आज़ाद हिन्द फ़ौज की कमांडर रह चुकी 98 वर्षीय कैप्टन लक्ष्मी सहगल का आज निधन हो गया |
डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 में एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ और उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली, फिर वे सिंगापुर चली गईं। वहीं पर उनकी मुलाक़ात सुभाष चंद्र बोस जी से हुई और वो आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं।
वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। एक डॉक्टर की हैसियत से वे सिंगापुर गईं थीं लेकिन 87 वर्ष की उम्र में भी वो कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती थी।
आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। फिर उन्हे कैप्टन बना दिया गया और बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा। वो एशिया की पहली महिला कमांडर बनी | जिस जमाने मे औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था उस समय उन्होने 500 महिलाओं की एक फ़ौज तैयार की जो एशिया मे अपने तरह की पहली विंग थी |
कैप्टन लक्ष्मी सहगल तमाम महिलाओं के साथ साथ हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत रही और हमेशा ही रहेंगी | अपनी मृत्यु के बाद उन्होने अपना पार्थिव शरीर मेडिकल कॉलेज को दान करने की इच्छा जताई थी जिसे कि पूरा किया जाएगा |
महान वीरांगना को भावभीनि श्रद्धांजलि | ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें |
डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 में एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ और उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली, फिर वे सिंगापुर चली गईं। वहीं पर उनकी मुलाक़ात सुभाष चंद्र बोस जी से हुई और वो आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं।
वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। एक डॉक्टर की हैसियत से वे सिंगापुर गईं थीं लेकिन 87 वर्ष की उम्र में भी वो कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती थी।
आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। फिर उन्हे कैप्टन बना दिया गया और बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा। वो एशिया की पहली महिला कमांडर बनी | जिस जमाने मे औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था उस समय उन्होने 500 महिलाओं की एक फ़ौज तैयार की जो एशिया मे अपने तरह की पहली विंग थी |
कैप्टन लक्ष्मी सहगल तमाम महिलाओं के साथ साथ हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत रही और हमेशा ही रहेंगी | अपनी मृत्यु के बाद उन्होने अपना पार्थिव शरीर मेडिकल कॉलेज को दान करने की इच्छा जताई थी जिसे कि पूरा किया जाएगा |
महान वीरांगना को भावभीनि श्रद्धांजलि | ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें |
1 comments:
जिस जमाने मे औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था उस समय उन्होने 500 महिलाओं की एक फ़ौज तैयार की जो एशिया मे अपने तरह की पहली विंग थी
Bahut badi baat hai.
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