आज
सरबजीत सिंह को अंतिम विदाई दी जा रही है। पूरा देश उसके परिवार के दुख
में शरीक है। सरबजीत सिंह की रिहाई के मुददे पर उसकी बहन दलबीर कौर ने बहुत
भाग-दौड़ की है। पाकिस्तान से वापसी के बाद दलबीर कौर बहुत ग़ुस्से में थीं।
उनका ग़ुस्सा जायज़ भी था लेकिन फिर बाद में उनका एट्टीट्यूड एकदम बदल गया।
एक हिंदी ब्लॉगर गिरधर तेजवानी उनके इस रवैये पर लिखते हैं कि
एक हिंदी ब्लॉगर गिरधर तेजवानी उनके इस रवैये पर लिखते हैं कि
सरबजीत की बहन एक रात में ही कैसे बदल गई?-Tejvani Girdhar
पाकिस्तान
से लौटने पर वाघा बॉर्डर पर शेरनी की तरह दहाड़ते हुए दलबीर कौर ने कहा था
कि भारत सरकार के लिए शर्म की बात है कि वह अपने एक नागरिक को नहीं बचा
सकी। भारत ने पाकिस्तान के कई कैदी छोड़े लेकिन अपने सरबजीत को नहीं बचा
सके। उन्होंने आरोप लगाया था कि भारत सरकार ने उनके परिवार को धोखा दिया
है। उन्होंने यह धमकी भी दी थी कि अगर सरबजीत को कुछ हुआ तो वह देश में ऐसे
हालात पैदा कर देंगी कि मनमोहन सिंह कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
एक ओर जहां उनके इस बयान को उनके अपने भाई के प्रति अगाघ प्रेम की वजह से
भावावेश में आ जाना माना जा रहा था, वहीं कुछ को लग रहा था कि वे किसी के
इशारे पर मनमोहन सिंह को सीधी चुनौती दे रही थीं। कुछ ऐसे भी हो सकते हैं,
जिनको उम्मीद रही हो कि दलबीर कौर को सरकार के खिलाफ काम में लिया जाएगा।
जो कुछ भी हो, लेकिन उनका गुस्सा जायज था। मगर जैसे
ही सरबजीत की मौत की खबर आई, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी व गृहमंत्री
सुशील कुमार शिंदे ने सरबजीत के परिवार से मुलाकात की और दलजीत कौर का सुर
बदल गया है। जिस प्रकार वह उनसे गले मिल कर भावुक हुईं, उससे भी यह आभास हो गया कि एक ही रात में उसका हृदय परिवर्तन हो गया है।
दलबीर कौन ने कहा कि उनका भाई देश के लिए शहीद हुआ है। देश के सभी हिंदू,
मुस्लिम, सिख, ईसाई और सभी राजनीतिक दलों को एक हो जाना चाहिए। उन्होंने सब
से मिलकर पाकिस्तान पर हमला करने की जरूरत बताई। दलबीर ने कहा कि पहले
मुशर्रफ ने वाजपेयी की पीठ पर छुरा मारा, अब जरदारी ने मनमोहन की पीठ पर
छुरा मारा है। यह मौका है जब देशवासियों को सब कुछ भूल कर प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के हाथ मजबूत करने चाहिए और गृह मंत्री शिंदे का साथ देना
चाहिए।
स्वाभाविक सी बात है कि उनके इस बदले हुए रवैये पर आश्चर्य होना ही है।
आखिर ऐसी क्या वजह रही कि एक दिन पहले सरकार से सीधी टक्कर लेने की चेतावनी
देने वाली सरबजीत की बहन पलट गई। संदेह होता है कि वे अब किसी दबाव में
बोल रही हैं। जाहिर तौर पर यह सरकार का ही दबाव होगा, जिसके तहत सरबजीत की
दोनों बेटियों को सरकारी नौकरी और पर्याप्त आर्थिक मदद करने की पेशकश की गई
होगी। दलबीर कौर के इस रवैये की सोशल मीडिया पर आलोचना हो रही है।
हक़ीक़त जो भी हो लेकिन यह सच है कि प्यार के दो बोल और दो रोटी की ज़मानत इंसान को बदल कर रख देती है।
जिस तरह एक राजनैतिक दल ने अपने अच्छे बर्तावे दलबीर कौर का दिल बदल दिया है। उसी तरह से हम भी अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा बर्ताव करके उनका दिल बदल सकते हैं। इसके लिए हमें उनसे प्यार से बोलना चाहिए और अपने भोजन को उनसे शेयर करना चाहिए। हम अपने धार्मिक त्यौहार और दूसरे ख़ुशी के मौक़ों पर यही करते हैं।
