ख्वाहिशों के जिस्मो-जां की बेलिबासी देख ले.
काश! वो आकर कभी मेरी उदासी देख ले.
कल मेरे अहसास की जिंदादिली भी देखना
आज तो मेरे जुनूं की बदहवासी देख ले.
हर तरफ फैला हुआ है गर्मपोशी का हिसार
वक़्त के ठिठुरे बदन की कमलिबासी देख ले.
आस्मां से बादलों के काफिले रुखसत हुए
फिर ज़मीं पे रह गयी हर चीज़ प्यासी देख ले.
और क्या इस शहर में है देखने के वास्ते
जा-ब-जा बिखरे हुए मंज़र सियासी देख ले.
वहशतों की खाक है चारो तरफ फैली हुई
आदमी अबतक है जंगल का निवासी देख ले.
एक नई तहजीब उभरेगी इसी माहौल से
लोग कहते हैं कि गौतम सन उनासी देख ले.
3 comments:
काश! वो आकर कभी मेरी उदासी देख ले.
bahut khub.
वहशतों की खाक है चारो तरफ फैली हुई
आदमी अबतक है जंगल का निवासी देख ले.
बहुत सटीक!
एक नई तहजीब उभरेगी इसी माहौल से
लोग कहते हैं कि गौतम सन उनासी देख ले.
वाह क्या बात है देवेंद्रजी.एक एक शेर बेमिसाल है /बहुत सुंदर प्रस्तुति /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
www.prernaargal.blogspot.com
Post a Comment