Quranic Healing क़ुरआन के तरीक़े से हर बीमारी का इलाज मुमकिन है
सेहत आज एक बड़ा मसला बन गई है। तन और मन के पुराने रोगों के अलावा नए नए नाम से बहुत से रोग सामने आ रहे हैं। डॉक्टर और अस्पतालों की बढ़ती संख्या के साथ बीमारों और दवाओं की संख्या भी बढ़ रही है।
दिल, गुर्दे और लिवर की फ़ेल होने की घटनाएं बढ़ रही हैं। नामर्दी और बांझपन के केसेज़ बढ़ रहे हैं। जुर्म और ज़ुल्म के वाक़यात बढ़ रहे हैं।
अमीरी और ग़रीबी के बीच फ़ासला बढ़ रहा है। जिनके पास दुनिया की ऐश के सारे सामान हैं वे भी उसी तरह निराश और दुखी हैं जैसे कि वे, जिनके पास ‘नहीं’ है।
इस सबके बीच एक सबसे अच्छी बात यह हुई कि मॉडर्न साईन्स ने यह साबित कर दिया है कि बीमारियाँ अपनी नेचर में मनोदैहिक यानि सायकोसोमैटिक होती हैं। तन और मन का आपस में सम्बन्ध है।
मनुष्य का रक्त अपनी नेचर में अल्कलाईन है। जब ग़लत खान पान से इसमें एसिड बढ़ जाता है तो इसमें ऑक्सीजन का लेवल डाउन हो जाता है।
मनुष्य का शरीर ख़ुशी की मनोदशा में सबसे अच्छा काम करता है। जब ग़लत तरह से सोचने के नतीजे में मन में चिन्ता और डर समा जाते हैं तो ख़ुशी ख़त्म हो जाती है। इससे ऊर्जा का लेवल डाउन हो जाता है।
जब इन्सान अपनी तन और मन की नेचर को बदल देता है तब उसके तन और मन में बिगाड़ आना शुरू हो जाता है। इसके बाद वह बीमारी, झगड़े, क़जऱ् और ग़रीबी के हालात का शिकार होने लगता है। ये हालात बहुत हो सकते हैं। इन सब हालात को गिना नहीं जा सकता लेकिन इन सबको सिर्फ़ एक चीज़ से मिटाया जा सकता है।
इन्सान अपनी नेचर को पहचाने, जिस पर उसे रब ने पैदा किया है और उसकी तरफ़ पलट कर आए। यही रब की तरफ़ पलटकर आना यानि तौबा करना कहलाता है।
जिन कामों से मन को शाँति मिलती है, उनमें रब के साथ होने और उसके मेहरबान और मददगार होने जैसे गुणों को याद करना भी है। नमाज़ का मक़सद ही रब को याद करना ही है। यह पाँच समय तो अनिवार्य है ही, इनके अलावा पचास तरह की नफि़ल नमाज़ और भी हैं।
खाने पीने में हलाल और हराम तय करने और रोज़ों का फ़ायदा भी शरीर को मिलता है। शरीर से एसिड कम होता चला जाता है।
तिब्बे नबवी की सादा और पौष्टिक डाइट से सारे टॉक्सिन्स शरीर से बाहर निकल जाते हैं, जो कि सब रोगों का कारण बनते हैं।
पानी और शहद का काफ़ी इस्तेमाल और क़ुरआन का बहुत ज़्यादा पढ़ना तन और मन को शुद्ध और निरोगी करने का यक़ीनी तरीक़ा है।
जो लोग क़ुरआन पढ़ नहीं सकते, वे ईयर फ़ोन के ज़रिये सुनते रहें तो भी उनके मन को शाँति मिलेगी, जो कि भौतिक जगत का सत्य बनकर प्रकट होगी।
यह सबसे आसान और नेचुरल तरीक़ा है। इसे साईन्स प्रमाणित करती है।
इसे सीखकर आप सेहतमन्द रह सकते हैं। किसी इन्सान को आप किसी ऐसे रोग से पीडि़त पाएं, जिसे एलोपैथी में लाइलाज माना जाता है तो आप उसे कहें कि वह अपना एलोपैथिक इलाज जारी रखे और हमारा बताया हुआ तरीक़ा भी शुरू कर दे। जिससे उसके शरीर और मन से ज़हर दूर हो जाएगा। वह ठीक हो जाएगा।
मन के ज़हर को दूर कीजिए, शरीर से ज़हर को निकालिए।
जो विचार मन की शांति का नष्ट करते हैं, वे मन के लिए ज़हर का काम करते हैं।
जो तत्व शरीर को नुक्सान पहुंचाते हैं। वे शरीर का कचरा हैं।
यह कचरा शरीर की कोशिकाओं से केवल तब निकलता है जबकि मन शाँत हो। क़ुरआन मन को शाँति देता है। इसके साथ जब आप शहद और पानी पीते हैं तो शरीर का सारा कचरा बाहर आ जाता है।
यह बार बार का आज़माया हुआ साईन्टिफि़क फ़ैक्ट है।
इस एक काम से आप सब रोगों की जड़ काट देते हैं। अपनी और अपने परिवार की सेहत के लिए आप इसे आज़मा कर देखिए। यह बिल्कुल फ़्री सिखा रहे हैं और वह भी घर बैठे। किसी को और ज़्यादा पूछना हो तो हमसे पूछ ले।
हम आपके शुक्रगुज़ार हैं। इस ज्ञान को दूसरों को शेयर कीजिए। वे भी आपके शुक्रगुज़ार होंगे।
आने वाले समय में ज़्यादातर लोग मन की शक्ति से निरोग होना सीख लेंगे। इन शा अल्लाह!
-डॉ. अनवर जमाल
My Email:hiremoti@gmail.com
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