ऐसे ही घूमते हुए 'गोपाल सिंह चैहान' के लेख पर नज़र पद गयी ,
आप भी देखिये और बताइए कि कैसा है यह लेख ?
http://www.commutiny.in/mediafeatures/media
मीडिया साक्षरता: एक नई उम्मीद
इस देश के बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि आज के दौर में हम सभी 'नॉलेज सोसायटी' का हिस्सा हैं, जिसमें ज्ञान के एक बड़े हिस्से को समाज के सभी वर्गों तक पंहुचाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मीडिया के कंधे पर है। लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में भी मीडिया से इस तरह के योगदान की अपेक्षा पहले भी थी और आज भी है। किसी भी नैतिक समाज के निर्माण के लिए यह जरूरी है कि उसका आधार एक सही ज्ञान की जड़ों से जुड़ा हो। यूनेस्को की एक रिपोर्ट "The World Ahead: Our Future in the Making", में यह साफ रेखांकित किया गया है कि किसी भी नैतिक समाज का निर्माण बाजार नहीं कर सकता।
यह अलग बात है कि यदि आज हम पहले से अधिक एक असमान समाज की सच्चाई में जी रहे हैं तो इसकी जिम्मेदारी बाजार के अलावा मीडिया के ऊपर भी है। उदारीकरण की प्रेरणा से भारत में पिछले कुछ सालों से उपजी 'सूचना क्रांति' की सबसे सफल संतान 'मीडिया' ने सभी ज्ञान परंपराओं को पछाड़ते हुए समाज की शिक्षा की दिशाओं को एक नये ढर्रे में मोड़ दिया। समाचार, दृश्य और विश्लेषण की त्रिआयामी जकड़ आज हर आदमी को यह जानने के लिए मजबूर कर रही है कि देश और विश्व में इस समय क्या चल रहा है। घटनाएं व्यक्तियों से ज्यादा महत्वपूर्ण लगने लगी हैं। धीरे-धीरे पैसे की बेशुमार आवक से इसमें फैशन, ब्यूटी, अपराध, हत्याएं इस कदर शामिल होती गयीं जहां से सच्चाई और नैतिकता का विचार ही एक अपराध बोध की तरह लगता है। उसने ज्ञान का हिस्सा बनने से कहीं ज्यादा बाजार का हिस्सा बनना पसंद किया। यही कारण है कि आज स्कूली या अन्य औपचारिक, अनौपचारिक शिक्षा माध्यमों से जुड़े चितंक, लेखक, विश्लेषक या नीति निर्देशक 'मीडिया साक्षरता' को पाठ्यक्रम का आवश्यक अंग मानने लगे हैं। वो इस बात पर जोर दे रहे हैं कि इस देश में पढ़ने वाले छात्र यह समझें कि समाज और संस्कृति की चेतना में मीडिया आज क्या भूमिका निभा रहा है।
'मीडिया साक्षरता' इस देश के लिए एक नयी अवधारणा है। लेकिन विश्व के कई हिस्सों में विशेषकर विकसित राष्ट्रों में बहुत सालों से इसको लेकर प्रयोग किये जा रहे हैं। भारत में 'मीडिया साक्षरता' पर कितना काम हुआ है और इसके क्या परिणाम दिखाई दे रहे हैं, अभी इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन यह जरूर देखा जा सकता है कि एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के अलावा अन्य संस्थाओं, स्कूलों के अलावा बड़ी संख्या में अध्यापकों और शिक्षा-शोध से जुड़े लोग इसको लेकर काफी गंभीर हैं।
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