इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा
जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है और इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी ऐसा ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान रहेगा।
१९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को विदा किया है .वह इस स्थान की शोभा थी .मैंने उसे निकट से देखा है और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .'' सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत पर आक्रमण किया था तब देश के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी इंदिरा जी को श्रृद्धा पूर्वक नमन करते है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है और इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी ऐसा ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान रहेगा।
१९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को विदा किया है .वह इस स्थान की शोभा थी .मैंने उसे निकट से देखा है और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .'' सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत पर आक्रमण किया था तब देश के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी इंदिरा जी को श्रृद्धा पूर्वक नमन करते है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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इंदिरा जी को श्रृद्धा पूर्वक नमन
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