परमेश्वर अच्छे कर्म करने वालों को स्वर्ग के अनन्त सुख देगा और बुरे कर्म करने वालों को नर्क की आग में जलाएगा।
इसी विश्वास को अरबी में ईमान कहा जाता है। इंसान इस हक़ीक़त को जान ले कि परमेश्वर उसके कर्मों का साक्षी है तो वह बुरे काम नहीं करेगा। हर इंसान अपने कर्म से साक्षी (शहादत) देता है कि वह परमेश्वर को साक्षी मानकर जीवन गुज़ार रहा है या फिर उसे भूल कर। जो उसे भूल कर जीवन गुज़ारता है। वह कुछ भी कर सकता है। वह किसी भी बुराई को अंजाम दे सकता है। सौ बुराईयों की जड़ एक शराब है। जो परमेश्वर को भूल जाता है वह यह भी भूल जाता है कि परमेश्वर ने नशे की हरेक क़िस्म के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है। खाने-पीने के अलावा उनके दूसरे बहुत से फ़ायदे हैं। उन चीज़ों से कौन से अन्य लाभ उठाए जा सकते हैं। ईश्वरीय विधान में यह विस्तार से बताया गया है।
ऐसे ईमान वाले सत्कर्मी नर-नारी किसी ज़ालिम का शिकार हो कर मर जाएं तो नेकी की राह में उनका मारा जाना भी परमेश्वर पर उनके विश्वास का साक्ष्य (सुबूत) है। वास्तव में यही लोग शहीद कहलाने के हक़दार हैं। यही लोग प्रभु परमेश्वर के स्वर्ग में, जन्नत में बसने के लायक़ हैं। ये वास्तव में अमर जीवन के हक़दार हैं। ये हमारी यादों में ज़िन्दा रहें या न रहें लेकिन ये ईमान वाले बन्दे सचमुच ही हमेशा ज़िन्दा रहते हैं, एक दूसरी दुनिया में। इसलाम में शहीद की बहुत अज़्मत बयान की गई है।
यह तो है शहादत की हक़ीक़त लेकिन आजकल शहीद शब्द को वे लोग भी इस्तेमाल करने लगे हैं जो कि परमेश्वर को और उसकी व्यवस्था को नहीं मानते। शहीद शब्द को राजनैतिक लाभ के लिए भी इस्तेमाल किया गया। आज़ादी की जंग में जान देने वालों के लिए भी शहीद लफ़्ज़ बोला जाने लगा। चाहे उनमें से कोई सिरे से नास्तिक ही क्यों न हो, उसे भी शहीद क़रार दिया गया।
अब राजनीति के पतन के साथ इस लफ़्ज़ को ऐसे लोगों के लिए भी बोला जा रहा है। जिन्होंने जनहित तो क्या अपने परिवार के हित का भी ख़याल न किया। जिन्हें अपने मन और शरीर का भी ख़याल न था। वे शराब पीकर निकल गए और दुश्मनों के हत्थे चढ़ गए। दुश्मनों ने उन्हें मार डाला।
बस, कहलाने लगे शहीद।
लोगों की भलाई में कोई काम किए बिना ही बुरे काम का अंजाम भुगत कर मरने वालों को भी शहीद का खि़ताब और सम्मान देना, सच्चे शहीदों की अज़्मत को कम करना है।
ऐसा करना उन लोगों के सम्मान को भी कम करना है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जानें दीं।
इस बात पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
जब कोई शब्द लिया जाए तो उसकी आत्मा को भी ग्रहण करना चाहिए वर्ना अर्थ का अनर्थ हो जाता है और समाज भी दिशाहीन हो जाता है।
5 comments:
लोगों की भलाई में कोई काम किए बिना ही बुरे काम का अंजाम भुगत कर मरने वालों को भी शहीद का खि़ताब और सम्मान देना, सच्चे शहीदों की अज़्मत को कम करना है।
ऐसा करना उन लोगों के सम्मान को भी कम करना है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जानें दीं।
आपकी ये बात सही है, लेकिन सरबजीत ने शराब के नशे में बार्डर क्रास किया था, ये बात तो उसके वकील ने पाकिस्तानी कोर्ट में मुवक्किल के बचाव के लिए कहा था। मुझे लगता है अब सरबजीत दुनिया में नहीं है, लिहाजा इस बहस को बंद कर देना चाहिए..
अगर पाकिस्तान की बात मानी जाए जो उस पर आरोप है कि हिंदुस्तान में हुए विस्फोटों का बदला लेने के लिए उसने यहां पाकिस्तान में बम धमाके किए। इसी आरोप में उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी..
चूंकि हम सच नहीं जानते लिहाजा शांत रहना ही ठीक होगा...
@ आदरणीय श्रीवास्तव जी ! सरबजीत के वकील ने पाकिस्तानी कोर्ट में जो कहा है, वही उसके घर वालों ने भी कहा है .
खुशदीप सहगल जी लेखते हैं-
सरबजीत के घर वाले उसके बचाव में हमेशा यही तर्क देते रहे हैं कि वो नशे में सरहद लांघ गया था...और पाकिस्तान ने उसे मनजीत सिंह की गलत पहचान देकर बम ब्लास्ट के केस में झूठा फंसा दिया...पाकिस्तान ने ये भी कहा कि सरबजीत भारतीय जासूस था...लेकिन भांरत सरकार ने कभी नही माना कि सरबजीत भारतीय जासूस था...सरबजीत के परिवार और भारत सरकार के दिए तथ्यों पर शक करने के लिए हमारे पास कोई गुंजाइश नहीं हो सकती...ऐसे में सरबजीत के नशे में सरहद पार करने और वहां पाकिस्तान के चंगुल में फंस जाने से ही क्या वो शहीद का दर्जा पाने और राष्ट्रीय हीरो कहलाने के लिए फिट हो जाता है ?
See:
http://www.deshnama.com/2013/05/blog-post.html
वैसे भी हमने इस पोस्ट में एक मुद्दा उठाया है किसी एक का नाम नहीं लिया है . इस तरह के और भी बहुत लोग हैं .
हरेक को शहीद कह देने की राजनीति को ठीक नहीं कहा जा सकता.
विचारणीय पोस्ट..
सरबजीत ने गलती से हो या समझबूझकर देश की देश को आँखें खोलने की सीख तो दिया है। पाकिस्तान की पोल खोलने का भी काम किया है। पाकिस्तान से दोस्ती हमारे लिए अच्छा है या बुरा, यह भी हमें बता दिया। इन बातों के लिए इससे अच्छा साक्षी और कौन हो सकता है। इसलिए सरबजीत सचमुच शहीद है।
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