केन्द्र सरकार का तुगलकी - फरमान एकाएक २३-०५-२०१२ को पेट्रोल की कीमत ७-५४ रुपये
पैसे प्रति लीटर बढ़ा दी गयी। देश के हर पेट्रोल पम्पों पर अपनी अपनी
गाड़ियों के साथ रात १२ बजे तक ग्राहकों की भारी भीड़ ताकि अपने अपने
संसाधन और वाहन के हिसाब से वे अधिक से अधिक पेट्रोल भराकर बढ़ी हुई कीमत
को कुछ दिन के लिेए "मात" दे सकें। वैसे भी दूरगामी परिणामों के बारे में सोचने की फुर्सत किसे है? उस भारी भीड़ में पेट्रोल पम्प वाले ने अपनी "आसन्न व्यावसायिक क्षतिपूर्ति" के लिए किसको कितना कम पेट्रोल दिया यह एक अलग प्रसंग है। मगर यह भीड़ "स्वतः-स्फूर्त" थी जिसमें कितनों को खाली हाथ भी लौटना पड़ा।
आज ३१-०५-२०१२ को तमाम विपक्षी दलों और संगठनों द्वारा पेट्रोल की मूल्य-वृद्धि के खिलाफ "भारत बन्द" का आयोजन किया गया है। उम्मीद है २३-०५-२०१२ की रात में मूल्य-वृद्धि से पहले भराये गए पेट्रोल अब तक खत्म हो गए होंगे। क्या वही "स्वतः-स्फूर्त" जनता की भीड़ विरोध में आज सड़कों पर उतरेगी? कभी नहीं। सम्भव ही नहीं है क्योंकि राजनैतिक दलों और आम जनता के बीच मे सिर्फ "वोट" का व्यावसायिक सम्बन्ध ही तो रह गया है।
हाँ सड़कों पर उतरेगी वो प्रायोजित भीड़ जिनका स्वार्थ राजनैतिक दलों और संगठनों से जुड़ा हुआ है। फिर सड़कों पर होगा वही गुण्डई का नंगा नाच, सरकारी (जनता) सम्पत्ति का नुकसान और दिहाड़ी मजदूरों की मजदूरी छीनने का खेल जिसे हम वातानुकूलित कमरों में बैठकर टी० वी० में देखेंगे। शाम में तथाकथित बुद्धिजीवियों की टीम के साथ "प्राइम टाइम" में आकर न्यूज चैनल वाले अपने अपने ज्ञान का पिटारा खोलेंगे, चैनल का टी० आर० पी० बढ़ेगा। सबेरे देश के हर हिस्से में स्थानीय "प्रभावशाली लोगों" की प्रमुखता के साथ अखबारों में फोटो और उनके "कारनामे" का समाचार जो सम्बन्धित दल के आकाओं तक पहुँचे। शाम तक हम सब भूल जायेंगे और अगली सुबह से "फिर वही बात रे वही बात"।
केन्द्र सरकार का कई राजनैतिक दलों द्वारा दिल्ली में दिलो जान से समर्थन के बावजूद वे इस भारत बन्द में शामिल होने का जोर शोर से विज्ञापन भी कर रहे हैं ताकि "आमलोगों" को पुनः बेवकूफ बनाने में वे सफल हो सकें। इस नपुंसक विरोध का क्या मतलब? आम जनता क्यों नहीं है राजनैतिक दलों के साथ? यह सवाल भी कम मौजूं नहीं है। देश के रहनुमाओं द्वारा छः दशकों से लगातार छली गयी जनता की स्थिति उस रेगिस्तानी शुतुरमुर्ग की तरह है जो तूफान आने से पहले अपने सर को बालू में यह सोचकर छुपा लेता है कि "अब मेरा तूफान कुछ नहीं बिगाड़ सकता"। खैर--- जय हो भरतवंशी सन्तान - मेरा भारत महान।
आज ३१-०५-२०१२ को तमाम विपक्षी दलों और संगठनों द्वारा पेट्रोल की मूल्य-वृद्धि के खिलाफ "भारत बन्द" का आयोजन किया गया है। उम्मीद है २३-०५-२०१२ की रात में मूल्य-वृद्धि से पहले भराये गए पेट्रोल अब तक खत्म हो गए होंगे। क्या वही "स्वतः-स्फूर्त" जनता की भीड़ विरोध में आज सड़कों पर उतरेगी? कभी नहीं। सम्भव ही नहीं है क्योंकि राजनैतिक दलों और आम जनता के बीच मे सिर्फ "वोट" का व्यावसायिक सम्बन्ध ही तो रह गया है।
हाँ सड़कों पर उतरेगी वो प्रायोजित भीड़ जिनका स्वार्थ राजनैतिक दलों और संगठनों से जुड़ा हुआ है। फिर सड़कों पर होगा वही गुण्डई का नंगा नाच, सरकारी (जनता) सम्पत्ति का नुकसान और दिहाड़ी मजदूरों की मजदूरी छीनने का खेल जिसे हम वातानुकूलित कमरों में बैठकर टी० वी० में देखेंगे। शाम में तथाकथित बुद्धिजीवियों की टीम के साथ "प्राइम टाइम" में आकर न्यूज चैनल वाले अपने अपने ज्ञान का पिटारा खोलेंगे, चैनल का टी० आर० पी० बढ़ेगा। सबेरे देश के हर हिस्से में स्थानीय "प्रभावशाली लोगों" की प्रमुखता के साथ अखबारों में फोटो और उनके "कारनामे" का समाचार जो सम्बन्धित दल के आकाओं तक पहुँचे। शाम तक हम सब भूल जायेंगे और अगली सुबह से "फिर वही बात रे वही बात"।
केन्द्र सरकार का कई राजनैतिक दलों द्वारा दिल्ली में दिलो जान से समर्थन के बावजूद वे इस भारत बन्द में शामिल होने का जोर शोर से विज्ञापन भी कर रहे हैं ताकि "आमलोगों" को पुनः बेवकूफ बनाने में वे सफल हो सकें। इस नपुंसक विरोध का क्या मतलब? आम जनता क्यों नहीं है राजनैतिक दलों के साथ? यह सवाल भी कम मौजूं नहीं है। देश के रहनुमाओं द्वारा छः दशकों से लगातार छली गयी जनता की स्थिति उस रेगिस्तानी शुतुरमुर्ग की तरह है जो तूफान आने से पहले अपने सर को बालू में यह सोचकर छुपा लेता है कि "अब मेरा तूफान कुछ नहीं बिगाड़ सकता"। खैर--- जय हो भरतवंशी सन्तान - मेरा भारत महान।
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