संस्कार -सौदा /मोहन -मो/.क्या एक कहे जा सकते हैं भागवत जी?

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  • Wednesday, January 9, 2013
  • by
  • Shalini kaushik
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  •     Marriage is a social contract : mohan bhagwat
    इंदौर [जागरण न्यूज नेटवर्क]। हाल ही में दुष्कर्म की घटनाओं पर विवादास्पद बयान देकर आलोचना का शिकार हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक और विवादित बयान दिया है। इस बार उन्होंने कहा कि शादी एक कान्ट्रैक्ट यानी सौदा है और इस सौदे के तहत एक महिला पति की देखभाल के लिए बंधी है। उनके इस बयान पर भी लोगों की तीखी प्रक्रिया सामने आई है।
    भागवत ने इंदौर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रैली के दौरान कहा, 'वैवाहिक संस्कार के तहत महिला और पुरुष एक सौदे से बंधे हैं, जिसके तहत पुरुष कहता है कि तुम्हें मेरे घर की देखभाल करनी चाहिए और तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखूंगा। इसलिए जब तक महिला इस कान्ट्रैक्ट को निभाती है, पुरुष को भी निभाना चाहिए। जब वह इसका उल्लंघन करे तो पुरुष उसे बेदखल कर सकता है। यदि पुरुष इस सौदे का उल्लंघन करता है तो महिला को भी इसे तोड़ देना चाहिए। सब कुछ कान्ट्रैक्ट पर आधारित है।'
    भागवत के मुताबिक, सफल वैवाहिक जीवन के लिए महिला का पत्नी बनकर घर पर रहना और पुरुष का उपार्जन के लिए बाहर निकलने के नियम का पालन किया जाना चाहिए। महिला और पुरुष में एक दूसरे का ख्याल रखने का कांट्रैक्ट होता है। अगर महिला इसका उल्लंघन करती है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।''

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    @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .

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    Hindu_wedding : CHENNAI, INDIA - AUGUST 29: Indian (Tamil) Traditional Wedding Ceremony on August 29, 2010 in Chennai, Tamil Nadu, India Stock Photo

      
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    Hindu_wedding : Happy indian adult people couple
    ये है भारतीय विवाह का सुखद स्वरुप 

                         शालिनी कौशिक 
                            ^ कौशल *
                          

    3 comments:

    Shikha Kaushik said...

    सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

    धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

    मोहन भागवत जी का बयान प्रचार पाने के लिए बाजारू तरीका,,,,

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

    DR. ANWER JAMAL said...

    हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं लेकिन आपका लेख पढ़कर लगा कि आप कन्फ़्यूज़ हैं। एक तरफ़ तो आप औरत के अधिकारों की वकालत करती हैं और दूसरी तरफ़ आप विवाह को संस्कार मानने पर बल देती हैं, जो कि उनसे तलाक़ और पुनर्विवाह का हक़ छीन लेता है।
    हिंदू धर्म में विवाह एक संस्कार है जबकि इसलाम में निकाह एक क़रार है।
    क़रार होने के कारण निकाह का संबंध तलाक़ या मौत से टूट जाता है। औरत को अपने पति से अपने हक़ पूरे न होने की शिकायत हो तो वह इसलामी रीति से उससे संबंध तोड़ सकती है और पुनः अपनी पसंद के मर्द से निकाह कर सकती है।
    हिंदू विवाह के संस्कार होने के कारण औरत तलाक़ का हक़ नहीं रखती लेकिन उसका पति उसका परित्याग कर सकता है। हिंदू विवाह के संस्कार होने के कारण विधवा नारी पति की मौत के बाद भी उसी की पत्नी रहती है। उसे पुनर्विवाह का अधिकार नहीं है। वैदिक विद्वान इस पर एकमत हैं। जबकि पति अपनी पत्नी के जीते जी भी किसी से विवाह कर सकता है और उसकी मौत के बाद भी।
    हिंदू विवाह के संस्कार होने से विधवा नारी के दोबारा विवाह करने पर पाबंदी लाज़िम आयी और शास्त्रों ने बताया कि उसका पति के साथ सती होना उत्तम है या फिर वह सफ़ेद कपड़े पहनकर भूमि पर शयन करे और एक समय बिना नमक-मसाले का भोजन करे और मासिक धर्म के दिनों में एक समय का भोजन भी मना है। विवाह आदि शुभ अवसरों पर वह सामने न पड़े। इस तरह जो औरतें सती होने से बच भी जाती थी तो वे कुपोषण और डिप्रेशन का शिकार होकर तड़प तड़प कर मर जाती थीं। मरने के बाद भी दुदर्शा उनका पीछा नहीं छोड़ती।
    पति के मरने के बाद हिंदू संस्कारों का पालन करने वाली विधवा की दुर्दशा को जानने देखिए ये पोस्ट्स-

