मुस्कानों में बात कहो
चाहे दिन या रात कहो
चाल चलो शतरंजी ऐसी
शह दे कर के मात कहो
जो कहते हैं राम नहीं
उनको समझो काम नहीं
याद कहाँ भूखे लोगों को
उनका कोई नाम नहीं
अखबारों का छपना देखा
लगा भयानक सपना देखा
कितना खोजा भीड़ में जाकर
मगर कोई न अपना देखा
मिलते हैं भगवान् नहीं
आज नेक सुलतान नहीं
बाहर की बातों को छोडो
मैं खुद भी इंसान नहीं
अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
भूलो दुख और खुशी समेटो
सुमन खुशी से खिलता है
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6 comments:
[co="red"]अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
भूलो दुख और खुशी समेटो
सुमन खुशी से खिलता है [/co]
सुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
[co="red"]अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
भूलो दुख और खुशी समेटो
सुमन खुशी से खिलता है [/co]
सुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
कल 11/04/2012 को आपके इस ब्लॉग को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... हलचल में चर्चा है ...
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
waah...
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