हिन्दुस्तान में सज़ा ए मौत बाक़ी रहे या इसे ख़त्म कर दिया जाए ? Kasab:Hang Till Death

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  • Thursday, November 22, 2012
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  • DR. ANWER JAMAL
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  • इस पर एक लंबे अर्से से विचार चल रहा है। 21 नवंबर 2012 को कसाब को फांसी दिए जाने के बाद एक बार फिर यह मुददा उठाया जा सकता है। उसे फांसी दिए जाने से 2 दिन पहले ही संयुक्त महासभा कि मानवाधिकार समिति दुनिया भर में सज़ा ए मौत को ख़त्म करने का प्रस्ताव पास किया था। दुनिया के 140 देश सज़ा ए मौत ख़त्म कर चुके हैं और अब सिर्फ़ 58 देश ही यह सज़ा बाक़ी है। कोई भी फ़ैसला लेने से पहले यह देखना ज़रूरी है कि जिन देशों में फांसी की सज़ा नहीं है। उन देशों में जुर्म का ग्राफ़ नीचे के बजाय ऊपर जा रहा है । इग्लैंड के लोग तो अपना वतन ही छोड़ कर जा रहे हैं, जो जा सकते हैं और जिनके पास विकल्प है।
    मौत की सज़ा बाक़ी रखने के साथ ही ऐसे इंतेज़ाम करना भी ज़रूरी है कि आदमी ग़ुरबत और ग़ुस्से में आकर ऐसे काम न करे, जिनका अंजाम फांसी हो। इसके लिए देश के नागरिकों के आर्थिक स्तर को भी ऊंचा उठाना होगा और उसे अच्छे विचारों से भी पुष्ट करना होगा। यह काम अकेले सरकार के बस का नहीं है। यह काम हरेक मां-बाप को करना होगा। यह काम हरेक स्कूल को करना होगा। यह काम हरेक एनजीओ को करना होगा। इसी के साथ यह व्यवस्था करनी होगी कि ग़रीब से ग़रीब आदमी भी अदालत से बिना कुछ ख़र्च किए न्याय पा सके। तब ऐसा होगा कि सज़ा ए मौत सिर्फ़ क़ानून की किताब में बाक़ी रह जाएगी और इसे पाने वाले लोग न के बराबर रह जाएंगे। तब कोई ग़रीब आदमी पैसा और अच्छा वकील न होने के कारण फांसी नहीं चढ़ेगा।
    अगर करने के ये काम नहीं किए जाते तो फांसी बाक़ी रखी जाए या इसे ख़त्म कर दिया जाए। इसका असर हर तरह देश के ग़रीब नागरिकों को ही झेलना पड़ेगा। आज आलम यह है कि क़त्ल के मुलज़िम ज़मानत पर छूट कर गवाहों को ही क़त्ल कर देते हैं या डरा कर ख़ामोश कर देते हैं। यही वजह है कि हमारे देश में आज तक संगठित गिरोहबंद सुपारी किलर्स में से किसी एक को भी फांसी नहीं हुई।
    क़स्साब को फांसी देने के बाद अब उन लोगों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जो कि कहीं बाहर से नहीं आते बल्कि इसी देश में पैदा हुए हैं और यहीं आबाद हैं और इसी देश के लोगों को क़त्ल करते हैं और ऐसा वे लगातार करते हैं और बड़े पैमाने पर करते हैं। बाद में ये लोग राजनीति में भी आ जाते हैं। इनमें से कोई कोई तो आजीवन इलेक्शन तक नहीं लड़ता लेकिन इलाक़ाई और जातिवादी नफ़रतें फैलाकर लोगों को भड़काता रहता है और एक समुदाय के हाथ दूसरे समुदाय का ख़ून करवाता रहता है या फिर कम से कम समय समय पर दूसरे समुदाय की लुटाई-पिटाई ही करवातता रहता है।
    ...और अंततः मर जाता है।
    आखि़रकार यहां हरेक के लिए मौत है। जो फांसी से बच जाएगा, उसके लिए भी अंत है।
    यह तो समाज के सामने का सच है और एक सच वह है जो इंसान की मौत के बाद सामने आता है। भारत की आध्यात्मिक विरासत यही है कि यहां मौत के बाद के हालात को भी उतनी ही अहमितयत दी जाती है जितनी कि जीवन को। यही आध्यात्मिक सत्य ऐसा है जो कि आम आदमी को बुद्धत्व के पद तक ले जा सकता है बल्कि उससे भी आगे ले जा सकता है।
    हरेक समस्या का हल मौजूद है लेकिन हमें समस्या के मूल तक पहुंचना होगा। शरीफ़ लोग जी सकें इसलिए ख़ून के प्यासे इंसाननुमा दरिंदों को मरना ही चाहिए।

    9 comments:

    रविकर said...

    nice

    Zafar said...
    This comment has been removed by the author.
    Zafar said...

    Very nice post. It appears that you have given words to my own feelings and opinion.
    Capital punishment is a must to keep the society clean. And more crimes beside murder are needed to be put under capital punishment, e.g. rape, kidnapping, arson, robbery and financial scams etc.
    Thanks for your hard and honest work.
    Zafar

    Shikha Kaushik said...

    शरीफ़ लोग जी सकें इसलिए ख़ून के प्यासे इंसाननुमा दरिंदों को मरना ही चाहिए।
    -AGREE WITH YOUR VIEW .NICE POST

    Shalini kaushik said...

    right view .nice presentation .kasab ko fansi afsosjank bhi aur sarahniy bhi

    nilesh mathur said...

    फांसी की सजा तो जरूर रहनी चाहिए, बस इसका दुरुपयोग ना हो ये सुनिश्चित करना जरूरी है।

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    सही समय पर विचारणीय पोस्ट!

    shyam gupta said...

    --- अच्छा कथन है....


    "हमारे देश में आज तक संगठित गिरोहबंद सुपारी किलर्स में से किसी एक को भी फांसी नहीं हुई।"
    ---- हुज़ूर वो सब एन्काउन्टर, आपसी शूटिंग आदि में मारे जाते हैं, वो सब होते ही मारे जाने के लिए हैं ...पकडे ही नहीं जाते फांसी कहाँ होगी....

    DR. ANWER JAMAL said...

    @ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपका यह कहना ग़लत है कि संगठित गिरोहों के सभी सुपारी किलर्स आपसी मुठभेड़ आदि में मारे जाते हैं।
    हां, कुछ अवश्य मारे जाते हैं लेकिन उनके गैंग लीडर्स और उनके सरपरस्त आक़ाओं पर फांसी जैसी कोई प्रभावी अदालती कार्रवाई नहीं होती।

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