    1. कब होता है विधवा विलाप ?

    2. कैसे होता है विधवा विलाप ?

    3. ऐसे भी होता है विधवा का अंतिम संस्कार

    भारत में इसलाम आया तो औरत के लिए जीने के रास्ते खुले। उसे अपना हक़ अदा न करने वाले पति से छुटकारे के लिए तलाक़ का हक़ मिला। तलाक़शुदा औरतों और विधवाओं को पुनर्विवाह का हक़ मिला।
    यह सब इसलाम के प्रभाव से हुआ। जिन हिंदू समाज सुधारकों ने औरतों के लिए इसलाम जैसे अधिकारों की वकालत की। उनका एकमात्र विरोध संस्कृति और संस्कार की रक्षा करने वालों ने ही किया।
    आज किसी में हिम्मत नहीं है कि वह औरत के तलाक़ पाने के हक़ का या उसके दोबारा विवाह करने के हक़ का विरोध कर सके।
    विवाह बहुत पहले कभी संस्कार हुआ करता था, अब नहीं है। वे दिन गए। अब यह एक क़रार है। कोर्ट में तलाक़ और पुनर्विवाह के लिए आने वाली औरतें इसका सुबूत हैं।
    जब औरतें ही विवाह को संस्कार मानने से इन्कार कर दें तो फिर कोई क्या कर सकता है ?
    जिन शास्त्रों से आपने हिंदू विवाह को संस्कार बताने संबंधी श्लोक दिए हैं, उन्हीं शास्त्रों में यह बताया गया है कि विधवाओं को कैसे रहना चाहिए ?
    क्या विधवाएं आज उस ज़ुल्म को बर्दाश्त करना गवारा करेंगी ?
    अगर नहीं तो फिर ज़ुल्म की हिमायत क्यों और किसके लिए जब कोई उसे गवारा करना ही नहीं चाहता।

    रही मोहन भागवत जी की बात तो वह अपने कथन में केवल मर्द के अधिकार की बात कर रहे हैं। इसी अधिकार को वह औरत के लिए नहीं मानेंगे कि अगर पति उसका भरण-पोषण न कर पाए या उसकी रक्षा न करे तो वह भी अपने पति को छोड़ सकती है। इसी से पता चलता है कि वह संस्कार ही की बात कर रहे हैं न कि वह हिंदू विवाह को क़रार ठहरा रहे हैं।

    आप एक लड़की भी हैं और एक वकील भी। आप औरतों के हित में क्या चीज़ पाती हैं ?
    1. क्या औरत विवाह को एक संस्कार मानकर उसकी पाबंदियों को पूरा करे जैसा कि शास्त्रों में बताया गया है ?
    या कि
    2. औरत उसे संस्कार न माने और पति से निर्वाह न होने पर तलाक़ ले और चाहे तो फिर से विवाह करके अपने जीवन को सुखी बनाए ?
    पहली बात हिंदू धर्म की है और दूसरी बात इसलाम की है।
    आप क्या मानना चाहेंगी ?,
    यह देखने के साथ यह भी देखें कि सारी दुनिया आज क्या मान रही है ?

    क्या यह हक़ीक़त नहीं है कि इसलाम आ चुका है आपके जीवन में धीरे से ?
    See this post on my blog "Vedquran"
    http://vedquran.blogspot.in/2013/01/blog-post.html

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