(मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर ये सौवीं पोस्ट माता शारदे को समर्पित है । मुझे इस बात से अत्यंत हर्ष हो रहा है कि आज के ही शुभ दिन यह सुअवसर आया है जिस दिन सारा देश माँ की पूजा-अर्चना में लीन होगा ।)
हे ज्ञान की देवी शारदे,
इस अज्ञ जीवन को तार दे,
तम अज्ञान का दूर कर दे माँ,
तू प्रत्यय का उपहार दे ।
तू सर्वज्ञाता माँ वीणापाणि,
मैं जड़ मूरख ओ हंसवाहिनी,
चेतन कर दे,जड़ता हर ले,
मैं भृत्य तेरा हे विद्यादायिनी ।
जग को भी सीखलाना माँ,
सत्य का पाठ पढ़ाना माँ,
जो अकिञ्चन ज्ञान से भटके,
मति का दीप जलाना माँ ।
मैं दर पे तेरे आया माँ,
श्रद्धा सुमन भी लाया माँ,
सुध मेरी बस लेती रहना,
तेरे स्मरण से मन हर्षाया माँ ।
माँ कलम मेरी न थमने देना,
भावों को न जमने देना,
न लेखन में अकुलाऊँ माँ,
काव्य का धार बस बहने देना ।
माँ विनती मेरी स्वीकार कर,
मुझ मूरख का उद्धार कर,
कृपा-दृष्टि रखना सदैव,
निज शरण में अंगीकार कर ।
जय माँ शारदे ।
9 comments:
congratulatins .
वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप
शारदा देवी को एक वर्ग ज्ञान की देवी मानता है। आज उसकी पूजा की जा रही है। बहुत से ब्लॉगर्स ने इस पूजन-अर्चन को आज अपने लेख का विषय बनाया है और उसकी पूजा और प्रशंसा में गीत भी लिखे हैं।
देवी देवताओं की पूजा उन लोगों का मौलिक अधिकार है जो कि उनकी पूजा में विश्वास रखते हैं। लेकिन जब इस पूजा और विश्वास को इस महान देश की ज्ञान परंपरा पर डाली जाती है तो पता चलता है कि वैदिक परंपरा में मूर्ति पूजा बाद के काल में शामिल हुई।
जो लोग ज्ञानी हैं वे जानते हैं कि अनंत ज्ञान का स्वामी ईश्वर नर और नारी नहीं है। जब इस धरती पर ज्ञान का आलोक था तब यहां मूर्ति पूजा भी नहीं थी। तत्व की बात तो यह है कि इस सृष्टि का संचालन कोई देवी देवता नहीं कर रहा है बल्कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर ही कर रहा है। जो लोग उसके बनाये नियमों का पालन करते हैं उन्हें वह ज्ञान देता है और जो लोग उसके नियमों की अवहेलना करते हैं, वे ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
आज भारत के युवा विदेशों में जाते हैं ज्ञान पाने के लिए, शिक्षा पाने के लिए जबकि विदेशों में शारदा और सरस्वती की वंदना-पूजा-उपासना सिरे से ही नहीं होती। वे लक्ष्मी और कुबेर की पूजा भी नहीं करते लेकिन वर्ल्ड बैंक पर क़ब्ज़ा उनका ही है और भारत के लोग उनसे आर्थिक सहायता पाने की गुहार लगाते रहते हैं।
ज्ञान, शिक्षा और धन विदेशियों को क्यों मिला और देवियों के पुजारियों से भी ज़्यादा क्यों मिला ?
‘तत्व ज्ञानी‘ आज भी यही बताते हैं कि सारी चीज़ों का स्वामी केवल एक परमेश्वर है और उसके गुणों को देवी और देवता बताने वाली बातें केवल कवियों की कल्पनाएं हैं. जब ईश्वर के सत्य स्वरूप को भुला दिया गया तो ईश्वर ने अरब के लोगों को अपने सत्य स्वरूप का बोध कराया.
हुवल अव्वलु वल आखि़रु वज़्-ज़ाहिरु वल्-बातिनु, व हु-व बिकुल्लि शैइन अलीम.
वही आदि है और अन्त है, और वही भीतर है और वही बाहर है, और वह हर चीज़ का ज्ञान रखता है.
