ग़ज़लगंगा.dg: कब्र में लेटे हुए शैतान को जिंदा किया
दहेज कुप्रथा से बेटी को बचाने में सरकार और कानून असफल
आजकल रोज समाचारपत्रों में महिलाओं की मौत के समाचार सुर्खियों में हैं जिनमे से 90 प्रतिशत समाचार दहेज हत्याओं के हैं. जहां एक ओर सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए गाँव और तहसील स्तर पर "मिशन शक्ति" कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही है, सरकारी आदेशों के मुताबिक परिवार न्यायालयों में महिला के पक्ष को ही ज्यादा मह्त्व दिया जाता है वहीं सामाजिक रूप से महिला अभी भी कमजोर ही कही जाएगी क्योंकि बेटी के विवाह में दिए जाने वाली "दहेज की कुरीति" पर नियंत्रण लगाने में सरकार और कानून दोनों ही अक्षम रहे हैं.
एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''
बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी बेटी को ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।
यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा-3 के अनुसार -
दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा।
धारा 4 के अनुसार -
दहेज की मांग के लिए जुर्माना-
यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।
हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं, किन्तु जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़ियों की निंदा की जाती है उस तरह दहेज के दानी कर्णधारों की आलोचना क्यूँ नहीं की जाती है.
जब हमारे कानून ने दहेज के लेन और देन दोनों को अपराध घोषित किया है तो जब भी कोई दहेज हत्या का केस कोर्ट में दायर किया जाता है तो बेटी के सास ससुर के साथ साथ बेटी के माता पिता पर केस क्यूँ नहीं चलाया जाता है. हमारे समाज में बेटी की शादी किया जाना जरूरी है किन्तु क्या बेटी की शादी का मतलब उसे इस दुष्ट संसार में अकेले छोड़ देना है. बेटी के सास ससुर बहू को अपने बेटे के लिए ब्याह कर अपने घर लाते हैं वे उसे पैदा थोड़े ही करते हैं किन्तु जो माँ बाप उसे पैदा करते हैं वे उसे कैसे ससुराल में दुख सहन करने के लिए अकेला छोड़ देते हैं. आज तक कितने ही मामले ऐसे सामने आए हैं जिनमें दहेज के लोभी ससुराल वालों से तंग आकर बहू ने ससुराल में आत्महत्या कर ली और उस आत्महत्या की जिम्मेवारी भी ससुरालवालों पर डालकर केवल उन्हीं पर केस दर्ज किया गया और न्यायालयों द्वारा उन्हें ही सजा सुनाई गई जबकि ससुराल में बहुओं द्वारा आत्महत्या का एक पक्ष यह भी है कि जब मायके वालों ने भी साथ देने से हाथ खड़े कर दिए तो उस बहू /बेटी के आगे अपनी जिंदगी के ख़त्म करने के अलावा कोई रास्ता न बचने पर उसने आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम को उठाने का फैसला किया और ऐसे में जितने दोषी ससुराल वाले होते हैं उतने ही दोषी बहू/बेटी के मायके वाले भी होते हैं किन्तु वे बेचारे ही बने रहते हैं.
बेटी को उसके ससुराल में खुश दिखाने का दिखावा स्वयं बेटी पर कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा हमारे समाज में निश दिन आने वाली दहेज हत्या या बहू द्वारा आत्महत्याओं की खबरें हैं. जिन पर रोक लगाने के लिए सरकार और कानून से भी आगे बेटी के माँ बाप को ही आना होगा और उन्हें यह समझना होगा कि बेटी की शादी जरूरी है किन्तु उसका साथ छोड़ना जरूरी नहीं है. यदि ससुराल वाले बेटी को दहेज के लिए प्रताडित करते हैं, तंग करते हैं तो अपनी बेटी को अपने घर वापस लाकर जिंदगी दीजिए और तब कानून की शरण में जाकर उसे न्याय दिलाईये, यह नहीं कि पहले ससुराल वालों की प्रताड़ना से बचाने के लिए उनकी गलत मांगों को पूरा करते रहें और फिर उनके द्वारा बेटी की हत्या कर दिए जाने पर उन्हें सजा दिलाएं और मृत पुत्री को न्याय क्योंकि मृत्यु के बाद जब शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है तो बेटी को दुख में अकेले छोड़ देना पुत्री के माता पिता के भी पाप में ही आता है और जब तक बेटी को अपने माता पिता का ऐसा मजबूत साथ नहीं मिल जाता है तब तक बेटी का जीवन बचाने में वास्तव में सरकार और कानून भी असफल ही नजर आता है.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
बेरोजगारी
विपक्ष के मंझे हुए एक नेता वर्तमान समस्या,समस्या के कारण और निवारण पर जनसभा में बोल रहे थे।
चीख चीख कर व्यवस्था की पोल खोल रहे थे।
जिंदाबाद का नारा बीच-बीच में बुलंद हो रहा था।
प्रथम पंक्ति की भीड़ उत्तेजित थी, पिछला पंक्ति सो रहा था।
इसी बीच मुद्दा बेरोजगारी का आया।
नेताजी ने इसे सभी समस्याओं का जड़ बताया।
कहा,"अपराध" जैसी समस्या समाज में बेरोजगारी से आता है।
तभी एक शख्स चिल्लाया, नेता जी यह सच है कि अपराध बेरोजगारी से आता है मगर श्रीमान यह बतलाइए यह बेरोजगारी कहां से आता है?
