‘हलाल मीट‘ जर्मनी वालों को ख़ूब पसंद आया या यूं कहें कि बड़े शहरों में रहने वाले उनके एंकर को ख़ूब भा गया। तभी उन्होंने आलू-केले के ब्लॉग को छोड़कर इसे चुन लिया।
‘हलाल मीट‘ जर्मनी के डायचे वेले ईनाम के लिए नामज़द किए गए ब्लॉगों में से एक है। यह अच्छा है। इसकी अच्छाई की एक वजह यह है कि इसके मजमूए में एक लेख मेरा भी है।
शाकाहार को बढ़ावा देने में नाकाम रहने वाले एक साहब को ‘हलाल मीट‘ शुरू से ही अखर रहा है। वह जगह जगह ऐसे तड़प कर बोल रहे हैं जैसे कि उनके गले में मछली का कांटा फंस गया हो, हालांकि वह मछली नहीं खाते. वह ‘निरामिष‘ हैं।
‘हलाल मीट‘ जर्मनी के डायचे वेले ईनाम के लिए नामज़द किए गए ब्लॉगों में से एक है। यह अच्छा है। इसकी अच्छाई की एक वजह यह है कि इसके मजमूए में एक लेख मेरा भी है।
शाकाहार को बढ़ावा देने में नाकाम रहने वाले एक साहब को ‘हलाल मीट‘ शुरू से ही अखर रहा है। वह जगह जगह ऐसे तड़प कर बोल रहे हैं जैसे कि उनके गले में मछली का कांटा फंस गया हो, हालांकि वह मछली नहीं खाते. वह ‘निरामिष‘ हैं।
5 comments:
तड़पे तो बहुत है, हे जानवरों के आतंक!, दुर्भाग्य से मानव होने के नाते मेरे बंधु!! अनुकम्पा से हृदय द्रवित है. तड़प ऐसी कि भारत से इस हिंसा और आतंक का प्रतीक दुनिया के समक्ष जा रहा है और अहिंसक देश के ब्लॉगरों को हाय सुनाई नहीं देती.
कितनी हिंसकता और दुर्भावना भरी हुई है आप लोगों की मानसिकता में? दया की तड़प के मजे ले रहे हो.... क्रूर लोगों को समझाया भी तो नहीं जा सकता. इस ब्लॉग से आपकी इस पोस्ट की शिकायत करें भी तो क्या, निष्ठूर लोगों का ही शायद जमावडा हो. अल्लाह आप पर रहम करे.......
@ सुज्ञ ! आप बेज़बान मूली गाजर खाते हो और फिर भी अपने आप को राक्षस के रूप में क्यों नहीं देख पाते जबकि आप मानते हैं कि आवागमन के कारण उनमें भी इंसानी आत्मा ही जन्म लिए हुए है। अपनी मान्यता के अनुसार आप ख़ुद आदमख़ोर हैं। चले हैं करूणा का पाठ पढ़ाने ।
आलोचना करने के लिए आपको दूसरे ही मिले हैं ?
@अनवर!! करूणा का पाठ पढ़ो तो अच्छी बात है लेकिन उसका ग्रहण होना कर्माधीन है। दुर्भागी के लिए सहज भी नहीं होता। अनुकम्पा वाला स्वभाव पाना बड़ा दुर्लभ है। अल्लाह उन्ही पर रहम करता है जो उसकी सृष्टि पर रहम करता है।
@ सुज्ञ ! बस जाने दो यार, बेकार में दुर्भागी और अभागी मत करो।
@अनवर!! मैं यहां वैसे भी करूणा का पाठ पढ़ाने नहीं आया था। मैं तो मेरी तड़प पर व्यंग्य किया गया तो उस तड़प की सच्चाई बताने आया था। यह तो जब आपने आदमखोर आदि कहकर जब कहा कि चले हैं करूणा का पाठ पढ़ाने। तो करूणा के उदय पर प्रकाश डालना पडा।
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