अगर सरबजीत सिंह की मौत के पीछे पाकिस्तान की कोई साज़िश नहीं है तो उसे सरबजीत सिंह के परिवार के लिए कुछ अच्छा ज़रूर करना चाहिए। इससे सरबजीत सिंह तो वापस नहीं आएगा लेकिन इससे यह ज़रूर पता चलेगा कि पाकिस्तान के हुक्मरानों में इंसानियत ज़िन्दा है। दोनों देशों में मौजूद अमन के दुश्मनों को कमज़ोर करने के लिए भी यह ज़रूरी है। नफ़रत फैलाने वाले इन तत्वों की राजनीति की चक्की में सरबजीत सिंह जैसे आम नागरिक लगातार पिस रहे हैं। विदेशी जेलों में बंद ऐसे लोगों को बचाने के लिए नफ़रत का ख़ात्मा ज़रूरी है।
विदेशों में मारे जाने वाले हिंदुस्तानियों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है लेकिन जितनी चर्चा सरबजीत सिंह और दलबीर कौर को मिली है। वह आज तक शायद किसी को नसीब नहीं हुई है। सरबजीत सिंह को मिले प्रचार से उसके परिवार वाले आने वाले समय में किस किस तरह लाभ उठाते हैं, अब यह उनकी मेधा पर है।
इस सबसे अलग पूरा राष्ट्र भी सरबजीत सिंह के अंतिम विदाई के मौक़े पर शराब और नशे की लत से तौबा करके बहुत बड़ा आर्थिक-सामाजिक और नैतिक लाभ उठा सकता है।
हमारी हमदर्दी सरबजीत सिंह के परिवार के साथ हैं और हर उस परिवार के साथ हैं जिसने कि विदेश की धरती पर ज़ुल्म बर्दाश्त किए और अपनों से मिलने की आस में प्राण त्याग दिए।
जिस तरह एक राजनैतिक दल ने अपने अच्छे बर्तावे दलबीर कौर का दिल बदल दिया है। उसी तरह से हम भी अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा बर्ताव करके उनका दिल बदल सकते हैं। इसके लिए हमें उनसे प्यार से बोलना चाहिए और अपने भोजन को उनसे शेयर करना चाहिए। हम अपने धार्मिक त्यौहार और दूसरे ख़ुशी के मौक़ों पर यही करते हैं।
अगर सरबजीत सिंह की मौत के पीछे पाकिस्तान की कोई साज़िश नहीं है तो उसे सरबजीत सिंह के परिवार के लिए कुछ अच्छा ज़रूर करना चाहिए। इससे सरबजीत सिंह तो वापस नहीं आएगा लेकिन इससे यह ज़रूर पता चलेगा कि पाकिस्तान के हुक्मरानों में इंसानियत ज़िन्दा है। दोनों देशों में मौजूद अमन के दुश्मनों को कमज़ोर करने के लिए भी यह ज़रूरी है। नफ़रत फैलाने वाले इन तत्वों की राजनीति की चक्की में सरबजीत सिंह जैसे आम नागरिक लगातार पिस रहे हैं। विदेशी जेलों में बंद ऐसे लोगों को बचाने के लिए नफ़रत का ख़ात्मा ज़रूरी है।
विदेशों में मारे जाने वाले हिंदुस्तानियों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है लेकिन जितनी चर्चा सरबजीत सिंह और दलबीर कौर को मिली है। वह आज तक शायद किसी को नसीब नहीं हुई है। सरबजीत सिंह को मिले प्रचार से उसके परिवार वाले आने वाले समय में किस किस तरह लाभ उठाते हैं, अब यह उनकी मेधा पर है।
इस सबसे अलग पूरा राष्ट्र भी सरबजीत सिंह के अंतिम विदाई के मौक़े पर शराब और नशे की लत से तौबा करके बहुत बड़ा आर्थिक-सामाजिक और नैतिक लाभ उठा सकता है।
हमारी हमदर्दी सरबजीत सिंह के परिवार के साथ हैं और हर उस परिवार के साथ हैं जिसने कि विदेश की धरती पर ज़ुल्म बर्दाश्त किए और अपनों से मिलने की आस में प्राण त्याग दिए।
2 comments:
समसामयिक पोस्ट !
सरबजीत की मौत के बाद उसकी बहन दलबीर कौर और कर भी क्या सकती है। पर क्या पाकिस्तान पाक कहलाने के लायक रह गया है?
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