(पवित्र क़ुरआन, 57,3)
त्वमग्ने प्रथमो अंगिरस्तमः ...
अर्थात हे परमेश्वर ! तू सबसे पहला है और सबसे अधिक जानने वाला है.
(ऋग्वेद, 1,31,2)
हमारी सफलता इसमें है कि हम परमेश्वर के मार्गदर्शन में चलें जो कि वास्तव में ही ज्ञान का देने वाला है। उसका परिचय क़ुरआन और वेद में इस तरह आया है-
...लै-इ-स कमिस्लिहि शैउन ...
अर्थात उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है.
(पवित्र क़ुरआन, 42,11)
न तस्य प्रतिमा अस्ति ...
उस परमेश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती.
(यजुर्वेद, 32,3)
क़ुरआन में ईश्वर के स्वरूप का वर्णन देखकर जाना जा सकता है कि वह उसी ईश्वर की उपासना की शिक्षा देता है जिसकी उपासना सनातन काल से होती आ रही है। सनातन धर्म यही है। सनातन सत्य को सब मिलकर थामें तो बहुत सी दूरियां ख़ुद ब ख़ुद ही ख़त्म हो जाएंगी।
जो चीज़ लोगों को बांटती है वह धर्म नहीं होती।
जो चीज़ लोगों को ज्ञान के मार्ग से हटा दे, वह भी धर्म नहीं होती।
सत्य को जानेंगे तो हम सब एक बनेंगे।
एकता में शक्ति होती है।
क़द तबय्यनर्रूश्दु मिनल ग़य्यि, फ़मयं्-यकफ़ुर बित्ताग़ूति व-युअ्मिम्-बिल्लाहि फ़-क़दिस्-तम-सका बिल् उर्वलि वुस्क़ा...
सही बात नासमझी की बात से अलग होकर बिल्कुल सामने आ गई है, अब जो ताग़ूत (दानव) को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान ले आए उस ने एक बड़ा सहारा थाम लिया.
(पवित्र क़ुरआन, 2,256)
दृष्ट्वारूपेव्याकरोत् सत्यानृते प्रजापतिः अश्रद्धांमनृते दधाच् छृद्धां सत्ये प्रजापतिः
अर्थात परमेश्वर ने सत्य और असत्य के तथ्य को समझकर सत्य को असत्य से अलग कर दिया. उसकी आज्ञा है कि (हे लोगो) सत्य में श्रद्धा करो, असत्य में अश्रद्धा करो.
(यजुर्वेद, 19,77)
ईश्वर का सत्य स्वरूप और उसका आदेश आप सबके सामने है, अब जो मानना चाहे वह मान ले।
जमाल जी की बात तो सही है परन्तु उनका तत्व ग्यान सदा ही छिछला व अधूरा होता है.....
---निश्चय ही वेदों में व वैदिक युग में पहले देव व मूर्ति पूजा नहीं थी , एक ईश्वर की पूजा थी परन्तु फ़िर भी वेदों में अग्नि, इन्द्र, वरुण..सरस्वती..मित्र...इन्द्राग्नि, मित्रावरुण, अदि को विभिन्न देव शक्तियां मान कर प्रार्थनायें की हैं ....साथ ही साथ इन सभी को वही एक ही परमात्मा, ब्रह्म, ईश्वर माना गया है और कहा गया "एको सद विप्राः बहुधा वदन्ति".... और कण कण में भगवान ....यह विश्व में मानव-आचरण इतिहास में अनौखा सिद्धान्त है....चाहे जैसे पूजो उस एक ईश्वर पर ही आपकी पूजा जायेगी....अनेकता में एकता....
----अव्यक्त , ईश्वर या ब्रह्म अकर्ता है वह स्वय़ं आपको कुछ नहीं देता..न देने आता है ....इसीलिये ग्यान की उन्नति होने पर उसके विविध रूप अपनाये गये जिन्हें देवता कहागया तथा सामान्य जन के लिये उनके प्रतिरूप स्थापित किये गये ....सारे देवता मनुष्य के अन्तर की शक्तियां हैं जो स्मरण-ध्यान-मनन-वन्दन से जाग्रत होती हैं....
---आज एक सामान्य भारतीय भी जानता है कि देवी देवता उसी एक ईश्वर के प्रतिरूप हैं..और वही एक अकर्ता होते हुए भी "कर्ता" है...