नेताजी सवाल को अनसुना कर लए में बहे जा रहे थे। अल-बल-सल 'मन की बात' कहे जा रहे थे।
प्रश्न पुनः पूछे जाने पर नेता जी झल्ला गए और सेकंड भर में अपनी औकात पर आ गए।
कहने लगे,बेरोजगारी का कारण वर्तमान सरकार है।
इस सरकार पर धिक्कार है।
सत्ता पक्ष भ्रष्टाचार के शीर्ष पर अराजकता फैला रही है।
अशिक्षा ,अदूरदर्शिता और इसी भ्रष्टाचार से बेरोजगारी आ रही है।
अब नेताजी अपने रंग में आ रहे थे।
सभी बेरोजगार नेता जी की जय जयकार लगा रहे थे।
एक बेहद गम्भीर मुद्दा बेरोजगारों के जन सभा मे विपक्ष के एक नेता के कारण उबल रहा था।
जय जय कार की सोर से सभी बेरोजगारों का मन बहल रहा था।
अरशद अली।
मोदी - शाह से सीखें वेस्ट यू पी के वकील
बैठक में सपा नेता स्वामी ओम वेश की बात ही सर्वाधिक विचारणीय है कि जिस दिन वकीलों के दिमाग में यह बात आ जाएगी कि उन्हें बेंच चाहिए तो उस दिन उन्हें बेंच मिल जाएगी और इस बात में वकीलों के लिए सर्वाधिक कचोटने वाली उनकी यह बात रही कि इसके लिए अभी वकील ही तैयार नहीं हैं कितना बड़ा कटाक्ष है यह वकीलों पर कि वे अभी बेंच के लिए तैयार नहीं हैं.
1979 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता हाई कोर्ट बेंच के लिए आंदोलन कर रहे हैं किन्तु रह रह कर आंदोलन डूबता ही जा रहा है और राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा जन्म ले लेती है कि वकील अभी भी इसके लिए तैयार नहीं हैं. कमी किसी और की है भी नहीं, कमी है ही यहां के वकीलों की क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से समर्पित होकर इसके लिए कार्य किया ही नहीं है.. आंदोलन की सबसे बड़ी कमी है सबसे अधिक जरूरत मंद का आंदोलन की जरूरत से नावाकिफ होना और उसका इसमें कोई सहयोग न होना और वह जरूरत मंद है आम जनता जिसकी भलाई इस आंदोलन की मुख्य वज़ह है किन्तु उसे आज तक केवल इतना ही पता है कि ये वकीलों की मांग है और इसे पूरी कराने के लिए ही वे आए दिन हड़ताल करते रहते हैं.
अब ये जिम्मेदारी किसकी है कि जनता आंदोलन की वास्तविक स्थिति को जाने और वकीलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो, स्पष्ट रूप से वकीलों की, ये वकीलों का ही कर्तव्य है कि वे जनता को बताएं कि वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच स्थापित होने से वकीलों के तो केवल काम में इजाफा होगा मगर जनता के तो न्यायिक हित में जो इतनी बड़ी प्रयाग राज की दूरी खड़ी है वह हट जाएगी, कभी दूरी के कारण तो कभी ख़र्चे के कारण तो कभी विपक्षी के डर के कारण अपने न्याय हित को छोड़ देने वाले पीड़ित इस तरह न्याय के करीब पहुंच जाएंगे और न्याय में विलंब दूर हो सकेगा.
