ष्म दर्पण है, जिसकी व्याख्या संभव नहीं ....
2 comments:
चरित्र क्या है और यह कैसे बनता है ?
इस विषय पर आपने काफ़ी गहराई से सोचा है।
एक अच्छी पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया !
सुन्दर प्रस्तुति |
त्योहारों की यह श्रृंखला मुबारक ||
बहुत बहुत बधाई ||
मुंबई ।। अपनी नव विवाहिता पत्नी को धोखे से वेश्यालय में बेचने की कोशिश कर रहे एक शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पति की कुटिल चालों से अनजान पत्नी को वहां की कॉल गर्ल्स ने ही बचाया---
पतित-पतंगा यह पती, धरती पर बड़-बोझ |
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