जिसे खोया उसी को पा रहा हूं.
गुज़िश्ता वक़्त को दुहरा रहा हूं.
छुपाये दिल में अपनी तिश्नगी को
समंदर की तरह लहरा रहा हूं.
किसी की बददुआओं का असर है
हरेक रस्ते पे ठोकर खा रहा हूं.
उमीदों के घरौंदे फिर बनाकर
मैं अपने आपको बहला रहा हूं.
जहां दीवानगी फूली फली थी
उन्हीं गलियों में देखा जा रहा हूं.
दरख्तों का कहीं साया तो होगा
बहुत लम्बे सफ़र से आ रहा हूं.
तिलिस्माते तसव्वुर देख गौतम
ख्यालों में उलझता जा रहा हूं.
3 comments:
१००वी पोस्ट की हार्दिक शुभकानाएं
खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत खूबसूरत गजल गौतम जी !
100वीं पोस्ट की शुभकानाएं
आपने बहुत अच्छा कलाम पेश किया .
मुबारक हो .
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