अग़ज़ल
Posted on Tuesday, February 5, 2013 by डॉ. दिलबागसिंह विर्क in
Sahitya Surbhi: अग़ज़ल - 50: जीना नहीं आया यारो, मुझको जीना नहीं आया जिन्दगी क्या थी ? दो घूँट जहर, पीना नहीं आया । जमीं के गुलशन और दिल के चमन में फर्क है यह...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment