हज़रत ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह रहमतुल्लाह अलैह (1563-1603) की आमद के साथ ही नक्शबंदी सिलसिला हिंदुस्तान में आया। नक्शबंदी सूफ़ियों की तालीम में हमने देखा है कि उनकी एक तवज्जो (शक्तिपात) से ही मुरीद के दिल से रब का नाम ‘अल्लाह अल्लाह‘ जारी हो जाता है यानि चाहे वह किसी से बात कर रहा हो या कुछ और ही सोच रहा हो या सो रहा हो लेकिन रब का नाम उसके दिल से लगातार जारी रहता है। जिसे अगर शैख़ चाहे तो मुरीद अपने कानों से भी सुन सकता है बल्कि पूरा मजमा उसके दिल से आने वाली आवाज़ को सुन सकता है। इसे ‘लतीफ़ा ए क़ल्ब का जारी होना‘ कहा जाता है। लतीफ़ अर्थात सूक्ष्म होने की वजह से इन्हें लतीफ़ा कहा जाता है। हिंदी में इन्हें चक्र कहा जाता है।
इसके बाद शैख़ की निगरानी में मुरीद एक के बाद एक चार लतीफ़ों से भी ज़िक्र करता है। ये भी अल्लाह के ज़िक्र से जारी हो जाते हैं। ये पांचों लतीफ़े इंसान के सीने में पाए जाते हैं। इस तरह सीने में पांच लतीफ़े अल्लाह के ज़िक्र से जारी हो जाते हैं। इन पांचों लतीफ़ों के नाम यह हैं-
1. लतीफ़ा ए क़ल्ब
2. लतीफ़ा ए रूह
3. लतीफ़ा ए सिर्र
4. लतीफ़ा ए ख़फ़ी
5. लतीफ़ा ए इख़्फ़ा
इसके बाद छठे लतीफ़े से ‘अल्लाह अल्लाह‘ का ज़िक्र किया जाता है। इस लतीफ़े का नाम है ‘लतीफ़ा ए उम्मुद्-दिमाग़‘। यह लतीफ़ा सिर के बीचों बीच होता है। इस तरह थोड़े ही दिन बाद बिना किसी भारी साधना के यह नाम शरीर के हरेक रोम से और ख़ून के हरेक क़तरे से जारी हो जाता है। इस ज़िक्र की ख़ासियत यह होती है कि ‘अल्लाह अल्लाह‘ की आवाज़ जब सुनाई देती है तो इस ज़िक्र में कोई गैप नहीं होता। यह ज़िक्र एक नाक़ाबिले बयान मसर्रत और आनंद से भर देता है। इसे ‘सुल्तानुल अज़्कार‘ कहते हैं और मुरीद इस मक़ाम को 3 माह से भी कम अवधि में पा लेता है।
इसके बाद शैख़ की निगरानी में मुरीद एक के बाद एक चार लतीफ़ों से भी ज़िक्र करता है। ये भी अल्लाह के ज़िक्र से जारी हो जाते हैं। ये पांचों लतीफ़े इंसान के सीने में पाए जाते हैं। इस तरह सीने में पांच लतीफ़े अल्लाह के ज़िक्र से जारी हो जाते हैं। इन पांचों लतीफ़ों के नाम यह हैं-
1. लतीफ़ा ए क़ल्ब
2. लतीफ़ा ए रूह
3. लतीफ़ा ए सिर्र
4. लतीफ़ा ए ख़फ़ी
5. लतीफ़ा ए इख़्फ़ा
इसके बाद छठे लतीफ़े से ‘अल्लाह अल्लाह‘ का ज़िक्र किया जाता है। इस लतीफ़े का नाम है ‘लतीफ़ा ए उम्मुद्-दिमाग़‘। यह लतीफ़ा सिर के बीचों बीच होता है। इस तरह थोड़े ही दिन बाद बिना किसी भारी साधना के यह नाम शरीर के हरेक रोम से और ख़ून के हरेक क़तरे से जारी हो जाता है। इस ज़िक्र की ख़ासियत यह होती है कि ‘अल्लाह अल्लाह‘ की आवाज़ जब सुनाई देती है तो इस ज़िक्र में कोई गैप नहीं होता। यह ज़िक्र एक नाक़ाबिले बयान मसर्रत और आनंद से भर देता है। इसे ‘सुल्तानुल अज़्कार‘ कहते हैं और मुरीद इस मक़ाम को 3 माह से भी कम अवधि में पा लेता है।
1 comments:
सूफीमत के बारे में रोचक और सार्थक पोस्ट!
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