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क्या है हिंदू दर्शन और इस्लाम का उपदेश ?

हिंदू दर्शन की मान्यताएं
अपरिग्रह का हिंदू दर्शन में बड़ा महत्व है।
धन संपत्ति का संग्रह न करना अपरिग्रह कहलाता है।
इसी तरह हिंदू दर्शन में अचौर्य  का भी बड़ा महत्व है।
हिंदू दर्शन यह भी सिखाता है कि एक ईश्वर तुम्हारे कर्मों का साक्षी है और वह तुम्हारे कर्मों का तुम्हें फल ज़रूर देगा। तुम्हारे शुभ अशुभ कर्मों का फल तुम्हें भोगना ही होगा।
जो ईश्वर को साक्षी मानता है वह बुरे कर्म नहीं करता ताकि उसे भविष्य में अपने बुरे कर्मों का फल न भोगना पड़े।
यह मान्यता केवल हिंदू सन्यासियों के लिए ही नहीं है जिन्होंने संसार को निस्सार समझ कर त्याग दिया है बल्कि गृहस्थ हिंदुओं को भी हिंदू दर्शन का यही उपदेश है।
हिंदू दर्शन अपने मानने वालों से यह अपेक्षा रखता है कि चाहे गुरूकुल में पढ़ने वाले युवक-युवतियां हों या गृहस्थ हों या फिर सन्यासी, सभी अच्छे और सच्चे हों। उनमें दया, प्रेम, क्षमा और अक्रोध आदि लक्षण हों।
एक आदर्श हिंदू में क्या क्या गुण होने चाहिएं, गीता का 16 वां अध्याय विस्तार से यह सब बताता है और इतने विस्तार से बताता है कि आदमी का पूरा जीवन उन गुणों की साधना में गुज़र जाता है।
हिंदू दर्शन वासनाओं को वर्जित घोषित करता है और बताता है कि एक हिंदू के लिए वासना में जीवन गुज़ारना जीवन को व्यर्थ गंवाना भी है और अपने पाप बढ़ाना भी है।
इसके बावजूद आज बहुसंख्यक हिंदू भाई-बहन वासना में ही जीवन गुज़ार रहे हैं।
इसका सीधा सा मतलब यह है कि उनका जीवन हिंदू धर्म के आदेश-निर्देश के मुताबिक़ नहीं है।
ऐसे में उनके जीवन को देखकर ईश्वर, धर्म और हिंदू महापुरूषों को दोष देना ग़लत है।
हिंदुओं में उज्जवल चरित्र के बहुत से महापुरूष हुए हैं, अगर आज हिंदू अपने दर्शन पर चलते तो वे भी उज्जवल चरित्र वाले होते। हिंदू आज भी देश में जिस ओहदे पर बैठे हैं, बड़ी ज़िम्मेदारी और ईमानदारी से अपने फ़र्ज़ को अदा कर रहे हैं लेकिन इनकी संख्या कम है और जो भ्रष्टाचार से धन कमा रहे हैं, उनकी संख्या ज़्यादा है।

इस्लाम का नज़रिया
इस्लाम का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और ईश्वर का आज्ञापालन।
ईश्वर अल्लाह ने जायज़ और नाजायज़ की पूरी तफ़्सील अपने कलाम पवित्र क़ुरआन में दी है। चोरी और रिश्वत आदि के ज़रिये माल कमाने को हराम और वर्जित क़रार दिया है।
मुस्लिम वह है जो अपने मन की इच्छाओं को ईश्वर के आदेश-निर्देश के अधीन कर दे।
ऐसे मुस्लिम भी कम हैं और ऐसे ज़्यादा हैं जो अपनी मनमर्ज़ी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
नमाज़ अदा करने वाले और ज़कात और सदक़ा देने वाले कम हैं और नमाज़ और ज़कात और सदक़ा से दूर रहने वाले मुस्लिम बहुत हैं।
बिना इरादे के अल्लाह की आज्ञा का उल्लंघन हो जाए तो अल्लाह भी सज़ा नहीं देता लेकिन इरादे के साथ अल्लाह की नाफ़रमानियां करने वाले मुसलमान बहुत बड़ी तादाद में हैं। ऐसे लोग जब तक अपने गुनाहों पर शर्मिंदा न हों और बंदों को उनका हक़ न दें और तौबा करके अपने बुरे आचरण को न सुधार लें, उन्हें ईश्वर अल्लाह हरगिज़ क्षमा नहीं करता , यह लिखा हुआ है क़ुरआन में लेकिन फिर भी मुसलमानों की बड़ी तादाद अपनी मस्ती में मस्त जी रही है।
ऐसे मुसलमानों को देखकर इस्लाम और इस्लामी शरीअत पर ऐतराज़ जताना ठीक नहीं है।
आज हालत यह है कि हिंदू हों या मुसलमान, वे अपने धर्मशास्त्रों के बताए हुए विधान और अनुशासन के विपरीत चल रहे हैं और सोचते हैं कि उनका कल्याण होगा।
क्या वास्तव में ईश्वर अल्लाह ने ऐसी दशा में उनके कल्याण का कोई वादा किया है या उल्टे सज़ा का किया है ?
सज़ा हमें मिल ही रही है।
सज़ा का ही वादा किया भी है।
हमारी आज की हालत हमारे आज के चरित्र को अच्छी तरह दर्शा रही है।
हमारा बुरा वर्तमान हमारे सामने भयानक भविष्य लाने वाला है।
अपने आज को देखकर हम अपना भविष्य अच्छी तरह जान सकते हैं।
जो ईश्वर के प्रति समर्पण नहीं करेगा, जो उसकी आज्ञा का पालन नहीं करेगा, जो उसे साक्षी मानकर शुभ कर्म नहीं करेगा और खुद को वासनाओं से नहीं निकालेगा, उसका कल्याण हरगिज़ नहीं होगा।
यह एक अटल विधान है,
यही आपको हिंदू दर्शन में मिलेगा और यही आपको इस्लाम में मिलेगा।
सनातन सत्य यही है।
जिन महापुरूषों ने इतनी अच्छी बात बताई है, वे कभी ग़लत नहीं हो सकते।
अच्छा तो यह है कि उन्हें ग़लत कहकर हम ग़लती न करें और खु़द को बेहतर बनाने में अपना समय और श्रम लगाएं।   
दुख की बात यह है कि दोनों तरफ़ के ज़्यादातर लोग जो मन मर्ज़ी जी रहे हैं वे अपने स्वार्थों की ख़ातिर रोज़ नए तूफ़ान खड़े करते हैं और नाम लेते हैं धर्म और संस्कृति का और उनका समर्थन करने वाले भी कभी नहीं सोचते कि जो ख़ुद धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं वे धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर सत्ता हासिल करने के लिए ही सारी धरती की शांति भंग कर रहे हैं।
इनमें कुछ लोग धर्म का लबादा भी ओढ़ लेते हैं लेकिन उनके अनुयायियों को देखना चाहिए कि सत्य, दया, क्षमा और अक्रोध आदि धर्म के कितने लक्षण उनके अंदर मौजूद हैं ?
जो झूठ, फ़रेब और लालच में डूबे हों, उनके पास धर्म कहां ?
ऐसे लोगों से सदैव बचना चाहिए कि ये लोग ईश्वर के आदेश के विरूद्ध चलते हैं और इसी रास्ते पर दूसरों को चलाकर उन्हें कल्याण के रास्ते से भटका देते हैं। 
कल्याण दुनिया का माल और दुनिया की हुकूमत नहीं है बल्कि कल्याण वह है जो शाश्वत है।
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