---जब एक भारतीय -हिन्दू यह कहता है " हम क्या हैं उसी के करने से ही सब होगा".....’वो ही जाने”....निश्चय ही उस एक ही ब्रह्म की बात कह रहा होता है...
---सत्य को जानने के लिये कोई द्रश्य प्रतिमान चाहिये अन्यथा आपको क्या पता सत्य क्या है...सत्य सत्य चिल्लाने से आप सत्य नहीं जान सकते ...
दृष्ट्वारूपेव्याकरोत् सत्यानृते प्रजापतिः अश्रद्धांमनृते दधाच् छृद्धां सत्ये प्रजापतिः
अर्थात परमेश्वर ने सत्य और असत्य के तथ्य को समझकर सत्य को असत्य से अलग कर दिया. उसकी आज्ञा है कि (हे लोगो) सत्य में श्रद्धा करो, असत्य में अश्रद्धा करो.
(यजुर्वेद, 19,77)--
--- अर्थ अनर्थ है..यद्यपि मूल भाव वही है.. प्रजापति दो बार क्यों आये...ईश्वर पहले स्वयं समझेगा तब दूसरों को बतायेगा क्या....उसे किसने समझाया?
--- द्रिश्टि व रूप से ..अर्थात देखकर सुन समझ कर सम्यक ग्यान से सत्य व असत्य का निर्णय करना चाहिये वही उचित प्रजापति होने लायक है( प्रजापालक) है....प्रजापालक को निश्चय ही असत्य में अश्रिद्धा व सत्य में श्रिद्धा रखना चाहिये....
शारदा देवी एक वर्ग की नहीं ,न सिर्फ़ ग्यान की देवी है,..स्वयं ग्यान है ...ब्रह्म का ग्यान रूप...परम पिता परमात्मा सरस्वती के द्वारा आपको ग्यान देता है... वह सरस्वती रूप में आपके सम्मुख आता है....आपकी कल्पना के अनुसार...
जीवन कब अग्य होता है......
--इस अग्य के जीवन को तारदे...होना चाहिये....
@ भाई डा. श्याम गुप्ता जी ! आपको हमारा ज्ञान छिछला लगता है तो आप वेदों में शारदा देवी की या श्री कृष्ण जी की पूजा-उपासना दिखा दीजिए।
बेकार की बातें करके लोगों को आप भ्रम में न डालें।
मूर्ति पूजा का विरोध तो उन लोगों ने भी किया है जो कि वेदों का बहुत गहरा ज्ञान रखते थे।
मूर्ति पूजा और देव पूजा में अन्तर है.....
---.शारदा व क्रष्ण का उल्लेख वेदों में है .....शारदा तो वैदिक देवी हैं..हुज़ूर...सरस्वती वैदिक नदी भी है..ग्यान की देवी का एक पूरा सूक्त ही है रिग्वेद में.....भ्रम में तो वे डालरहे हैं ..गलत सलत व्याख्या करके उन्हें....जिन्हें वैदिक ग्रन्थों व उनके अर्थों का ग्यान नहीं है ।
@ भाई डा. श्याम गुप्ता जी ! मूर्ति पूजा और देव पूजा में अंतर है और यह भी सत्य है कि देव पूजा के लिए मूर्ति पूजा की जाती है।
आप हमें वेदों में शारदा देवी और श्री कृष्ण जी की पूजा दिखा सकें तो हम आपके आभारी होंगे।
होने को तो उसमें ‘राम‘ शब्द भी मिल जाएगा लेकिन रामचंद्र जी की पूजा उसमें न मिलेगी।
वेद के रहस्य को आप अपनी बुद्धि से समझना चाहेंगे तो कभी न समझ सकेंगे। उसकी प्रामाणिक व्याख्या ‘सृष्टि के अध्यक्ष‘ के द्वारा की जा चुकी है।
‘सृष्टि का अध्यक्ष‘ कौन है ?, जिसकी महिमा वेद बताते हैं,
यह जानने के लिए आप हमारा लेख
‘वेद में सरवरे कायनात स. का ज़िक्र है‘
http://vedquran.blogspot.in/2012/01/mohammad-in-ved-upanishad-quran-hadees.html
Post a Comment