संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत सहित ३९ देशों ने मृत्युदंड समाप्त करने वाले प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया है और इसके ठीक एक दिन पश्चात् भारत ने अपने मंतव्य ''कानूनी मामलों के बारे में फैसला लेने का अधिकार ''के प्रति कटिबद्ध होने का सन्देश सम्पूर्ण विश्व को दे दिया है .अजमल आमिर कसाब को फाँसी दे भारत ने आतंकवाद के प्रति अपनी प्रतिरोधक शक्ति का परिचय दिया है और यह सही भी है क्योंकि सम्पूर्ण देशवासियों के लिए सुरक्षा का अहसास आतंकवाद का मुकाबला ऐसे मजबूत संकल्प द्वारा ही दिया जा सकता है अफ़सोस है तो केवल यही कि जहाँ सभ्यता निरंतर विकास की ओर बढ़ रही है वहीँ हमारी युवा शक्ति भटक रही है .
कसाब को हम पाकिस्तानी कहकर पृथक देश की युवा शक्ति नहीं कह सकते .भले ही डलहौजी की ''फूट डालो शासन करो'' की रणनीति का शिकार बन हमारे देश के दो टुकड़े हुए हों किन्तु भारत -पाक एक हैं ,एक ही पिता ''हिंदुस्तान '' की संतान ,जिनमे भले ही मतभेद हों किन्तु मनभेद कभी नहीं हो सकता .कसाब व् उस जैसे कितने ही युवा भटकी मानसिकता के परिचायक हैं .धार्मिक उन्माद में डूबे ये युवा दहशत गर्दी फैला रहे हैं क्यों नहीं समझते अपने धर्म के गूढ तत्व को ,जिसमे सभी से प्रेम करने की शिक्षा दी जाती है ,अन्याय अत्याचार भले ही स्वयं के साथ हो या किसी और के साथ उसका दृढ़ता से मुकाबला करने की शिक्षा दी जाती है न कि स्वयं दहशत फैला दूसरों के साथ अन्याय करने की ,और यही नहीं कि ये स्वयं भटक रहे हैं बल्कि इन्हें भटकाया जा रहा है और इनके माध्यम से अपने दिमागी फितूर को शांत करने वाले इनके आका बनकर बैठे लोग सुरक्षित शानो-शौकत की जिंदगी जी रहे हैं और फाँसी का शिकार मानसिक उलझन में डूबे हमारे ये युवा हो रहे हैं .
अफ़सोस होता है युवा शक्ति के ऐसे इस्तेमाल और विनाश पर .हम बिलकुल नहीं चाहते युवा शक्ति का ऐसा अंत किन्तु तभी जब युवा अपनी शक्ति का प्रयोग सकारात्मक कार्यों में करें .फाँसी जैसी सजा ह्रदय विदारक है किन्तु जब युवा शक्ति यूँ भटक जाये और जिंदगी निगलने को दरिंदगी पर उतर आये तो भारत का यह कदम सही ही कहा जायेगा .इस तरह भटकी हुई युवा शक्ति के लिए मेरा तो बस यही सन्देश है-
''मुख्तलिफ ख्यालात भले रखते हों मुल्क से बढ़कर न खुद को समझें हम,
बेहतरी हो जिसमे अवाम की अपनी ऐसे क़दमों को बेहतर समझें हम.
है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .
कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से ,
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती भूल समझें हम .
देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न समझें हम .
न कभी अपने हैं न अपने कभी हो सकते ,
पडोसी मुल्कों की फितरत को खुलके समझें हम .
कहे ये ''शालिनी'' मिल बैठ मसले सुलझा लें ,
अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .
शालिनी कौशिक
[ कौशल ]
2 comments:
भारत -पाक एक हैं ,एक ही पिता ''हिंदुस्तान '' की संतान ,जिनमे भले ही मतभेद हों किन्तु मनभेद कभी नहीं हो सकता .
Nice post.
सही कहा....
जब सारे उपाय असफल होजायं तो दंड एकमात्र उपाय रह जाता है,.....
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