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी यहां वकीलों के आंदोलन की सफलता का रोड़ा बन गई है और उन्हें खुद में इस इच्छाशक्ति को जगाने के लिए मोदी शाह का अनुसरण करना होगा और उनसे सीखना होगा कि कैसे वर्तमान विकास का फायदा उठाकर ज़न समर्थन हासिल किया जाता है. आज लगभग सभी के फेसबुक, ट्विटर, व्हाटसएप अकाउंट हैं और इन दोनों ने इन्हीं का फायदा उठाकर सोशल मीडिया के द्वारा इनसे खुद को जोड़कर आज अपनी इतनी मजबूत स्थिति की है, साथ ही दूसरी बार सत्ता हासिल की हैं यही नहीं, हाल ही में CAA व NRC के मुद्दे पर भी विवादस्पद स्थिति उत्पन्न होने पर इनकी कार्यवाही प्रशंसनीय है, अमित शाह ने ऐसे में घर घर भाजपाईयों को भेज लोगों को कानून समझाने का कदम उठाया है।
ऐसे में वकीलों को भी इनसे सीख लेते हुए जनता के, सामाजिक संस्थाओं के सोशल मीडिया अकांउट से जुड़ना चाहिए और घर घर जाकर जनता को आंदोलन की जरूरत समझाने का प्रयास करना चाहिए और ये सब जल्दी ही करना चाहिए क्योंकि अभी देश व प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा के मोदी व शाह ही ऐसे तिकड़मी हैं कि तमाम व्यवधानों के बावजूद ये वकीलों व जनता के हित में प्रयाग राज के वकीलों द्वारा तैयार ओखली में सिर दे सकते हैं.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल )
Quranic Healing क़ुरआन के तरीक़े से हर बीमारी का इलाज मुमकिन है
My Email:hiremoti@gmail.com
कैसा तेरा प्यार था
Golden World यक़ीनन आपका कल सुनहरा है
हमारे ब्लाॅग के एक क़ाबिल पाठक भाई दशरथ दुबे जी ने यह सवाल हमसेपिछली ब्लाॅग पोस्ट पर किया है।
इसके जवाब में यह पोस्ट हाजि़र है।
उत्तरः जो कुछ विश्व में कल हुआ था, उससे आज के हालात बने और ये बहुत अच्छे हालात हैं, इनमें कुछ हालतें जीवन के खि़लाफ़ हैं लेकिन यही हालतें वास्तव मे जीवन को सपोर्ट करती हैं जैसे कि रात का अंधेरा दिन के उजाले के ठीक उलट दिखता है लेकिन रात का अंधेरा हमारे जीवन के लिए उतना ही ज़रूरी है, जितना कि दिन का उजाला।
तनाव, दंगे और जंगें, जो आज दुनिया में दिखाई दे रही हैं, ये सब शांति की शदीद ज़रूरत का एहसास करवा रही हैं।
यहां ‘डिमांड एंड सप्लाई’ का नियम काम कर रहा है। शांति की मांग का मतलब है कि शांति की सप्लाई यक़ीनी है। यह प्रकृति का नियम है। यह हर हाल में हो कर रहने वाली बात है।
आप देखेंगे कि आज विश्व में पहले से कहीं ज़्यादा संस्थाएं विश्व शांति के लिए काम कर रही हैं।
उन सबकी नीयत और मेहनत हमें यक़ीन दिलाती है कि हमारा कल सुरक्षित है और वह सुनहरा भी है।
हक़ीक़त यह है कि हमें दुनिया ठीक नज़र आएगी, अगर हम उसे ठीक नज़रिए से देखना चाहें।
दुनिया की घटनाओं से हमारा विश्वास हरगिज़ प्रभावित न होना चाहिए बल्कि हमें उससे उसकी ज़रूरत को समझकर उसके साॅल्यूशन तक पहुंचना चाहिए और फिर पूरे विश्वास के साथ उस साॅल्यूशन को दुनिया में वुजूद में लाने की कोशिश करनी चाहिए।
हमारी आज की नीयतें और अमल ही हमारे कल को तय करती हैं।
...और हरेक व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि उसने कल के लिए क्या भेजा है?
पवित्र क़ुरआन 59:18
सत्यमेव जयते ! ... (?): इस पर बोलिए हुजूर...
हिंदी मासिक पत्रिका "ह्यूमन टुडे" के लिए रचनाये आमंत्रित
बहुत दिन बाद आप मित्रों के सम्मुख आने का मौका मिला , मित्रों नव प्रकाशित हिंदी मासिक पत्रिका "ह्यूमन टुडे " को सम्पादन करने की जिम्मेदारी मिली है. ऐसे में आपलोगों की याद आनी स्वाभाविक है. भले ही इतने दिनों तक गायब रहा लेकिन आपसे दूर नहीं , मैं चाहता हूँ की जो ब्लॉगर मित्र अपनी रचनाओ के माध्यम से मुझसे जुड़ना चाहते है , मै उनका सहर्ष स्वागत करता हूँ। सामाजिक सरोकारों से जुडी इस पत्रिका में आपकी रचनाओ का स्वागत है , जो मित्र मुझसे जुड़ना चाहते हैं वे अपनी रचनाएँ मुझे मेल करें। ।
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रचनाएँ राजनितिक , सामाजिक व् ज्ञानवर्धक हो। कविता , कहानी व विभिन्न विषयो पर लेख आमंत्रित।
harish singh ---- editor- Humantoday